हिंदी को समर्पित रहे विदेशी फादर कामिल बुल्के
सारी भारतीय भाषाएं हमें अपनी अस्मिता का बोध करवाती
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नंदकिशोर अग्रवाल
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सारी भारतीय भाषाएं हमें अपनी अस्मिता का बोध करवाती हैं तथा सब भारतीयता से जोड़ती हैं| देश की सभी भाषाओं का समृद्ध होना विविधता और संस्कृति के लिए बहुत जरूरी है| हिंदी जनमानस की भाषा है अतः इसे राष्ट्रभाषा बनना चाहिए्| यही बात 1918 में गांधी जी ने कही थी| कर्मस्थली और कर्म भूमि का मतलब है वहां की मिट्टी से जुड़ना| अत: वहां की स्थानीय भाषा में रचना-बसना होगा और वहीं की भाषा का आलिंगन दिलोजान से करना| फादर कामिल बुल्के ने अपने जीवन में ऐसा ही कुछ किया| उहोंने भारत आकर रोम-रोम में हिंदी को बसा लिया| भारतीय भाव को कामिल ने हिंदी के माध्यम से गले लगाया| मां भारती की भाषा हिंदी को समृद्ध करने में उनका अद्वितीय योगदान रहा है| वे ऐसे पादरी थे, जो ईसाई धर्म का प्रचार करने भारत आए थे और यहां आकर बन गए राम व हिंदी के प्रशंसक|
बेल्जियम में जन्मे ’फादर कामिल बुल्के’ बेल्जियम से ईसाई धर्म-प्रचार के लिए मिशनरी के रूप में भारत आए थे, लेकिन भारत आकर हिंदी, तुलसी और बाल्मीकि के रंग में रंग गए्| यहां तक कि उन्होंने ’राम कथा’ लिख डाली| उन्होंने ’अंग्रेजी हिंदी शब्द कोश’ तैयार कर हिंदी भाषा को एक अनूठी सौगात दी| शिक्षा के क्षेत्र में भारत द्वारा १९७४ में उन्हेंं पद्म भूषण से सम्मानित किया गया| बेल्जियम ने इस अवसर पर हिंदी की एक डाक टिकट जारी की, जिस पर हिंदी में लिखा था- ‘एक दूसरे को लिखें|’