राहुल की नई मुद्रा

राहुल की नई मुद्रा

गुजरात के उफान भरे माहौल में राहुल गांधी को होश आया है कि देश के प्रधानमंत्री की क्या गरिमा होती है, क्या सम्मान दिया जाना चाहिए। यह राहुल गांधी का पश्चाताप है, सद्बुद्धि है या चुनावी रणनीति? उन्होंने कांग्रेस नेताओं और सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि एक सीमा के बाद प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कुछ न बोला जाए। उन पर व्यक्तिगत हमले न किए जाएं। प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस और पार्टी नेताओं को कुछ भी कहें, उन्हें कहने दिया जाए, लेकिन हमें प्रधानमंत्री पद का सम्मान और उसकी मर्यादा बरकरार रखनी है। आखिर वह पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं। सवाल है कि यह भाव राहुल ने तब क्यों नहीं दिखाया, जब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी। तब राहुल ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के आंगन में, पत्रकारों की मौजूदगी में, उस अध्यादेश को बकवास करार देते हुए फा़ड दिया था, जिसे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट ने पारित किया था। प्रधानमंत्री मोदी का संदर्भ लेते हैं। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह, प्रवक्ता मनीष तिवारी और वरिष्ठ नेता-सांसद मणिशंकर अय्यर आदि ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए जिन शब्दों, उपमाओं का इस्तेमाल किया है, आपत्तिजनक ट्वीट लिखे हैं, राहुल गांधी अपने सहयोगियों की हरकतों पर खामोश क्यों रहे? पीओजेके में सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद के दौर में खुद राहुल ने प्रधानमंत्री मोदी पर खून की दलाली के आरोप चस्पां क्यों किए? आखिर अब ऐसा क्या हो गया कि राहुल प्रधानमंत्री पद का सम्मान करना चाहते हैं? लेकिन कांग्रेस की ही निरंकुश जुबानों को क्या वह रोक पाएंगे? दरअसल गुजरात के हालिया चुनाव प्रचार के दौरान अपशब्दों का खूब प्रयोग हो चुका है। प्रधानमंत्री मोदी के अलावा, अमित शाह, अश्विनी चौबे, गिरिराज सिंह, साक्षी महाराज और निरंजन ज्योति आदि भाजपा नेताओं और मंत्रियों का उल्लेख करना भी भूल नहीं सकते, जिन्होंने राहुल गांधी को भिन्न-भिन्न विशेषण दिए हैं। राहुल को विदेशी तोता तक कहा गया है। पप्पू और शहजादा या युवराज तो सामान्य शब्द हो चुके हैं। सवाल यह है कि आखिर चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का सम्मान और पद की मर्यादा अभी क्यों याद आई है? यह पश्चाताप है या राजनीति? मां सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। जहर की खेती सरीखे शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया था। उसके कारण कांग्रेस को चुनावी पराजयों को झेलना प़डा, क्या उन्हीं के खौफ के मद्देनजर अब राहुल गांधी उस अतीत से कुछ सबक सीखना चाहते हैं? राहुल कभी नहीं चाहेंगे कि गुजरात का यह चुनाव मोदी बनाम अन्य बने, लिहाजा वह अभी से बचाव की मुद्रा में आते लग रहे हैं।

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