अब भारत करे कार्रवाई
अवैध बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं और घुसपैठियों को निकालना चाहिए

हमारे संसाधनों से घुसपैठिए मौज क्यों उड़ाएं?
अमेरिका में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के तौर-तरीकों की आलोचना होने के बावजूद सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देशवासियों को दिखाना चाहते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान जो वादे किए थे, उन्हें मजबूती से निभा रहे हैं। अमेरिका के विभिन्न शहरों से अवैध प्रवासियों की धर-पकड़ के विरोध में स्वर तो उठे, लेकिन अब इस तर्क को भी समर्थन मिलने लगा है कि 'जो लोग चोरी-छिपे किसी देश में दाखिल हो जाएं, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए?' अभी अमेरिका ऐसे और लोगों को निकालेगा। इससे यह धारणा दृढ़ होगी कि अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने के लिए अवैध प्रवासियों को निकालना न्यायोचित है। अब इसी तर्क को आधार बनाकर भारत को भी अपनी जमीन पर रहने वाले अवैध बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं और तमाम घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर लेनी चाहिए। भारत इनका बोझ क्यों उठाए? भारत सरकार की जिम्मेदारी अपने नागरिकों का कल्याण करने की है। हमारे संसाधनों से अवैध बांग्लादेशी, रोहिंग्या और अन्य घुसपैठिए मौज क्यों उड़ाएं? भारतीय करदाताओं का एक-एक पैसा भारत के नागरिकों की सुख-समृद्धि के काम आना चाहिए। अब तो 'महाशक्ति' अमेरिका खुलकर स्वीकार कर चुका है कि उसके यहां महंगाई, बेरोजगारी और अपराधों में वृद्धि के पीछे अवैध प्रवासियों का बड़ा किरदार है। ये समस्याएं हमारे देश में भी हैं। यहां अवैध प्रवासी हमारे संसाधनों का लुत्फ उठा रहे हैं। वे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को संकुचित कर रहे हैं। उनमें से बहुत लोग अपराधों में लिप्त हैं। हाल में अभिनेता सैफ अली खान पर हमले के आरोप में एक बांग्लादेशी नागरिक को गिरफ्तार किया गया था।
भारत में अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए यह बहुत अनुकूल समय है। प्राय: ऐसी कार्रवाइयों पर अमेरिकी सरकार बहुत सवाल उठाती है। उसके अधिकारी प्रेसवार्ताओं में मानवाधिकारों का मुद्दा उठाते हुए यह जरूर कहते हैं कि 'हम स्थिति पर करीब से नजर बनाए हुए हैं।' उसके कथित थिंक टैंक तो सालभर ही ऐसी रिपोर्टें प्रकाशित करते रहते हैं, जिनमें 'असहिष्णुता' पर बहुत चिंता जताई जाती है। अब उनके पास भारत को ऐसी नसीहत देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। ट्रंप के आदेश पर अवैध प्रवासियों को जंजीरों से जकड़कर सैन्य विमानों से रवाना किया जा रहा है। सोचिए, अगर भारत सरकार इससे आधी तादाद में अवैध प्रवासियों को यात्री विमान / वाहन में बहुत गरिमापूर्ण ढंग से भेजने की कोशिश करती तो अब तक कई संगठन इस कार्रवाई के विरोध में धरने पर बैठ जाते। कुछ बुद्धिजीवी तो अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए पूरी प्रक्रिया को अवरुद्ध करने की कोशिश करते। वे इन तर्कों के साथ इधर ही घुसपैठियों के टिके रहने का आधार तैयार करते- 'अब ये कहां जाएंगे ... हम तो वसुधैव कुटुंबकम् को मानने वाले लोग हैं ... यहां इतने सारे लोग रहते हैं, ये भी रहेंगे तो क्या हो जाएगा ... क्या इन्हें निकालने से महंगाई कम हो जाएगी ... कभी तो हम एक ही थे ... ये सब लोग थोड़े ही अपराध करते हैं ... अगर इन्हें निकालेंगे तो अमेरिका क्या कहेगा, दुनिया क्या कहेगी ...!' अवैध प्रवासियों की हिमायत में खड़े होने वाले संगठन अमेरिका में भी हैं, लेकिन राष्ट्रपति की सख्ती के आगे वे विवश हैं। ट्रंप को अमेरिकी नागरिकों से समर्थन मिल रहा है। वे स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी प्राथमिकता सूची में 'अमेरिका' और 'उसके लोगों की भलाई' हैं। उनकी कार्यशैली को पसंद या नापसंद किया जा सकता है, लेकिन इस बात से हर विवेकशील व्यक्ति सहमत होगा कि अपने नागरिकों को वंचित रखकर विदेश से अवैध ढंग से आए लोगों का पालन-पोषण करना उस सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। भारत भी अपनी जमीन पर ऐसे लोगों को बिल्कुल बर्दाश्त न करे। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।