चीनी ठगों के निशाने पर हमारे युवा
यह एक जाल है

जो इसमें फंसेगा, वह नुकसान में रहेगा
म्यांमार के म्यावाडी क्षेत्र का साइबर अपराध के गढ़ के रूप में उभरना भारत के लिए चिंता की बात है। वहां से साइबर अपराधी ऑडियो / वीडियो कॉल कर भारतवासियों को चूना तो लगा ही रहे हैं, वे कई नागरिकों को नौकरी का झांसा देकर उनका शोषण भी कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वहां कई दर्जन भारतीयों को साइबर अपराधियों के शिकंजे से बाहर निकाला गया है। ये लोग 'अच्छी नौकरी' पाने के लिए 'विदेश' गए थे, जहां इनका सामना खतरनाक साइबर अपराधियों से हुआ। उन्होंने इन्हें साइबर अपराध के धंधे में लगा दिया था। जिसने विरोध किया, उसका उत्पीड़न हुआ। साइबर अपराधियों के इन गिरोहों को चीनी ठग चला रहे हैं। चूंकि चीनी लोग भारतीय भाषाओं में पारंगत नहीं होते। उनमें से कोई व्यक्ति हिंदी सीख लेता है तो भी उसका उच्चारण ज्यादा स्पष्ट नहीं होता। ऐसे में चीनी ठगों ने पहले पाकिस्तानियों को खूब भर्ती किया था। पाकिस्तान के लोग हिंदी आसानी से समझ सकते हैं। जब वे नकली पुलिस अधिकारी बनकर वीडियो कॉल करते हैं तो उन पर जल्दी शक नहीं होता। बहुत लोग उनके जाल में फंस जाते हैं। हालांकि पाकिस्तानियों के साथ बड़ी समस्या यह थी कि वे हिंदी / अंग्रेजी के अनेक शब्दों का 'ठीक' उच्चारण नहीं कर पाते। जैसे- 'स्टेटमेंट', 'महाराष्ट्र', 'तेलंगाना', 'समस्या', 'आधार कार्ड' आदि का उच्चारण करते समय ज्यादातर पाकिस्तानी ठगों की पोल खुल ही जाती है। वे इन्हें क्रमश: 'इस्टेटमेंट', 'महाराश्टर', 'तिलंगाना', 'समसिया', 'अधार कारड' बोलते हैं। जो व्यक्ति इनके शब्दों पर जरा-सा ध्यान देगा, वह तुरंत समझ जाएगा कि ये पाकिस्तानी ठग हैं।
चीनी साइबर अपराधी इस बात को समझ चुके हैं। इसलिए वे भारतीय नौजवानों की 'भर्तियां' करने लगे हैं। चूंकि किसी भी भारतीय को अपने देश, समाज, भाषा, परंपराओं और तौर-तरीकों की जानकारी होती ही है, इसलिए उसे मोहरा बनाया जाएगा तो ज्यादा लोग फंसेंगे! जिन लोगों को साइबर अपराधियों के चंगुल से निकाला गया, उनका ताल्लुक गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक जैसे राज्यों से है। साइबर ठगी संबंधी कॉल्स की भाषाओं पर गौर करें तो पिछले कुछ महीनों में क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग बढ़ा है। इसकी वजह यह थी कि अब साइबर ठग उन लोगों को नौकरी का लालच देकर बुला रहे हैं, जिन्हें हिंदी के अलावा कोई क्षेत्रीय भाषा भी आती है। इस तरह उनका काम ज्यादा आसान हो जाता है। आम तौर पर पाकिस्तानी साइबर अपराधी पंजाब, सिंध और केपीके से होते हैं, जिन्हें हमारी ज्यादातर क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान नहीं होता। वे हिंदी और पंजाबी तो बोल सकते हैं, लेकिन तेलुगु, कन्नड़, तमिल, मलयालम, बांग्ला, उड़िया आदि भाषाओं में धाराप्रवाह बात करना उनके बूते से बाहर होता है। इसलिए चीनी गिरोहों के निशाने पर भारतीय युवा हैं। उन्हें म्यांमार के अलावा कंबोडिया में ऐसे गिरोह अपने जाल में फंसा चुके हैं। मोटी कमाई का झांसा देकर बुलाए गए ये भारतीय युवक जब वहां पहुंचते हैं तो इनके पैरों तले जमीन खिसक जाती है। इन्हें विभिन्न तरीकों से अपने ही देशवासियों को धोखा देना होता है। अगर कोई ऐसा करने से इन्कार करता है तो उसे भोजन नहीं दिया जाता, पिटाई की जाती है सो अलग। साइबर अपराधियों के इन गिरोहों के खिलाफ संबंधित देशों की सरकारों को कार्रवाई करनी चाहिए। इसके साथ ही भारतीय युवकों को चाहिए कि वे विदेश में मोटी कमाई के झांसे में न आएं। पहले पूरी जांच-पड़ताल करें। जिस कंपनी में नौकरी का वादा किया जा रहा है, उसके बारे में ऑनलाइन जानकारी जुटाएं। अगर किसी कंपनी का प्रतिनिधि खुशहाली के सब्ज बाग दिखाए, जल्द धनवान बनाने का वचन दे, सभी आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाने का संकल्प दोहराए तो इसे खतरे की घंटी समझें। कोई कंपनी इतनी ज्यादा समर्थ एवं साधन-संपन्न है तो वह पहले म्यांमार / कंबोडिया के नागरिकों का भला क्यों नहीं कर देती, जहां उसका दफ्तर है? उसे भारत से लोग क्यों चाहिएं? स्पष्ट है कि यह एक जाल है। जो इसमें फंसेगा, वह नुकसान में रहेगा।