डिजिटल डगर

यूपीआई ने डिजिटल भुगतान को बहुत आसान बना दिया है

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भारत सरकार को चाहिए कि डिजिटल भुगतान को अधिक सुरक्षित बनाते हुए इसके उपयोग को बढ़ावा

भारत की यूपीआई और सिंगापुर की पे नाऊ भुगतान प्रणाली के बीच संपर्क सुविधा की शुरुआत डिजिटलीकरण की दिशा में अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन शब्दों का उल्लेख आवश्यक है कि कई विशेषज्ञों का अनुमान है कि 'भारत का डिजिटल वॉलेट से होने वाला लेनदेन जल्द ही नकद लेनदेन को पीछे छोड़ देगा।' 

निस्संदेह यूपीआई ने डिजिटल भुगतान को बहुत आसान बना दिया है। इससे किसी को धन भेजना उतना ही सरल हो गया है, जितना कि मोबाइल फोन से एसएमएस भेजना। अब शहरों में ही नहीं, गांवों और ढाणियों में भी लोग यूपीआई के जरिए भुगतान करने लगे हैं। नकदी रखने, गिनने का कोई तामझाम नहीं, भुगतान का रिकॉर्ड रहेगा, सो अलग। 

अगर आने वाले कुछ सालों में डिजिटल लेनदेन नकद लेनदेन को बहुत पीछे छोड़ दे तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी। भारत में इसकी क्षमता और सामर्थ्य है। अब सिंगापुर जैसा देश, जो विज्ञान, संपन्नता और आधुनिकता में खास स्थान रखता है, की भुगतान प्रणाली के साथ यूपीआई की संपर्क सुविधा प्रारंभ हुई है तो इससे भारत की तकनीकी शक्ति की स्वीकार्यता और बढ़ गई है। भविष्य में कई देश इससे जुड़ने के लिए आतुर दिखाई देंगे। 

याद कीजिए, करीब छह साल पहले जब भारत में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने की मुहिम-सी चल पड़ी थी, तब मुख्य धारा और सोशल मीडिया के एक वर्ग में ऐसी दलील दी जा रही थी कि भारत में यह प्रणाली सफल नहीं हो सकती। क्यों नहीं हो सकती? इसका जवाब यह था कि लोगों को आदत नहीं है, उनके पास मोबाइल फोन नहीं है, इंटरनेट नहीं है। कहीं-कहीं तो यह कहा जा रहा था कि लोगों के पास पैसा नहीं है, तो कहां से करेंगे डिजिटल भुगतान?

इस अवधि में देश ने इन तमाम आशंकाओं को पूरी तरह ग़लत साबित कर दिया। जिस जनता को रूढ़िवादी, तकनीक से अनजान, संसाधनों से रहित बताया जा रहा था, उसने डिजिटल भुगतान में बड़े-बड़े देशों को पीछे छोड़ दिया है। अगर पिछले साल की ही बात करें तो यूपीआई के जरिए 126 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के लेनदेन हुए हैं। लेनदेन की संख्या 7,400 करोड़ से ज्यादा है। यह वो समय था, जब अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के प्रभाव से उबर रही थी। अब हालात और बेहतर हो गए हैं, इसलिए भरपूर उम्मीद है कि देश की जनता इस साल के आखिर में अपना ही पूर्व रिकॉर्ड तोड़ देगी। 

अक्सर यह भी कहा जाता है कि स्वदेशी डिजिटल उत्पाद/सेवाएं विकसित देशों के उत्पादों/सेवाओं की तुलना में कमतर होते हैं। यूपीआई ने इस धारणा को ध्वस्त कर दिया है। स्वदेशी स्तर पर तैयार यह प्रणाली देशवासियों के बीच इतनी लोकप्रिय हुई है तो इसकी वजह अच्छी गुणवत्ता के साथ लेनदेन की सुरक्षा भी है। अगर कोई प्रणाली सरल हो, लेकिन सुरक्षित न हो तो उसका खुलासा होते देर नहीं लगती। जल्द ही लोगों का उससे मोहभंग हो जाता है। यूपीआई सरलता और सुरक्षा दोनों से लैस है। 

अभी पे नाऊ प्रणाली के साथ संपर्क की स्थापना हुई है, इसलिए चुनिंदा बैंक ही लेनदेन की सुविधा देंगे। इसमें जो समस्याएं आएंगी, उनका समाधान तलाशा जाएगा। फिर अन्य बैंक भी इसे लागू कर पाएंगे। निस्संदेह इससे डिजिटल भुगतान बढ़ेगा, साथ ही सिंगापुर में प्रवासी भारतीयों, विद्यार्थियों, विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत पेशेवरों, उनके परिवारों को बहुत फायदा होगा। उनके लिए धन का लेनदेन बहुत आसान हो जाएगा। 

भारत सरकार को चाहिए कि डिजिटल भुगतान को अधिक सुरक्षित बनाते हुए इसके उपयोग को बढ़ावा दे, नकदी पर निर्भरता कम करे। इस कार्य में कई चुनौतियां आएंगी, लेकिन देश उन्हें स्वीकार करेगा और नए कीर्तिमान स्थापित करेगा।

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