पीड़ा का अध्याय

पीड़ा का अध्याय

हम भारत मां की संतान हैं और सदियों-सदियों से एकसाथ रहते आए थे, लेकिन कुछ चालाक राजनेताओं की कुटिल मंशाओं ने सबको बांट दिया


भारत विभाजन संसार की सबसे बड़ी त्रासदी था, जिसने लाखों लोगों का जीवन छीना और करोड़ों का घर-द्वार। उनके इस त्याग को गरिमापूर्ण सम्मान देना ही चाहिए। जिन्ना की जिद के कारण लाखों लोग काल के गाल में समाए थे, इसलिए आज़ादी के जश्न में उनकी पीड़ा को भी याद रखना चाहिए। उन लाखों लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए अकाल तख्त द्वारा विशेष अरदास समागम का आयोजन स्वागतयोग्य है।

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हर विवेकशील मनुष्य को उन लोगों के मारे जाने का दुःख अवश्य होगा। समागम में सभी समुदायों के लोगों द्वारा शिरकत और दोनों देशों (भारत-पाक) की सरकारों से उन दिवंगतों की याद में शोक प्रस्ताव पारित करने की मांग उचित ही है। विभाजन में हर समुदाय के लोग लहूलुहान हुए और भारत ने उन्हें सदा ही एक नज़र से देखा है, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया। इसलिए भारत हर उस मनुष्य की पीड़ा को महसूस करता है, जिसने विभाजन की विभीषिका में प्राण गंवाए। यह अत्यंत दुःख और वेदना का विषय है।

हम भारत मां की संतान हैं और सदियों-सदियों से एकसाथ रहते आए थे, लेकिन कुछ चालाक राजनेताओं की कुटिल मंशाओं ने सबको बांट दिया। यह भी याद रखना चाहिए कि जहां भारत में इस विभाजन को शोक और पीड़ा का अध्याय माना जाता है, वहीं पाकिस्तान में इसे फतह और फख्र का दिन समझा जाता है। इसलिए किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि जो संवेदनाएं भारतीयों के दिलों में होंगी, वैसी ही सरहद पार होंगी। ऐसा बिल्कुल नहीं है।

यह भी सत्य है कि भारत ने इतने घाव सहन करने के बावजूद बहुत प्रगति की है। देशवासियों ने जो एकजुटता दिखाई है, वह अद्भुत है। इसे हर दिन और मजबूत करते जाना चाहिए, लेकिन यह भी एक संयोग है या कहें कि कर्मफल है कि जिस पाकिस्तान की मांग कर भारत का विभाजन किया गया, उसी पाकिस्तान के 1971 में टुकड़े हो गए। कर्मफल से कोई नहीं बच सकता, चाहे मनुष्य हो या देश। जैसा कर्म किया जाता है, उसका फल भोगना ही होता है।

यह भी विचारणीय है कि जो हिंदू, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी आदि विभाजन के दौरान अपने प्राण बचाकर भारत आए, वे अपना सबकुछ पीछे छोड़कर आए थे। उन्होंने शून्य से शुरुआत की और आज दुनिया में उनके नाम का डंका बज रहा है। वहीं, पाकिस्तान आज एक-एक डॉलर के लिए मोहताज है। उसे कभी आईएमएफ के सामने हाथ फैलाना पड़ता है, कभी चीन के सामने झोली पसारनी होती है। वह दुनिया में आतंकवादी के रूप में पहले ही कुख्यात है। अब कंगाली के कारण बदहाली छाई है। कोई निवेशक नहीं मिल रहा, उद्योग-धंधे दम तोड़ रहे हैं। चीन अपने कर्ज का शिकंजा कसता जा रहा है।

किसी ने उचित ही कहा है कि जो चीज मेहनत और ईमानदारी से अर्जित की जाती है, उसका फल सात पीढ़ियां भोगती हैं, जबकि जो चीज अन्याय और अनीतिपूर्वक छीनी जाती है, उसका फल सात पीढ़ियां भुगतती हैं। पाकिस्तान को तय करना चाहिए कि वह इनमें से खुद को कहां पाता है। अगर उसके हुक्मरानों में जरा भी विवेक होगा तो वे अतीत की ग़लतियों से शिक्षा लेंगे और भारत के साथ मधुर संबंध बनाकर अपने नागरिकों का कल्याण करेंगे। अन्यथा उसकी हालत बिगड़ती ही चली जाएगी और उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

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