एक महान शिक्षक के आदर्श विचार
सर, जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था तब हमारी कक्षा में चोरी की एक घटना घटी थी ...

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गोवर्धन दास बिन्नाणी 'राजा बाबू’
मोबाइल: 9829129011
उसने अपना नाम बताते हुये कहा- सर, जिस दिन आपने मेरी लाज बचायी थी, उसी दिन मैंने आप जैसा शिक्षक बनने का निर्णय कर लिया था और सर, अब मैं भी आपकी ही तरह शिक्षक बन गया हूँ|
ओह ! अच्छा.. ’वाह’ यह तो अच्छी बात है| लेकिन मैंने तुम्हारी लाज कब और कैसे बचायी.. वह बात कुछ स्मृति में नहीं आ रही|
फिर उनको याद दिलाते हुए उसने बताया.. सर, जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था तब हमारी कक्षा में चोरी की एक घटना घटी थी.. उसमें आपने मुझे बचाया था|
ग्यारहवीं कक्षा... ???
कौन सी घटना, थोड़ा विस्तार से बताओ, शायद याद आ जाय|
ठीक है सर, मैं आपको याद दिलाता हूँ..! आपको मैं भी याद आ जाऊँगा|
सर, उस समय हमारी कक्षा में एक बहुत अमीर लड़का पढ़ता था.. और उसकी महँगी घड़ी जो वह पहनकर आता था, उस दिन चोरी हो गयी थी ..कुछ याद आया सर?
हॉं सर.. उस दिन नाश्ते वाले समय के पहले मैंने देखा वह अपनी घड़ी पेंसिल वाले डिब्बे में रख रहा है तब मैंने मौका देख, वह घड़ी चुरा ली थी| उसके बाद जब आप कक्षा लेने आये, तब उसने आपसे चोरी की शिकायत की| तब आपने कहा था कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है, उसे वापस कर दे, मैं उसे सजा नही दूँगा| लेकिन डर के मारे, मेरी हिम्मत ही नहीं हुई|
फिर आपने कक्षा का दरवाजा बन्द कर हम सबके साथ-साथ उस छात्र को भी आँखें मूँद कतार बना खड़े होने को कहा और यह भी कहा कि आप सबकी जेबें देखेंगे| लेकिन जब तक घड़ी नहीं मिल जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नहीं खोलेगा, वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा|
हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए थे| आप एक-एक कर सबकी जेबें देख रहे थे| जब आप मेरे पास आये, तो मेरे दिल की धड़कन काफी तेज हो गई..! लेकिन मेरे जेब में घड़ी मिलने के बाद भी आप कतार में खड़े अन्य सभी की जेबों को भी टटोलते रहे और जब सब की जेबें टटोल लीं.. तब घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए बोले थे अब कभी ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नहीं आना और जिसने भी यह चोरी की थी, वह दोबारा ऐसा काम कभी न करे.. इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढ़ाने लग गये थे..! कहते-कहते उसकी आँखें भर आईं|
उसने भावुक हो रुँधे गले से कृतज्ञता जताते हुए कहा - आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा ही नहीं लिया, बल्कि अन्त तक मेरा चोर होना जाहिर नहीं होने दिया| आपके इसी कृत्य ने मुझे आप जैसा शिक्षक बनने के लिये प्रेरित किया|
इतना सब सुनने के बाद उस वृद्ध शिक्षक ने कहा - हॉं हॉं... मुझे याद आ गया| उनकी आँखों में चमक आ गयी|
उन्होंने आगे बताया बेटा... मैं भी आजतक नहीं जानता था कि वह चोरी किसने की थी, क्योंकि...जब मैं तुम सबकी जेबें देख रहा था, तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर रखी थीं क्योंकि मैं जानना भी नहीं चाहता था कि चोर कौन है!
यह जानकर वह अचम्भित होकर गुरूजी के चरणों में गिर गया और वन्दना करते हुए कहा - ‘गुरुजी आज फिर आपसे जिन्दगी का एक और पाठ सीख कर जा रहा हूँ...‘लौटते समय उसके मन-मस्तिष्क पर सन्त कबीरजी का निम्न दोहा छाया हुआ था - गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त| वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥
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