ऊर्जा का असीम और अनंत विकल्प है अक्षय ऊर्जा

देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर तेजी से बढ़ रहा है

ऊर्जा का असीम और अनंत विकल्प है अक्षय ऊर्जा

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.. योगेश कुमार गोयल ..
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पृथ्वी पर ऊर्जा के परम्परागत साधन बहुत सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं, ऐसे में खतरा मंडरा रहा है कि यदि ऊर्जा के इन पारम्परिक स्रोतों का इसी प्रकार दोहन किया जाता रहा तो इन परम्परागत स्रोतों के समाप्त होने पर गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी| यही कारण है कि पूरी दुनिया में गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने की जरूरत महसूस की जाने लगी और इसी कारण अक्षय ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति करने के प्रयास शुरू हुए| अक्षय का अर्थ है, जिसका कभी क्षय न हो अर्थात् अक्षय ऊर्जा वास्तव में ऊर्जा का असीम और अनंत विकल्प है और आज के समय में यह किसी भी राष्ट्र के अक्षय विकास का प्रमुख स्तंभ भी है| पिछले कुछ वर्षों से पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए ऐसी ऊर्जा तथा तकनीकें विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिनसे ग्लोबल वार्मिंग की विकराल होती समस्या से दुनिया को कुछ राहत मिल सके| किसी भी राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए आज प्रदूषणरहित अक्षय ऊर्जा स्रोतों का समुचित उपयोग किए जाने की आवश्यकता भी है| देश में अक्षय ऊर्जा के विकास और उपयोग को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए ही वर्ष 2004 से हर साल 20 अगस्त को अक्षय ऊर्जा दिवस भी मनाया जाता है|

आज न केवल भारत में बल्कि समूची दुनिया के समक्ष बिजली जैसी ऊर्जा की महत्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं, साथ ही पर्यावरण असंतुलन और विस्थापन जैसी गंभीर चुनौतियां भी हैं| चर्चित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के अनुसार इन गंभीर समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए अक्षय ऊर्जा ही एक ऐसा बेहतरीन विकल्प है, जो पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के साथ-साथ ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में भी कारगर साबित होगी लेकिन अक्षय ऊर्जा की राह में भी कई चुनौतियां मुंह बाये सामने खड़ी हैं| अक्षय ऊर्जा उत्पादन की देशभर में कई छोटी-छोटी इकाईयां हैं, जिन्हें एक ग्रिड में लाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है| इससे बिजली की गुणवत्ता प्रभावित होती है| भारत में अक्षय ऊर्जा के विविध स्रोतों का अपार भंडार मौजूद है लेकिन इनसे ऊर्जा उत्पादन करने वाले अधिकांश उपकरण विदेशों से आयात किए जाते हैं| डायरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार तीन वर्षों में सौर ऊर्जा के लिए करीब नब्बे फीसदी उपकरण आयात किए गए, जिस कारण बिजली उत्पादन की लागत काफी बढ़ जाती है|

देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर तेजी से बढ़ रहा है| देश में साढ़े तीन लाख मेगावॉट से भी अधिक बिजली का उत्पादन किया जा रहा है लेकिन यह हमारी कुल मांग से करीब ढ़ाई फीसदी कम है| भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम मंत्रालय द्वारा प्रकाशित २०वीं ऊर्जा सांख्यिकी रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 2011–12 से 2016–17 के बीच प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत 3.54 प्रतिशत बढ़ गई| वर्ष 2005-06 से 2018–19 के दौरान प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग में करीब दो गुना वृद्धि दर्ज की गई| केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष ११५० किलोवाट से भी अधिक बिजली का उपभोग किया जाता है| इसका एक अहम कारण देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या भी है| विशेषकर बिजली तथा ईंधन के रूप में उपभोग की जा रही ऊर्जा की मांग घरेलू एवं कृषि क्षेत्र के अलावा औद्योगिक क्षेत्रों में भी लगातार बढ़ रही है| औद्योगिक क्षेत्रों में ही बिजली तथा पैट्रोलियम जैसे ऊर्जा के महत्वपूर्ण स्रोतों का करीब 58 फीसदी उपभोग किया जाता है| औद्योगिक क्षेत्र के अलावा कृषि क्षेत्र तथा घरेलू कार्यों में भी ऊर्जा की मांग और खपत पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है| एक रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा उत्सर्जन 4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है|

हम जिस बिजली से अपने घरों, दुकानों या दफ्तरों को रोशन करते हैं, जिस बिजली या पैट्रोलियम इत्यादि ऊर्जा के अन्य स्रोतों का इस्तेमाल कर खेती-बाड़ी या उद्योग-धंधों के जरिये देश को विकास के पथ पर अग्रसर किया जाता है, क्या हमने कभी सोचा है कि वह बिजली या ऊर्जा के अन्य स्रोत हमें कितनी बड़ी कीमत पर हासिल होते हैं? यह कीमत न सिर्फ आर्थिक रूप से बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी धरती पर विद्यामान हर प्राणी पर बहुत भारी पड़ती है| भारत में थर्मल पावर स्टेशनों में बिजली पैदा करने के लिए कोयला, सोलर हीट, न्यूक्लियर हीट, कचरा तथा बायो ईंधन का उपयोग किया जाता है किन्तु अधिकांश बिजली कोयले के इस्तेमाल से ही पैदा होती है| विश्वभर में करीब 40 फीसदी बिजली कोयले से प्राप्त होती है जबकि भारत में ६० फीसदी से अधिक बिजली कोयले से, 16 फीसदी अक्षय ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा बायो गैस से, 14 फीसदी पानी से और 8 फीसदी गैस से पैदा होती है| सार्वजनिक क्षेत्र के सवा सौ से भी अधिक थर्मल पावर स्टेशनों में प्रतिदिन 18 लाख टन से अधिक कोयले की खपत होती है|

दुनियाभर में ऊर्जा क्षेत्र में 77 फीसदी कार्बन उत्सर्जन बिजली उत्पादन से ही होता है| इन्हीं पर्यावरणीय खतरों को देखते हुए बिजली पैदा करने के लिए अब सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों को विशेष महत्व दिया जाने लगा है| अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने से हमारी ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर कम होता जाएगा और इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार होगा| सही मायने में अक्षय ऊर्जा ही आज भारत में विभिन्न रूपों में ऊर्जा की जरूरतों का प्रमुख विकल्प है, जो पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ टिकाऊ भी है| भारत धीरे-धीरे ही सही, अब इस दिशा में आगे बढ़ रहा है| वास्तव में आज समय है आर्थिक बदहाली औैर भारी पर्यावरणीय विनाश की कीमत पर ताप, जल एवं परमाणु ऊर्जा जैसे पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों के बजाय अपेक्षाकृत बेहद सस्ते और कार्बन रहित पर्यावरण हितैषी ऊर्जा स्रोतों के व्यापक स्तर पर विकास के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ने का लेकिन साथ ही हमें ऊर्जा की बचत की आदतें भी अपनानी होंगी|

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