नवाचार का उत्सव बने मानसून

सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना है

नवाचार का उत्सव बने मानसून

हमें इज़राइल के अनुभवों से सीखना चाहिए

गर्मी का मौसम, महंगाई, कई इलाकों में पेयजल की समस्या के बीच मौसम विज्ञान विभाग द्वारा की गई घोषणा कि 'इस बार मानसून में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना है', राहत की खबर है। भारत में कृषि उत्पादन का बहुत बड़ा हिस्सा बारिश पर निर्भर करता है। अगर मानसून समय पर आ जाए तो गांवों में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, लोगों की क्रय क्षमता बढ़ती है, खाद्यान्न की कीमतें नियंत्रण में रहती हैं, शहरों की ओर पलायन भी कम होता है। यह अनुमान इस लिहाज से भी खास है, क्योंकि इन दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 'टैरिफ के बम' फोड़ रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए अच्छा मानसून खुशहाली का संकेत है। चूंकि मौसम विज्ञान विभाग ने सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना जताई है, इसलिए हमें आसमान से बरसने वाले अतिरिक्त अमृत को सहेजने और उसके सदुपयोग के लिए भी तैयारी करनी चाहिए। हर शहर और गांव में नालियों की सफाई का ध्यान रखना होगा। पानी की निकासी का इंतजाम समय से पहले कर दिया जाए तो हादसों की आशंका कम होगी। इसके अलावा, जहां कहीं बिजली के खंभे, खुले तार आदि हैं, वहां सुरक्षा संबंधी कदम जरूर उठाने चाहिएं। हर साल बारिश के मौसम में कई लोगों की मौत करंट लगने से होती है। अगर स्थानीय प्रशासन थोड़ी-सी सावधानी बरत ले तो ऐसे हादसों को टाल सकता है। मानसून आने से पहले, पिछले दस वर्षों में हुए वर्षाजनित हादसों का अध्ययन करें। अब तो एआई आधारित सुरक्षा मॉडल की मदद ली जा सकती है। उसके जरिए भविष्य के लिए बेहतर योजनाएं बनाई जा सकती हैं। इसलिए अधिकारी हादसों का इंतज़ार न करें, उन्हें टालने के लिए पहले से ही तैयारी कर लें।

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हमारे देश में हर जगह की कृषिभूमि के साथ कई खूबियां जुड़ी हैं। अगर खेत में फसल बोने से पहले इस बात की सही जानकारी मिल जाए कि मिट्टी में किन तत्त्वों की कमी या अधिकता है, कौनसी फसल अच्छी हो सकती है, तो किसानों को बहुत फायदा होगा। मानसून के दस्तक देने से पहले ही गांवों में ऐसी व्यवस्था कर दी जाए कि किसान अपने खेत की मिट्टी का आसानी से परीक्षण करवाकर पर्याप्त जानकारी हासिल कर सकें। उन्हें उन्नत बीजों, बढ़िया खाद, सिंचाई के आधुनिक तरीकों का प्रशिक्षण दिया जाए। आज रसायन-युक्त खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण भूमि की उर्वरता घट रही है। वहीं, जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों की लोकप्रियता बढ़ रही है। हाल में सरकार ने कुछ किसानों को पद्म पुरस्कारों से भी सम्मानित किया है, जो ग्रामीणों को ऐसी खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनके अनुभवों का प्रचार किया जा सकता है। भारत एक विशाल देश है, लेकिन यहां कृषि योग्य भूमि का पूरा उपयोग नहीं हो रहा है। हमें इज़राइल के अनुभवों से सीखना चाहिए, जो क्षेत्रफल की दृष्टि से बहुत छोटा देश है, जबकि वह खेती और बागवानी करने के लिए अपने संसाधनों का बहुत कुशलतापूर्वक उपयोग करता है। वहां कई घरों, दफ्तरों, सार्वजनिक महत्त्व की इमारतों पर सब्जियां उगाई जाती हैं। इज़राइल उन इमारतों की दीवारों का भी पूरा उपयोग करता है। क्या हम अपने देश में ऐसा नवाचार नहीं कर सकते? यहां तो जगह की कोई कमी नहीं है। अगर लोगों को थोड़ी-सी जानकारी उपलब्ध करा दी जाए तो बहुत क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। इससे लोगों को महंगाई से कुछ राहत मिलेगी और पोषण के स्तर में बढ़ोतरी होने से देश भी सशक्त होगा। हम मानसून को नवाचार का उत्सव बनाएं।

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