ट्रंप के शिगूफे

क्या ट्रंप नोबेल पुरस्कार लेने के लिए माहौल बनाना चाहते हैं?

ट्रंप के शिगूफे

वे राष्ट्रपति पद की गरिमा घटा रहे हैं

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बड़बोलेपन के कारण मशहूर होते जा रहे हैं। वे इन दिनों अतिशयोक्तिपूर्ण दावे कर खुद को 'शांति पुरुष' के तौर पर पेश कर रहे हैं। क्या ट्रंप नोबेल पुरस्कार लेने के लिए माहौल बनाना चाहते हैं? उनके दावे तो ऐसा ही संकेत दे रहे हैं! कभी वे यह कहकर खुद के सियासी कद को बढ़ाने की कोशिश करते हैं कि मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष को ‘व्यापार का इस्तेमाल' कर रुकवा दिया। हालांकि उनके शब्दों को भारत ने खारिज कर दिया। अब वे ईरान और इजराइल के बीच समझौते का शिगूफा छोड़कर सुर्खियां बटोर रहे हैं। प्राय: अमेरिकी राष्ट्रपति के शब्दों में खास तरह की गंभीरता होती है। ट्रंप जिस किस्म की बयानबाजी कर रहे हैं, उससे वे राष्ट्रपति पद की गरिमा घटा रहे हैं। चूंकि यह उनका दूसरा और आखिरी कार्यकाल है, लिहाजा वे कोई ऐसा काम करना चाहते हैं, जिससे उनके नाम के साथ विशेष सम्मान जुड़ जाए। वे इसके लिए मनगढ़ंत दावे करने से भी परहेज़ नहीं कर रहे हैं। वास्तव में ट्रंप ने बैठे-बैठाए आत्मप्रचार का ऐसा नुस्खा ढूंढ़ लिया, जिसमें हल्दी लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आ जाए। वे चाहते हैं कि उनकी छवि एक ऐसे नेता की बने, जिसने दुनिया को परमाणु युद्ध से बचा लिया। ट्रंप वैश्विक शांति के प्रतीक बनना चाहते हैं। वे बड़े सैन्य संघर्षों के साथ खुद का नाम एक ऐसे शख्स की तरह जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं, जिसे दुनिया 'शांतिदूत' माने। इसके लिए उन्हें एक डॉलर भी खर्च नहीं करना पड़ रहा। बस, अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर चार लाइनें लिख देते हैं और माहौल बन जाता है। वे अब ईरान-इजराइल जैसे जटिल मुद्दे को खुद के नाम कर उसमें भी अपनी उपलब्धि दिखाना चाहते हैं।

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डोनाल्ड ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 घंटे में ख़त्म कराने का दावा करते थे। उसका क्या हुआ? युद्ध भले ही खत्म नहीं हुआ, लेकिन ट्रंप के कई समर्थकों को लगता है कि वे अमेरिका को फिर से महान बना रहे हैं। इस तरह ट्रंप खुद की 'डीलमेकर' की छवि को मजबूत कर रहे हैं, साथ ही रिपब्लिकन पार्टी को यह संदेश दे रहे हैं कि अगले चुनाव में उनकी भूमिका को नज़र-अंदाज़ नहीं किया जा सकता। वे राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने में निर्णायक भूमिका निभाना चाहते हैं। वे अपनी पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि राजनीति में कामयाबी के लिए उनके नेतृत्व के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ट्रंप व्यापार को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। उन्हें लगता है कि हर वैश्विक समस्या का एक ही समाधान है। क्या इस दावे पर विश्वास किया जा सकता है कि कोई देश ट्रंप की बात मान लेगा, क्योंकि वे टैक्स की दरें बढ़ा सकते हैं और व्यापार संबंधी प्रतिबंध लगा सकते हैं? ट्रंप चीन, रूस, ईरान जैसे देशों को कितना झुका पाए? वे उत्तर कोरिया के किम जोंग उन का क्या कर पाए? क्या वे चेतावनी देकर ईरान का परमाणु कार्यक्रम रोक सकते हैं? ईरान की परमाणु एजेंसी ने तो कह दिया है कि तेहरान द्वारा नया संयंत्र शुरू करने की तैयारी के कारण यूरेनियम संवर्धन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। ईरान तीसरे संवर्धन परिसर को 'सुरक्षित' स्थान पर सक्रिय करेगा। वहीं, पुतिन के तेवर तीखे बने हुए हैं। सिंधु जल संधि के संबंध में भारत का रुख भी सख्त है। केंद्र सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि अगर पाकिस्तान की ओर से दोबारा कोई आतंकी हरकत हुई तो भारत उसे किसी सूरत में नहीं बख्शेगा, बल्कि ज्यादा ताकत के साथ प्रहार करेगा। तो ट्रंप की 'चेतावनी' का कितना असर दिखाई दे रहा है? शून्य! अमेरिकी राष्ट्रपति को चाहिए कि अपने देश की ओर भी कुछ ध्यान दें। वे 'शांति पुरुष' दिखने की कोशिश में हंसी के पात्र ज्यादा बन रहे हैं।

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