कुवैत से रिश्तों की नई परिभाषा

मोदी के लिए कुवैत एयरपोर्ट पर रेड कॉर्पेट बिछाकर स्वागत किया गया

कुवैत से रिश्तों की नई परिभाषा

Photo: indianembassykuwait FB Page

विजय श्रीवास्तव
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भारत जैसे उभरते देश ने अपनी मेहनत, कड़े परिश्रम, संवेदनशीलता और मधुर संबंधों के साथ-साथ व्यापारिक संबंधों की भी नई परिभाषा लिखी है| अगर कुछ देशों को छोड़ दें तो भारत के किसी भी देश के साथ संबंधों में कड़वाहट नहीं है| हालांकि जिन देशों के साथ भारत की कड़वाहट है, उसके लिए भारत दोषी नहीं है| हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुवैत यात्रा मजबूत साझेदारी और साझा दृष्टिकोण पर आधारित होकर सतत विकास को बढ़ावा देने के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने का भी लक्ष्य रखती है| दोनों देशों के आला नेताओं की इस मुलाकात ने संयुक्त राष्ट्र सुधारों और उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया है|

प्रधानमंत्री मोदी दो दिन की कुवैत यात्रा से भारत लौट आए हैं और वहां से वे अपने साथ लेकर आए हैं जबरदस्त आत्मविश्वास और एक बेहतरीन साझेदारी की सौगात| पीएम मोदी का कुवैत पहुंचने पर न सिर्फ सम्मान हुआ, बल्कि ऐसा पहली बार है जब किसी भारतीय पीएम को कुवैत ने अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर से नवाजा है| मोदी को यह सम्मान कुवैत के अमीर शेख मिशाल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा ने दिया| पीएम मोदी को किसी देश से मिलने वाला ये २०वां अंतरराष्ट्रीय सम्मान है| ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर कुवैत का एक नाइटहुड ऑर्डर अवॉर्ड है| यह दोस्ती की निशानी के तौर पर राष्ट्राध्यक्षों-विदेशी शासकों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को कुवैत में दिया जाता है| मोदी से पहले इस पुरस्कार से बिल क्लिटंन, प्रिंस चार्ल्स और जॉर्ज बुश जैसे नेताओं को नवाजा जा चुका है|

ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी से पहले कुवैत जाने की कोई मनाही थी या कुवैत से हमारे कोई व्यापारिक संबंध नहीं हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी के लिए कुवैत एयरपोर्ट पर रेड कॉर्पेट बिछाकर स्वागत किया गया| भारत के पीएम की यह यात्रा अरब के देशों के साथ अपने संबंध और मधुर एवं मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है| दोनों देशों के बीच मजबूत कारोबारी और सांस्कृतिक रिश्ते पहले से ही बरकरार हैं| राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत से कुवैत के चार घंटे के सफर को पूरा करने में भारत को चार दशक यानी कि ४० साल लग गए| पीएम मोदी से पहले सिर्फ इंदिरा गांधी एकमात्र भारत की प्रधानमंत्री थीं, जो कुवैत दौरे पर गई थीं| उनके बाद हमारे व्यापारिक संबंध तो कुवैत से बने रहे, लेकिन कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत नहीं पहुंच पाया|

प्रधानमंत्री मोदी शायद इसीलिए दुनियाभर में सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में शुमार हैं, क्योंकि उन्हें रिश्ते बनाने आते हैं और दूसरी सबसे बड़ी बात उन्हें भुनाना भी आता है| यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी की वजह से आज विश्व पटल पर भारत सबसे विकासशील देशों की श्रेणी में शामिल है| पीएम मोदी की दूरदृष्टि और कूटनीति के चलते आज दुनिया की महाशक्ति माने जाने वाले देश रूस और अमेरिका भी भारत को विश्व मंच पर विशेष दर्जा देते हैं| पीएम मोदी की इस यात्रा से फार्मास्यूटिकल्स, आईटी, फिनटेक, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सिक्योरिटी जैसे विषयों पर साझेदारी दोनों देशों के बीच और बढ़ेगी| साथ ही कुवैत और भारत के रिश्तों को नई दिशा मिलेगी| मोदी की कुवैत यात्रा के बाद दोनों देशों में न सिर्फ घनिष्ठ संबंध और अच्छे होंगे, बल्कि इससे रणनीतिक साझेदारी भी होने की संभावना है| पीएम मोदी की यह यात्रा भारत-कुवैत के संबंधों को आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर नई ऊंचाई प्रदान करेगी|

भारत जैसे विकासशील देश में मानव संसाधन, कौशल और तकनीक की कोई कमी नहीं है| वहीं कुवैत जैसे अरब देशों में पैसे की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन इन देशों में श्रमिकों की कमी है, जिसे पूरा करने का काम भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और कुछ अफ्रीकी देश करते हैं| पीएम अपनी यात्रा के दौरान एक श्रमिक शिविर में भी पहुंचे, जहां ९० फीसदी कामगार भारतीय थे| कुवैत की आबादी में १० लाख भारतीय हैं| कुवैत की कुल आबादी में भारतीयों की २१ फीसदी हिस्सेदारी है| वहीं कामगारों में ३० फीसदी भारतीय हैं, जिससे यहां रहने वाले भारतीय हर साल लगभग ४.७ अरब डॉलर भारत भेजते हैं| भारत की ईंधन जरूरतें पश्चिम एशिया के देश पूरी करते हैं और पश्चिम एशिया में भारतीय कामगारों की बड़ी आबादी निवास करती है| अब चाहें वो कामगार श्रमिक हों या आईटी, मेडिकल, टेक्नोलॉजी और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोग हों|

कुवैत के साथ भारत के रिश्ते कैसे हैं, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों देशों के बीच २०२३-२४ में १०.४७ अरब डॉलर का कारोबार हुआ| इस कारोबार में तेल और ऊर्जा उत्पाद का बड़ा हिस्सा है| कुवैत भारत को तेल आपूर्ति करने वाला छठा सबसे बड़ा तेल देश है| बहरहाल भारत ने अपने दोतरफा रिश्ते को रणनीतिक साझेदारी में बदलने का काम किया है, जिसमें एक तरफ हम उनसे कच्चा तेल ले रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ भारत के कामगार वहां काम कर रहे हैं| ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री की ४३ साल बाद कुवैत यात्रा के कई सकारात्मक मायने निकाले जा रहे हैं| अगर इन मायनों का कुछ बनता है तो भारत के खाड़ी देशों से रिश्ते और मजबूत हो जाएंगे, जो कि भारत की बड़ी रणनीतिक जीत साबित होगी|

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