आखिर कब तक?

बच्चों को समय रहते बताना चाहिए कि बेशक दुनिया में भलाई है, लेकिन यहां बुराई भी मौजूद है

आखिर कब तक?

प्राय: किशोरावस्था में कई बच्चे क्षणिक आकर्षण को ही प्रेम समझ बैठते हैं

दिल्ली में शाहबाद डेयरी इलाके में नाबालिग लड़की के हत्याकांड का वीडियो रोंगटे खड़े कर देनेवाला है। कोई व्यक्ति इतना क्रूर कैसे हो सकता है? आरोपी मोहम्मद साहिल उस लड़की पर जिस तरह दनादन चाकू चला रहा था, उससे साफ पता चलता है कि उसे इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देते हुए कोई डर नहीं था। 

देश में इस तरह का यह पहला मामला नहीं है। पहले भी कई बेटियां सिरफिरे आशिकों की शिकार हो चुकी हैं। आखिर हमारा समाज कब जागेगा और कब ऐसे मामलों पर गंभीरता से विचार करेगा? जब श्रद्धा वाल्कर हत्याकांड हुआ था तो कुछ दिन बहुत शोर मचा, आरोपी आफताब पूनावाला को कठोर सजा देने की मांग की गई, बेटियों की सुरक्षा और सावधानी को लेकर बहस होती रही। फिर धीरे-धीरे वही पुराना ढर्रा चल पड़ा। 

आखिर बेटियां इस किस्म के लोगों के जाल में क्यों फंस जाती हैं, जो पहले तो प्यार की मीठी-मीठी बातें कर उनसे मोहब्बत का झूठा नाटक करते हैं ... फिर मौका पाकर अपनी असलियत दिखाते हैं और गले पर छुरी चलाने से भी नहीं झिझकते? क्या मां-बाप के पास इतना भी समय नहीं कि अपने बच्चों को समझा सकें कि क्या ग़लत है और क्या सही है? 

ऐसे मामलों के लिए साहिल और आफताब जैसे क्रूर मानसिकता वाले सिरफिरे आशिकों को एकमात्र ज़िम्मेदार ठहराकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। आज बड़े शहरों की तो बात ही क्या, कस्बों और गांवों में भी मां-बाप के पास अपने बच्चों से बातचीत के लिए समय नहीं होता। परिवार के लिए जरूरी किसी विषय पर बातचीत किए कई हफ्ते और महीने बीत जाते हैं। इस संवादहीनता के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

आज बच्चा कहां जा रहा है, किससे दोस्ती कर रहा है, मोबाइल फोन पर क्या देख रहा है, किससे चैटिंग कर रहा है ... इसकी जानकारी मां-बाप को होना जरूरी है। सिर्फ रुपए कमाना, महंगे स्कूलों में एडमिशन कराना, ज़रूरत की चीजें लाकर दे देना काफी नहीं है। 

प्राय: कई किशोर और युवा सोशल मीडिया और फिल्मों की आभासी दुनिया को ही असल ज़िंदगी समझ लेते हैं। उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि यह ज़िंदगी किसी रोमांटिक फिल्म जैसी है, जहां ठंडी हवाएं चलने लगेंगी ... फूल बरसने लगेंगे ... वायलिन की धुन पर कोई मधुर गीत गाते हुए उन्हें ऐसी दुनिया में ले जाएगा, जहां न कोई ग़म होगा, न कोई परेशानी होगी और न किसी चीज़ की कमी होगी। बस 'प्यार' से ही गुजारा हो जाएगा! 

बच्चों को समय रहते बताना चाहिए कि बेशक दुनिया में भलाई है, लेकिन यहां बुराई भी मौजूद है। आपको सावधानीपूर्वक भलाई के रास्ते पर चलना है और बुराई से दूर रहना है। प्राय: किशोरावस्था में कई बच्चे क्षणिक आकर्षण को ही प्रेम समझ बैठते हैं। वे युवावस्था तक पहुंचते-पहुंचते साथ जीने-मरने की कसमें खा लेते हैं। 

शुरुआत में यह सब बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि तब तक उन्हें एक-दूसरे की कमियों/बुराइयों के बारे में ज्यादा मालूम नहीं होता। फिर किसी कारण से आकर्षण क्षीण हो जाता है, मोहभंग हो जाता है, तो झगड़े होने लगते हैं। कुछ मामलों में मारपीट और हत्या तक हो जाती है। श्रद्धा वाल्कर मामले में तो आफताब ने उस युवती की हत्या कर शव के टुकड़े किए और फ्रिज में रख दिए थे! उसने एक टीवी शो देखकर ठंडे दिमाग से पूरी साजिश रची थी। जो व्यक्ति किसी से 'प्यार' का दावा करता है, वह उससे ऐसी नफरत कैसे कर सकता है? 

शाहबाद डेयरी इलाके की घटना में भी साहिल क्रूरता की हदें पार करता नजर आया। उसने लड़की पर 20 से ज्यादा बार चाकू से वार किए थे। फिर उसे पत्थर से कुचल दिया, जिससे उसकी खोपड़ी टूट गई थी। लड़की के शरीर पर चोट के 34 निशान मिले हैं। 

यह भी पता चला है कि साहिल ने इस्तेमाल किया गया चाकू 15 दिन पहले खरीदा था, इसलिए यह अचानक भावावेश में की गई हत्या नहीं लगती। उसने पूरी साजिश रची होगी, फिर मौका पाते ही लड़की को मौत के घाट उतार दिया। पुलिस इस मामले की गहराई से छानबीन कर सभी सबूत जुटाए और पीड़ित परिवार को पूरा-पूरा इंसाफ दिलाए।

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