लीपापोती की नाकाम कोशिश
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुए थे

मो. यूनुस की खूब किरकिरी हुई थी
बांग्लादेशी सीमा सुरक्षा बल 'बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश' (बीजीबी) के महानिदेशक मेजर जनरल मोहम्मद अशरफुज्जमां सिद्दीकी द्वारा दिया गया यह बयान कि उनके देश में 'अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं हुए और खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर’ पेश किया गया', अत्याचार पर लीपापोती की नाकाम कोशिश है। सिद्दीकी के इस दावे पर कैसे यकीन किया जा सकता है, जब इतनी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है? यह तीस-चालीस साल पुराना दौर नहीं है, जब ऐसी घटनाओं को दबा देने की काफी गुंजाइश रहती थी। शेख हसीना के जान बचाकर भारत आने के बाद बांग्लादेश में जिस तरह अराजकता फैली और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया, उसे सोशल मीडिया पर पूरी दुनिया ने देखा था। उसके वीडियो आज भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं। सिद्दीकी कितने वीडियो को झुठलाएंगे? जब बांग्लादेश में उथल-पुथल जारी थी, तब भारत में कई यूट्यूब चैनल इस पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठा रहे थे। उन वीडियो के नीचे कई बांग्लादेशी हिंदुओं और ईसाइयों ने टिप्पणियां की थीं कि 'हम असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, हम भयभीत हैं, हमारी सहायता करने के लिए कोई नहीं है और हम अपने भारतीय भाइयों-बहनों से उम्मीद करते हैं कि वे हमारी आवाज उठाएंगे।' कई टिप्पणियां बांग्ला भाषा में की गई थीं, जिनके स्वत: अनुवाद की सुविधा के कारण बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि सिद्दीकी के दावे में दम नहीं है। सिद्दीकी उन बांग्लादेशी अखबारों की रिपोर्टों के आधार पर दुनिया के सामने यह झूठ पेश कर सकते हैं, जो शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा पर हथौड़े चलाए जाने की खबरें प्रकाशित करने से हिचकते रहे। जहां राष्ट्रपिता के सम्मान की यूं सरेआम धज्जियां उड़ाई गईं, महिला प्रधानमंत्री के वस्त्रों को सड़कों पर अश्लीलतापूर्वक लहराया गया, अवामी लीग के कार्यालयों और नेताओं-कार्यकर्ताओं के घरों पर धावा बोला गया, वहां अल्पसंख्यकों पर हमले नहीं हुए? सिद्दीकी किसके द्वारा लिखी गईं पंक्तियां बांच रहे हैं?
ये बांग्लादेशी अधिकारी कहते हैं कि उनके देश के 'प्राधिकारियों ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए', जिसके समर्थन में यह उदाहरण दे रहे हैं कि उनकी 'सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अपने अधिकार क्षेत्र के आठ किलोमीटर के भीतर दुर्गापूजा पंडालों को ‘व्यक्तिगत रूप से’ सुरक्षा प्रदान की!' अगर दुर्गापूजा पंडालों की सुरक्षा के लिए सेना को तैनात करना पड़ जाए तो यह अपनेआप में इस बात की पुष्टि है कि वहां अल्पसंख्यकों पर खतरा था, उन पर हमले हुए थे। कोई भी देश सेना को कब तैनात करता है? अगर खतरे की कोई बात ही नहीं होती तो स्थानीय पुलिसकर्मियों को तैनात किया जा सकता था। यकायक कोई सेना को नहीं बुलाता। जब मामला पुलिस के हाथ से निकल जाए, कानून व्यवस्था बेपटरी हो जाए और खतरा टलने का नाम न ले तो सेना का ही सहारा लेना बाकी रह जाता है। बीजीबी के महानिदेशक यह कहकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं कि ‘इसका प्रमाण हाल में आयोजित दुर्गापूजा है, जो सबसे शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित और व्यवस्थित हिंदू त्योहारों में से एक था। बांग्लादेश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सरकार से बहुत सख्त हिदायत मिली थी, ताकि हिंदू समुदाय इसे कर सके।’ वास्तव में सरकार की ओर से बहुत सख्त हिदायत मिलना सिद्ध करता है कि बांग्लादेश में बड़े स्तर पर हिंसा हुई थी, जिसकी चपेट में अल्पसंख्यक भी आए थे। सरकार के मुखिया के तौर पर मोहम्मद यूनुस कोरी बयानबाजी करते रहे। उधर, कट्टरपंथियों ने भारी उपद्रव मचा रखा था। इससे यूनुस की खूब किरकिरी हुई थी। बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए भारत से लेकर अमेरिका तक प्रदर्शन हुए थे। यूनुस को निश्चित रूप से इस बात को लेकर आशंका थी कि अगर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अब कोई उपाय नहीं करेंगे तो 'कार्रवाई' हो सकती है। अगर उन्होंने 'बहुत सख्त हिदायत' दी होगी, तो इसी के मद्देनजर दी होगी। सिद्दीकी ने लीपापोती की बहुत कोशिश की, लेकिन वे अपने शब्दों से बांग्लादेशी सरकार की पोल खोलते गए। बेहतर होता कि वे इतनी ऊर्जा उन उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई करने में लगाते, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश की प्रतिष्ठा को पलीता लगा दिया है।