धर्म और राष्ट्र के लिए संतान का समर्पण सबसे महान: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

लाखों परिवारों के लिए यह त्याग किसी आश्चर्य से कम नहीं है

धर्म और राष्ट्र के लिए संतान का समर्पण सबसे महान: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

कोप्पल के संत का पहली बार हुआ पदार्पण

कोप्पल/दक्षिण भारत। कोप्पल के निवासी जैन मुनि वीरविमलसागरजी को लेकर पहली बार कोप्पल आए आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने अपने प्रवेश के मौके पर बुधवार को स्थानीय महावीर समुदाय भवन में उपस्थित जनों से कहा कि करीब साढ़े पांच वर्ष पूर्व अपने सुपुत्र को नन्हीं आयु में धर्म के पथ पर अर्पित कर मेहता परिवार ने गौरवशाली काम किया है। आधुनिक युग में जब हमारे किशोर और युवा गलत आदतों के अधीन होकर अपना जीवन बरबाद कर रहे हैं, तब धर्म या राष्ट्र के लिए अपनी संतान को समर्पित करना महत्तम त्याग है। 

Dakshin Bharat at Google News
उन्होंने कहा कि हजारों लाखों परिवारों के लिए यह त्याग किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जैन धर्म के पिछले पच्चीस सौ वर्षों के इतिहास में ऐसे हजारों बालक हैं, जो नन्हीं उम्र में संन्यास ग्रहण कर विद्वान संत या आचार्य बने। जिन्होंने समाज, धर्म, राष्ट्र और मानवता के अनेक ऐतिहासिक कार्य किए। आर्य जंबू, आर्य सुहस्ति, आचार्य सिद्धसेन, आचार्य हरिभद्र, आचार्य हेमचंद्र आदि अनेक ऐसे नाम हैं, जो इतिहास में अमर हो गए। जमाना उन्हें कभी भूल नहीं पाएगा।

विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि मोह और परिग्रह बहुत मजबूत होते हैं, इसलिए धन, भोजन, वाहन, समय या अपना घर किसी को देना सरल नहीं है। ऐसा त्याग सामान्यतया कोई करता नहीं, ज्यादातर लोगों में ऐसी उदारता नहीं होती। दुनिया अधिक से अधिक इकट्ठा करना चाहती हैं, त्याग करना लगभग कोई नहीं चाहता। इसलिए वे माताएं और वे परिवार सचमुच महान् होते हैं जो अपनी संतानों को धर्म, राष्ट्र या मानवता की राह पर अर्पित कर देते हैं। उनके बलिदान की बराबरी शायद कोई नहीं कर सकता। त्याग और बलिदान की यह संस्कृति ही धर्म और राष्ट्र का गौरव है। 

बुधवार को तेरापंथ धर्मसंघ के संत आकाश मुनिजी ने आचार्यश्री से मुलाकात की। उन्होंने बताया कि धर्म और समाज की रक्षा में हम सभी की रक्षा है। गणि पद्मविमलसागरजी ने प्राचीन जैनाचार्य हरिभद्रसूरि के कथन को आधार बनाकर कहा कि कभी भगवान से कुछ मांगने का समय आए तो कल्याणमित्र का साथ मांगना। सामान्य घनिष्ठ मित्र हमारे धन, परिवार, स्वास्थ्य और सुख की चिंता करेंगे, जबकि कल्याणमित्र हमारे आत्महित, धर्महित और कल्याण की चिंता करेगा। सैकड़ों मित्रों की भीड़ में भी एक कल्याणमित्र महत्त्वपूर्ण होता है। गलतियों और अपराधों से हमें बचाए तथा सही पथ पर आगे बढ़ाए, वही मित्र कल्याणमित्र कहा जाता है। 

इससे पूर्व चौपड़ा भवन के पास मेहता परिवार की ओर से संतों का भव्य स्वागत किया गया। शहर के राजमार्गों से उनकी शोभायात्रा निकाली गई। सैकड़ों भक्तजन स्वागत यात्रा में सम्मिलित हुए। मां संतोषदेवी ने अपने पुत्र और गुरु के आगमन पर भावपूर्ण प्रस्तुति दी। गुरुवार को सकल संघ के साथ संतगण मेहता परिवार के नूतन आवास पर कुमकुम के पगलिए हेतु जाएंगे।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download