निरोगी काया

हर कोई मानसिक रूप से तो काफी सक्रिय है, लेकिन शारीरिक सक्रियता कम होती जा रही है

निरोगी काया

निस्संदेह कोरोना महामारी ने हमें सिखा दिया कि अच्छे स्वास्थ्य का क्या महत्त्व है

हमारे पूर्वजों का कहना था कि पसीना कई बीमारियों की बेहतरीन दवा है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति शारीरिक रूप से सक्रिय रहता है, पसीना बहाता है, वह कई बीमारियों से सुरक्षित रहता है। एक हालिया शोध आंकड़ों के साथ इस मान्यता की पुष्टि कर चुका है। 

आज बच्चों से लेकर बड़ों तक हर कोई मानसिक रूप से तो काफी सक्रिय है, लेकिन शारीरिक सक्रियता कम होती जा रही है, जो चिंता की बात है। विशेषज्ञ तो यह भी कहते हैं कि शारीरिक निष्क्रियता वैश्विक स्तर पर मौतों की चौथी सबसे बड़ी वजह है। 

अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक शारीरिक रूप से निष्क्रिय रहता है तो इस बात की अधिक आशंका है कि उसे कई बीमारियां घेर लें। शोध यह भी कहता है कि अगर लोग शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय नहीं होंगे तो 2030 तक वैश्विक स्तर पर प्रमुख दीर्घकालिक बीमारियों से ग्रस्त लगभग 50 करोड़ नए मरीज सामने आ सकते हैं। यह आंकड़ा बहुत बड़ा है, कई देशों की कुल आबादी से भी कई गुना ज्यादा। 

आज जिस तरह व्यस्तता बढ़ गई है, उसको देखते हुए किसी ने सही कहा है कि हम 'फटाफट नहाते हैं, गटागट खाते हैं और सटासट काम पर निकल जाते हैं!' आदमी का जीवन मशीन की भांति होता जा रहा है। जब तक स्वास्थ्य ठीक रहता है, काम चलता रहता है। जिस दिन उसे बीमारियां आ घेरती हैं, वह जीवन और कामकाज के बीच संतुलन साधने में खुद को असमर्थ पाता है। 

जब कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था तो बहुत लोग ऐसे थे, जिन्हें संक्रमण नहीं हुआ, लेकिन अन्य बीमारियां हो गईं। कब्ज, जोड़ों में दर्द, विटामिन डी की कमी, खून की कमी, भोजन में अरुचि, हमेशा सुस्ती, कामकाज में अरुचि ...। 

विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन में जो लोग घर पर रहते हुए हल्के व्यायाम करते रहे, सुबह की धूप लेने के साथ योग, सात्विक आहार आदि को प्राथमिकता देते रहे, वे अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने में काफी हद तक सक्षम रहे। वे अन्य बीमारियों से भी बचे रहे।

निस्संदेह कोरोना महामारी ने हमें सिखा दिया कि अच्छे स्वास्थ्य का क्या महत्त्व है। कोरोना काल से लेकर अब तक नामी शोध संस्थानों ने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आमजन को जो सुझाव दिए, उनमें से लगभग वही हैं, जो हजारों साल पहले हमारे ऋषिगण दे चुके हैं। 

हाल में किए गए शोध में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के उस निष्कर्ष का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार पांच से 17 साल तक के बच्चों और किशोरों को रोजाना औसतन 60 मिनट तक मध्यम या तीव्र स्तर का व्यायाम करना चाहिए। इसी तरह शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के जो तरीके बताए गए हैं, वे भी बहुत आसान हैं, लेकिन अगर कोई इन्हें अपनी दिनचर्या में शामिल करता है तो वह कई बीमारियों से दूर रह सकता है। 

ये हैं- टहलना, साइकिल चलाना या पसंदीदा खेल खेलना। शोध के इन शब्दों पर ध्यान देने की जरूरत है कि ये 'सबसे आसान और कारगर तरीके' हैं; नियमित रूप से इन गतिविधियों का अभ्यास करने से कई दीर्घकालिक बीमारियों से बचाव में मदद मिलती है। 

ध्यान दें कि साल 2016 में दुनियाभर में 11 से 17 साल के 81 प्रतिशत बच्चों को शारीरिक रूप से असक्रिय पाया गया था। इनमें लड़कियां, लड़कों के मुकाबले ज्यादा असक्रिय थीं। महामारी के कारण स्थिति और बिगड़ गई। इसलिए बच्चों और किशोरों में शारीरिक निष्क्रियता वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता बन गई है। 

इसे वैश्विक कार्य योजनाओं में शामिल करना उचित ही है। ‘एक्टिव हेल्दी किड्स ग्लोबल एलायंस’ ने कोरोना से पहले और उसके प्रकोप के दौरान डेटा जुटाकर विश्लेषण किया तो पता चला कि बच्चों और किशोरों में शारीरिक सक्रियता के स्तर में कोई सुधार नहीं आया है। वैश्विक स्तर पर लगभग एक-तिहाई बच्चे और किशोर ही पर्याप्त शारीरिक गतिविधियां करते हैं। 

अगर बचपन ऐसा होगा तो युवावस्था कैसी होगी? आज जरूरत इस बात की है कि बच्चे और बड़े शारीरिक सक्रियता को बढ़ावा दें, प्रकृति से जुड़ाव रखें। जब जरूरी न हो, मोबाइल फोन के उपयोग से बचें। पहला सुख निरोगी काया है, जिसके लिए ईश्वर ने हमें प्रकृति के रूप में कई वरदान दिए हैं। इन वरदानों को भूलने का परिणाम कई बीमारियों के रूप में हमारे सामने है, जिन्हें थोड़ी-सी सूझबूझ से टाला जा सकता है।

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