
आज पूरा विश्व भारत में अपना मित्र खोज रहा है: मोदी
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सदन से विदाई लेना बहुत ही भावुक पल है
'हम जब इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं, तो हमारा मन बहुत सारी भावनाओं और अनेक यादों से भरा हुआ है'
नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संसद के विशेष सत्र की शुरुआत के अवसर पर कहा कि हम सबके लिए गर्व की बात है कि आज भारत 'विश्व मित्र' के रूप में अपनी जगह बना पाया है। आज पूरा विश्व भारत में अपना मित्र खोज रहा है, भारत की मित्रता का अनुभव कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस सदन से विदाई लेना बहुत ही भावुक पल है। हम जब इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं, तो हमारा मन बहुत सारी भावनाओं और अनेक यादों से भरा हुआ है।
मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था, लेकिन यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है और भारत के सामान्य मानव की लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा का प्रतिबिंब है कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुजारा करने वाला एक गरीब परिवार का बच्चा पार्लियामेंट में पहुंच गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब मैंने पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में प्रवेश किया, तो सहज रूप से मैंने इस सदन के द्वार पर अपना शीश झुकाकर, इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन किया था। वह पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रारंभ में यहां महिलाओं की संख्या कम थी, लेकिन धीरे-धीरे माताओं, बहनों ने भी इस सदन की गरिमा को बढ़ाया है।
करीब-करीब 7,500 से अधिक जनप्रतिनिधि अब तक दोनों सदनों में अपना योगदान दे चुके हैं। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसदों ने दोनों सदनों की गरिमा को बढ़ाया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकियों से लड़ते-लड़ते सदन और सदन के सदस्यों को बचाने के लिए, जिन्होंने अपने सीने पर गोलियां झेलीं, आज मैं उनको भी नमन करता हूं। वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने बहुत बड़ी रक्षा की है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक प्रकार से जैसी ताकत यहां की दीवारों की रही है, वैसा ही दर्पण उनकी कलम में रहा है और उस कलम ने देश के अंदर संसद के प्रति, संसद के सदस्यों के प्रति एक अहोभाव जगाया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे पत्रकार, जिन्होंने संसद को कवर किया, शायद उनके नाम जाने नहीं जाते होंगे, लेकिन उनको कोई भूल नहीं सकता है। सिर्फ खबरों के लिए नहीं, भारत की इस विकास यात्रा को संसद भवन से समझने के लिए उन्होंने अपनी शक्ति खपा दी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब हम इस सदन को छोड़ रहे हैं, तब मैं उन पत्रकार मित्रों को भी याद करना चाहता हूं, जिन्होंने पूरा जीवन संसद के काम को रिपोर्ट करने में लगा दिया। एक प्रकार से वे जीवंत साक्षी रहे हैं। उन्होंने पल-पल की जानकारी देश तक पहुंचाई।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे शास्त्रों में माना गया है कि किसी एक स्थान पर अनेक बार जब एक ही लय में उच्चारण होता है तो वह तपोभूमि बन जाता है। नाद की ताकत होती है, जो स्थान को सिद्ध स्थान में परिवर्तित कर देती है। मैं मानता हूं कि इस सदन में 7,500 प्रतिनिधियों की जो वाणी यहां गूंजी है, उसने इसे तीर्थक्षेत्र बना दिया है।
लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति आज से 50 साल बाद जब यहां देखने के लिए भी आएगा तो उसे उस गूंज की अनुभति होगी कि कभी भारत की आत्मा की आवाज यहां गूंजती थी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन और उसका समर्थन भी इसी सदन ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किया था। इसी सदन ने इमरजेंसी में लोकतंत्र पर होता हुआ हमला भी देखा था और इसी सदन ने भारत के लोगों की ताकत का एहसास कराते हुए लोकतंत्र की वापसी भी देखी थी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सबका साथ, सबका विकास का मंत्र, अनेक ऐतिहासिक निर्णय, दशकों से लंबित विषय और उनका समाधान भी इसी सदन में हुआ। धारा 370 यह सदन हमेशा याद रखेगा। वन नेशन वन टैक्स, जीएसटी का निर्णय भी इसी सदन ने किया। 'वन रैंक, वन पेंशन' भी इसी सदन ने देखा। गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण बिना किसी विवाद के इसी सदन में हुआ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस इमारत के निर्माण का निर्णय विदेशी शासकों का था, लेकिन यह बात हम कभी नहीं भूल सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में परिश्रम, पसीना और पैसा मेरे देशवासियों का लगा था। हम भले ही नए भवन में जाएंगे, लेकिन यह पुराना भवन भी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।
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