एक तीर, कई निशाने!
सचिन पायलट चुनावी साल में अपनी ही सरकार पर आरोपों की झड़ी लगाने से नहीं चूक रहे हैं
गहलोत इस तीर से कितने निशाने लगा पाएंगे या कितने चूकेंगे, यह तो समय ही बताएगा
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के आरोपों का जवाब देने के लिए जो तीर चलाया, उससे कई निशाने साधने की कोशिश की है। उन्होंने यह कहकर कि 'पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व विधायक कैलाश मेघवाल और विधायक शोभा रानी कुशवाहा ने पैसों के बल पर उनकी सरकार को गिराने के षड्यंत्र’ का समर्थन नहीं किया', एक बार फिर सचिन पायलट, उनके साथी रहे बागी विधायकों पर तो निशाना साधा ही, भाजपा में भी फूट डालने की कोशिश की है।
एक ओर जहां सचिन पायलट चुनावी साल में अपनी ही सरकार पर आरोपों की झड़ी लगाने से नहीं चूक रहे हैं, वहीं गहलोत उन्हें अपने ही अंदाज में आड़े हाथों लेते हुए भाजपा आला कमान से कहना चाह रहे हैं कि चुनाव चिह्न के आधार पर भले ही आपके नेता आपके साथ हों, लेकिन राजस्थान में उनकी (गहलोत) ही चलेगी और जरूरत पड़ी तो भाजपा नेता पार्टी लाइन से अलग रुख भी अपना सकते हैं!हालांकि वसुंधरा राजे ने गहलोत के इस दावे का कड़े शब्दों में खंडन करते हुए कह दिया कि 'मुख्यमंत्री द्वारा मेरी तारीफ करना मेरे ख़िलाफ़ उनका एक बड़ा षड्यंत्र है। मेरा जितना अपमान गहलोत ने किया, कोई कर ही नहीं सकता। वे साल 2023 के चुनाव में होने वाली ऐतिहासिक हार से बचने के लिए ऐसी मनगढ़ंत कहानियां गढ़ रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है और उनकी यह चाल कामयाब होने वाली नहीं है।’
जुलाई 2020 में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और 18 अन्य कांग्रेस विधायकों ने गहलोत के नेतृत्व के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया था, जिसके बाद पायलट की उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से छुट्टी हो गई थी। पायलट की बगावत कोई रंग तो नहीं लाई, लेकिन इससे प्रदेश कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की फूट खुलकर सामने आ गई थी।
उस घटना के बाद मुख्यमंत्री गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कई बार पायलट पर शब्दबाण छोड़े, लेकिन वे अपेक्षाकृत 'शांत' ही रहे। अब चुनावी साल में पायलट ने तीखे तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। वे राजस्थान की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के शासन काल में हुए कथित घोटालों की जांच की मांग को लेकर एक दिन का अनशन कर चुके हैं, जिसके जरिए उन्होंने वसुंधरा राजे और गहलोत पर निशाना साधकर खुद को ईमानदार दिखाने की कोशिश की।
उन्होंने पेपर लीक मामले में अपनी ही पार्टी की सरकार को घेरा, जिसके बाद गहलोत भी उसी शैली में जवाब देते नजर आ रहे हैं। उन्होंने पायलट और बागी विधायकों को उनकी सरकार गिराने की कोशिश का जिम्मेदार बताते हुए उन पर इशारों ही इशारों में करोड़ों रुपए लेने का आरोप भी मढ़ दिया। आसान शब्दों में कहा जाए तो कथित भ्रष्टाचार की जांच न कराने के पायलट के आरोपों का जवाब गहलोत ने आरोपों के रूप में दिया है।
गहलोत कांग्रेस आलाकमान तक भी यह बात पहुंचाना चाहते हैं कि उनकी सरकार को गिराने की कोशिशों के बावजूद वे अडिग रहे और उसे स्थिर रखने के लिए भाजपा नेताओं से कथित सहयोग पाने का रास्ता खोज लिया। गहलोत ने इस दावे के साथ अपनी ही पीठ थपथपाने की कोशिश की कि जब भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे और इलाज कराने अमेरिका गए थे, उस समय भी ‘ख़रीद-फरोख्त’ करके उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही थी, लेकिन उन्होंने (गहलोत) तब बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष इस 'साजिश' में साथ नहीं दिया था।
गहलोत इस तीर से कितने निशाने लगा पाएंगे या कितने चूकेंगे, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि विधानसभा चुनाव तक गहलोत-पायलट की जुबानी जंग कम होने के कोई आसार नहीं हैं।