जड़ों से जुड़ाव
भारत और इंडोनेशिया के संबंध सदियों पुराने हैं

आज कट्टरपंथ पूरी दुनिया के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्राबोओ सुबिअंतो ने अपने डीएनए और संस्कृत भाषा के बारे में जो टिप्पणी की, वह ऐसा खुला सच है, जिसे स्वीकार करने से कई लोग हिचकते हैं। सुबिअंतो ने भारत के साथ अपने संबंधों को जिस तरह बयान किया, वह प्रशंसनीय है। अगर इस हकीकत को हमारे पड़ोस में कुछ देश स्वीकार कर लें तो कई झगड़े ही मिट जाएं। सुबिअंतो के शब्दों में- 'कुछ हफ़्ते पहले मैंने जेनेटिक सिक्वेंसिंग टेस्ट और डीएनए टेस्ट कराया था। उन्होंने मुझे बताया कि मेरा भारतीय डीएनए है। हर कोई जानता है कि मैं जब भी भारतीय संगीत सुनता हूं तो थिरकना शुरू कर देता हूं। यह ज़रूर उसी वजह से होगा।' यह सच है कि भारत और इंडोनेशिया के संबंध सदियों पुराने हैं। वहां किसी कालखंड में लोगों ने अपनी आस्था बदली, पूजन पद्धति बदली, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूले। इंडोनेशिया में हर साल रामलीला का धूमधाम से आयोजन किया जाता है। वहां लोगों से लेकर सार्वजनिक स्थानों और महत्त्वपूर्ण संस्थानों के नामों में संस्कृत की झलक मिलती है। वहां 87 प्रतिशत से ज्यादा आबादी इस्लाम धर्म का पालन करती है और हिंदुओं की आबादी लगभग 1.7 प्रतिशत है। उनकी मुद्रा पर गरुड़, गणेशजी, परंपरागत पहनावे और प्राचीन मंदिरों के चित्र देखे जा सकते हैं। 'गरुड़ा इंडोनेशिया' उसकी एयरलाइंस में विशेष स्थान रखती है। इंडोनेशिया की अंतरराष्ट्रीय छवि भी बहुत अच्छी है। इस देश के नेताओं की दूरदर्शिता सराहनीय है, जिन्होंने अपनी आस्था का पालन जरूर किया, लेकिन अपने पूर्वजों और उनसे जुड़ी पहचान को नकारने में ऊर्जा नहीं लगाई। अन्यथा उनकी हालत भी पाकिस्तान जैसी होती।
प्राबोओ सुबिअंतो की टिप्पणी से सहज ही समझा जा सकता है कि जो लोग अपनी वंशानुगत पहचान और भाषा संबंधी मामलों में उदार होते हैं, उनके लिए दूसरों के साथ घुलना-मिलना और प्रगति करना ज्यादा आसान होता है। उन्हें सबमें अपने मित्र नजर आते हैं। आज कट्टरपंथ पूरी दुनिया के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है। पूरा यूरोप पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, इराक, सीरिया जैसे देशों से आए कट्टरपंथियों से त्रस्त है। इन देशों में भारी अशांति है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में कट्टरपंथ भारत के लिए भी खतरा है। अगर इन देशों का इतिहास पढ़ें तो पता चलता है कि कभी उन इलाकों में बहुत शांति होती थी। अफगानिस्तान में बड़े-बड़े ध्यान केंद्र थे, जहां दूर-दूर से लोग आते और ध्यान का अभ्यास करते थे। वहां खुदाई में प्राचीन बौद्ध मंदिरों और प्रतिमाओं के अवशेष निकलते हैं। ऐसे कई स्थानों को आतंकवादियों ने बम से ध्वस्त कर दिया। पाकिस्तान और बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) सात दशक पहले भारत के अभिन्न अंग थे। ये दोनों ही इलाके बहुत समृद्ध थे। यहां विभिन्न कलाएं विकसित हुईं। इनके कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पादों की विदेशों में बड़ी धाक थी। आज हालात बिल्कुल उलट हैं। इन दोनों देशों में हाहाकार मचा हुआ है। दंगा-फसाद, बम धमाके, आगजनी जैसी घटनाएं आम हो चुकी हैं। महंगाई आसमान छू रही है और जनता पेट भरने के लिए खासी मशक्कत कर रही है। पाकिस्तान में कट्टरपंथ और आतंकवाद की जो फसल आज 'लहलहा' रही है, उसमें सबसे बड़ा किरदार जनरल ज़िया-उल हक़ का है। किसने सोचा था कि भारत से नफरत करते-करते पाकिस्तान इतनी दूर चला जाएगा कि उसके लोग भ्रमित होकर एक-दूसरे को ही तबाह करने को आमादा हो जाएंगे! बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे मोहम्मद यूनुस को इससे सबक लेना चाहिए, जो इन दिनों अपनी सांस्कृतिक पहचान की उपेक्षा करते हुए पाकिस्तान के साथ कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। जो कट्टरपंथ के वशीभूत होकर अपनी असल पहचान भूल जाता है, वह किसी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता, बल्कि मंझधार में गोते खाता रहता है।