फीस बढ़ोतरी: पुख्ता समाधान क्या है?
हमने सरकारी स्कूलों को क्यों बिसरा दिया?

ये स्कूल सिर्फ सरकार के नहीं, आपके भी हैं
राष्ट्रीय राजधानी समेत कई शहरों में अभिभावक निजी स्कूलों की फीस में बढ़ोतरी का विरोध कर रहे हैं। वे सोशल मीडिया पर अपनी पीड़ा साझा कर रहे हैं, निजी स्कूलों पर मनमानी फीस लेने और उनके बच्चों को अलग बैठाकर मानसिक रूप से परेशान करने के आरोप लगा रहे हैं। वहीं, निजी स्कूलों का तर्क है कि महंगाई बढ़ गई है, इसलिए कम फीस में संचालन करना संभव नहीं है। कहीं नेतागण बयान दे रहे हैं, कहीं अभिभावक कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कह रहे हैं। ऐसी खबरें हर साल पढ़ने को मिलती हैं। आखिरकार, बढ़ी हुई फीस में मामूली छूट मिलने पर अभिभावक मान जाते हैं। दोनों ही पक्षों के अपने तर्क होते हैं, जिन्हें वे सही ठहराने की कोशिश करते हैं, लेकिन समस्या का कोई पुख्ता समाधान नहीं होता। बेशक, महंगाई बढ़ने से आम लोगों की कमाई इतनी नहीं रही कि वे बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में पढ़ाकर अपने लिए कुछ बचत कर सकें। सवाल है- क्या बच्चों की पढ़ाई महंगे निजी स्कूल में कराना ही एकमात्र विकल्प है? हमने अपने सरकारी स्कूलों को क्यों बिसरा दिया? सरकारी स्कूलों की यह छवि किसने बनाई कि वे सिर्फ गरीब बच्चों के लिए खोले गए हैं? क्या सरकारी स्कूल में पढ़कर कोई सफल नहीं हुआ? लोग निजी स्कूलों की फीस में कटौती कराने के लिए एकजुट हो जाते हैं, सोशल मीडिया पर आवाज उठाते हैं, अदालतों में चले जाते हैं। वे ऐसा जरूर करें, यह उनका अधिकार है, लेकिन इतनी ऊर्जा सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने में क्यों नहीं लगाते? लोग इतने ही प्रयास सरकारी स्कूलों के लिए करते तो आज उन्हें परेशान नहीं होना पड़ता।
प्राय: सरकारी स्कूलों के संबंध में कुछ शिकायतें होती हैं, जैसे- वहां सुविधाओं का अभाव है, पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है, बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे अच्छे नहीं आते हैं। ये ऐसी शिकायतें हैं, जिन्हें अभिभावक आसानी से दूर कर सकते हैं। सरकारी स्कूल में संसाधनों की कमी है तो अभिभावक और स्थानीय लोग थोड़ा-थोड़ा योगदान देकर उनकी पूर्ति कर सकते हैं। यह निवेश वर्षों तक फायदा देगा। बात कड़वी है, लेकिन सच है कि लोग जानेमाने निजी स्कूलों की फीस का एक चौथाई हिस्सा भी सरकारी स्कूलों में नहीं लगाना चाहते। अगर लोग एकजुट होकर यह जिम्मेदारी संभाल लें तो संसाधनों की कमी बहुत जल्दी दूर हो सकती है। रही बात पढ़ाई के स्तर की, तो उसे भी बेहतर बनाया जा सकता है। समस्त अभिभावक सरकारी स्कूल प्रबंधन के साथ बैठक करें। उसमें जनप्रतिनिधियों को शामिल करें। जब लोग एकजुट होंगे तो जनप्रतिनिधियों को आना ही होगा। अगर नहीं आएंगे तो अगले चुनाव में नुकसान उठाएंगे। बैठक में उन बिंदुओं पर चर्चा की जाए, जिन पर काम करने से पढ़ाई का स्तर सुधर सकता है। शिक्षक, अभिभावक और जनप्रतिनिधि सोशल मीडिया के जरिए लगातार संपर्क में रहें। वे वॉट्सऐप पर ऐसा ग्रुप बना सकते हैं, जिसमें स्थानीय सरकारी स्कूल की बेहतरी पर ही चर्चा हो। इससे पढ़ाई का स्तर जरूर सुधरेगा। फिर भी किसी बच्चे को अतिरिक्त तैयारी की जरूरत हो तो कई ऐप ऑनलाइन मार्गदर्शन देते हैं। उनकी मदद ले सकते हैं। आज सरकारी स्कूलों की जो हालत है, उसके लिए हम सब कहीं-न-कहीं जिम्मेदार हैं। जब चुनावों का मौसम आता है, तब कितने लोग सरकारी स्कूलों के मुद्दे उठाते हैं? कितने नेता हैं, जो यह कहने का साहस दिखाते हैं कि हम जिस इलाके से वोट लेंगे, वहीं के सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे? जनप्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए तो यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से ही शिक्षा दिलाएं। इसके लिए जनता आवाज उठाए। ये स्कूल सिर्फ सरकार के नहीं, आपके भी हैं।About The Author
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