क्या हम यह संकल्प लेंगे?
कागज के नक्शे पर खींची गईं कृत्रिम रेखाएं हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं कर सकतीं

पीओके में हाहाकार मचा है
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लंदन में चैथम हाउस थिंकटैंक के एक सत्र को संबोधित करते हुए जम्मू-कश्मीर से जुड़े सवाल का जो जवाब दिया, उससे रावलपिंडी और इस्लामाबाद में हंगामा हो गया। यह होना ही था। उन्होंने उचित ही कहा कि 'कश्मीर विवाद' का समाधान ‘कश्मीर के चुराए गए हिस्से की वापसी के बाद होगा, जो अवैध रूप से पाकिस्तान के कब्जे में है।’ यह राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति है। भारत मां का मुकुट तब तक अधूरा ही है, जब तक हम पाकिस्तान और चीन द्वारा अवैध रूप से कब्जाए गए इलाके वापस नहीं ले लेते। इसमें समय लग सकता है। तब तक हमें तैयारी करनी चाहिए। कागज के नक्शे पर खींची गईं कृत्रिम रेखाएं हमारा वर्तमान और भविष्य तय नहीं कर सकतीं। यहूदी तो सदियों-सदियों तक पूरी दुनिया में घूमते रहे थे। आखिरकार उन्हें इजराइल मिल गया। उनका संकल्प दृढ़ था। इससे पहले, दुनिया के किसी भी कोने में जब दो या इससे ज्यादा यहूदी मिलते और अलविदा कहते तो संकल्प को दोहराते कि हम या हमारी पीढ़ियां, एक दिन इजराइल में मिलेंगे। उस संकल्प में कितनी दृढ़ता रही होगी! क्या हम ऐसा संकल्प ले सकते हैं? क्या हम कह सकते हैं कि एक दिन शारदा पीठ में मिलेंगे और इस रास्ते में आने वाली एलओसी को मिटा देंगे? क्या हम यह संकल्प ले सकते हैं कि एक दिन भारत मां को उसका पूर्ण मुकुट पहनाएंगे? जो कौमें दृढ़ संकल्प लेती हैं, वे सिद्धि भी प्राप्त करती हैं। पिछले पांच वर्षों में जम्मू-कश्मीर के हालात बहुत बेहतर हुए हैं। आतंकवाद पर काफी काबू पा लिया गया है। अलगाववादी संगठनों की कमर टूट गई है। उनके हिमायती हतोत्साहित हैं। फंडिंग बंद होने से पत्थरबाज भी ठंडे पड़ गए हैं। आम कश्मीरी समझ चुका है कि उसका हित तिरंगे के साए में सुरक्षित है। किशोर और युवा अपना ध्यान पढ़ाई-लिखाई में लगा रहे हैं। दूसरी ओर, पीओके में हाहाकार मचा है। वहां कभी आटे के लिए तो कभी ईंधन के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगी रहती हैं।
पीओके के लोग सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर में विकास कार्यों और चीजों के दाम देखते हैं तो उस घड़ी को कोसते हैं, जब उनके यहां पाकिस्तान ने अवैध कब्जा किया था। कुछ परिवार, जो पूर्व में जम्मू-कश्मीर में रहते थे और पारिवारिक वजहों से पीओके चले गए, आज उनकी संतानें उनके फैसलों पर सवाल उठा रही हैं। उनके पास मौका था, जब वे पाकिस्तान के पंजे से जान छुड़ाकर जम्मू-कश्मीर की खुली हवा में सांस ले सकते थे, लेकिन उनका दुर्भाग्य रहा कि आज पाकिस्तानी फौज उनकी छाती पर मूंग दल रही है। उक्त पंक्तियों में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के कुछ सवालों के जवाब भी हैं। हम पीओके कब वापस लेंगे? कारगिल युद्ध के समय देश के पास पीओके को लेने का मौका था, लेकिन क्यों नहीं लिया? पीओके वापस लेने का सबसे अच्छा समय तब होगा, जब वहां रहने वाले लोग पाकिस्तान के कब्जे से त्रस्त होकर आवाज बुलंद करें। इसकी कुछ झलकियां हम पूर्व में देख चुके हैं, लेकिन अभी और इंतजार करना चाहिए। पीओके के लोगों का सिर्फ इस आधार पर पाकिस्तानी कब्जे के खिलाफ खड़े हो जाना काफी नहीं है, चूंकि वहां चीजें महंगी हैं और जम्मू-कश्मीर में सस्ती हैं। उन्हें सांस्कृतिक आधार पर भारत के साथ एकजुटता दिखानी होगी। यह न भूलें कि पीओके में अब वह पीढ़ी जवान हो चुकी है, जिसके दिलो-दिमाग में पाकिस्तानी एजेंसियों और कट्टरपंथियों ने भारत के खिलाफ खूब जहर भर दिया है। कारगिल युद्ध के दौरान बेशक हमारे पास मौका था कि भारतीय सेना पीओके में दाखिल हो और कब्जा कर ले। जब पीओके की बात होती है तो इसका मतलब सिर्फ जमीन नहीं है, वहां के लोग भी हैं। पाकिस्तान ने पीओके में बड़ी संख्या में आतंकवादियों और कट्टरपंथियों को बसा रखा है। अगर ऐसे लोग इधर आते तो कई समस्याएं खड़ी करते। याद करें, इराक, सीरिया, अफगानिस्तान जैसे देशों से आम शरणार्थियों के साथ कई आतंकवादी भी यूरोप चले गए थे। आज वे कहीं धमाका कर रहे हैं, कहीं आम लोगों को चाकू मार रहे हैं, कहीं भीड़ पर ट्रक चढ़ा रहे हैं, कहीं आराधना स्थलों में तोड़फोड़ कर रहे हैं। पीओके लेने से पहले आतंकवाद का पूरी तरह खात्मा करना जरूरी है। अभी जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खात्मे की ओर है। उसके बाद पीओके में पल रहे आतंकवादियों का नंबर आएगा। भारत मां का मुकुट जरूर अखंड बनाएंगे। क्या हम यह संकल्प लेंगे?