स्टेपल वीजा अस्वीकार्य

वास्तव में चीन किसी न किसी बहाने यह संदेश देना चाहता है कि वह अरुणाचल प्रदेश के संबंध में बहुत 'गंभीर' है

स्टेपल वीजा अस्वीकार्य

सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया, उसकी जांच की, फिर टीम की यात्रा पर रोक लगाने का फैसला लिया

भारत सरकार ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ खिलाड़ियों को स्टेपल वीजा जारी किए जाने को अस्वीकार्य बताते हुए कड़ा विरोध जताकर उचित फैसला लिया है। चीन को ऐसा ही उत्तर मिलना चाहिए। चेंगदू के वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम में प्रतिस्पर्धा करने के लिए वुशु खिलाड़ियों की 12 सदस्यीय टीम की यात्रा इसलिए रद्द कर दी गई, क्योंकि समूह में अरुणाचल प्रदेश के तीन खिलाड़ियों को स्टेपल वीजा दिया गया था। 

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वास्तव में चीन किसी न किसी बहाने यह संदेश देना चाहता है कि वह अरुणाचल प्रदेश के संबंध में बहुत 'गंभीर' है। वह कई वर्षों से इस पर नजरें गड़ाए बैठा है। इस दौरान जब भी मौका मिला, उसने कोई ऐसा शिगूफा छोड़ दिया, जिससे अरुणाचल के साथ चीन भी चर्चा में आए। हालांकि भारत स्पष्ट कर चुका है कि भारतीय नागरिकों के लिए वीजा व्यवस्था में अधिवास या जातीयता के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। 

सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया, उसकी जांच की, फिर टीम की यात्रा पर रोक लगाने का फैसला लिया। अरुणाचल प्रदेश के निवासी भारत के नागरिक हैं। अगर चीन उनके वीजा मामले में दोहरी नीति अपनाकर किसी तरह के दुष्प्रचार को हवा देना चाहता है तो यह अस्वीकार्य है। ऐसे मामलों को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत होती है और भारत सरकार ने इसे उचित ढंग से लिया है। 

चीन ओछे हथकंडे अपनाकर हमारे देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। भारत की स्थिति स्पष्ट है कि वैध भारतीय पासपोर्ट रखने वाले भारतीय नागरिकों के लिए वीजा व्यवस्था में अधिवास या जातीयता के आधार पर कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा सकता। भारतीय पासपोर्ट-धारक चाहे ईटानगर का निवासी हो या इंदौर का, इस दृष्टि से समान व्यवहार होना चाहिए। अगर कोई देश इसमें भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है तो उसकी नीयत में खोट है, जिसका भारत कड़ा जवाब देने का अधिकार रखता है।

इस साल अप्रैल में जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ‘वाइब्रेंट विलेज’ कार्यक्रम के सिलसिले में अरुणाचल प्रदेश के किबिथू गांव गए थे तो उन्होंने 'ड्रैगन' की ‘गीदड़ भभकियों’ की हवा निकाल दी थी। इससे पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के ‘पुनः नामकरण’ का हास्यास्पद प्रयास किया था। 

वह अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत कहकर उस पर अपना अवैध दावा जताता है। जब भी भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या शीर्ष राजनेता अरुणाचल का दौरा करते हैं तो चीन उस पर 'आपत्ति' जताते हुए बयान जारी कर देता है। उसकी यह उद्दंडता वर्षों चली, लेकिन अब भारत की ओर से दिए जाने वाले जवाब में काफी सख्ती आ गई है। यह न समझें कि इस बार भारत ने स्टेपल वीजा मामले में कड़ा विरोध जताया तो चीन भविष्य में ऐसा नहीं करेगा। वह जब भी मौका पाएगा, फिर ऐसा करेगा। यह चीन की 'युद्ध-नीति' का हिस्सा है। 

इसके तहत प्रतिद्वंद्वी पर मनोवैज्ञानिक रूप से इतना दबाव डाला जाता है कि वह स्वीकार कर ले कि चीन बहुत शक्तिशाली देश है। प्रचार तंत्र का भी सहारा लिया जाता है। एक ही झूठ को बार-बार दोहराया जाता है। इतनी बार कि लोग उसे भ्रमवश सच समझने लगें। आज चीन अरुणाचल प्रदेश के संबंध में यही कर रहा है। वह स्टेपल वीजा जारी कर बताना चाहता है कि यही तरीका 'ठीक' है। वह 'दक्षिण तिब्बत' के बहाने लोगों के दिलो-दिमाग में यह डालना चाहता है कि अरुणाचल का चीन से 'बहुत गहरा' संबंध है! 

इसके जवाब में क्या करना चाहिए? उचित तरीका यही है कि सख्ती से जवाब दिया जाए। चीन न्याय, नीति, नैतिकता, सहिष्णुता और शांति की भाषा नहीं समझता। वह केवल शक्ति की भाषा समझता है। अगर वह एलएसी पर नियमों का पालन न करे तो भारत को भी उसी प्रकार शक्ति प्रदर्शन करना चाहिए। 

अगर उसका विदेश मंत्रालय ओछे हथकंडे अपनाए तो भारत को उसकी पोल खोलते हुए दुनिया के सामने असल चेहरा लाना चाहिए। अगर वह अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर आपत्ति जताए तो ऐसे दौरे और भव्य तरीके से करें, वहां विकास परियोजनाओं का और शिलान्यास करें। दीर्घावधि में देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए हमें आर्थिक रूप से चीन से अधिक शक्तिशाली बनना होगा। उद्दंड चीन को शक्ति से ही अनुशासित रखा जा सकता है।

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