नई पीढ़ी को धर्मशास्त्राें से ज्यादा गूगल पर भराेसा: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
भक्ति ताे भक्त की शक्ति, शांति और उन्नति के लिए है

जाे झूठ है और नष्ट हाेने वाला है, उसे पकड़कर बैठेंगे ताे दुःख ही प्राप्त हाेगा
भद्रावती/दक्षिण भारत। साेमवार काे स्थानीय पार्श्वनाथ जिनालय की 37वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में सत्तरभेदी पूजा और ध्वजाराेहण के बाद बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं काे संबाेधित करते हुए जैनाचार्य विमलसागरसूरीजी ने कहा कि वर्तमान समय बाैद्धिक और वैचारिक भ्रष्टता का युग है। आज लाेगाें काे धर्मशास्त्राें से ज्यादा गूगल पर भराेसा है।
कल दुनिया में आया गूगल जाे कह देता है, वह सच मान लिया जाता है, लेकिन हजाराें साल पुराने धर्मशास्त्र जाे कहते हैं, वहगले नहीं उतरता। यह दुर्भाग्यपूर्ण मानसिकता है। ऐसी मानसिकता के चलते भक्ति सफल नहीं हाे सकती।
बाहर के नश्वर तत्वाें और विचाराें से मनुष्य इतना आकर्षित और आसक्त हाे रहा है कि भीतरी तत्वाें से उसका संबंध टूटता जा रहा है। यह अपूरणीय क्षति है।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि यदि हम जीवन में यश-कीर्ति, सुख और सफलता चाहते हैं ताे हमें वैसा जीने का प्रयत्न करना चाहिए। कर्मवाद और मनाेविज्ञान का सिद्धांत है कि जैसा हम कर्म करते हैं, वैसा ही हमें जीवन मिलता है। इसलिए यदि अपने जीवन में दुःख और विफलताएं आती हैं ताे उसके लिए भगवान काे दाेष देने की आवश्यकता नहीं है। दाेष हमारा स्वयं का है। भगवान काे भक्त के द्वारा भक्ति की आवश्यकता भी नहीं है। भगवान कमजाेर नहीं हैं कि उन्हें भक्त की बैसाखियाें की आवश्यकता पड़े। भक्ति ताे भक्त की शक्ति, शांति और उन्नति के लिए है।
जैन संघ के अध्यक्ष रतनचंद लूणिया ने बताया कि ध्वजाराेहण के पश्चात आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने सभी श्रद्धालुओं काे अक्षत और वासक्षेप से आशीर्वाद प्रदान किया। रात्रिकालीन ज्ञानसत्र में गणि पद्मविमलसागरजी ने कहा कि तत्व और अतत्व तथा शाश्वत और नश्वर का भेद करना सीखना हाेगा। जाे झूठ है और नष्ट हाेने वाला है, उसे पकड़कर बैठेंगे ताे सुख नहीं, दुःख ही प्राप्त हाेगा। मानसिकता बदलनी हाेगी।