ये तमाशबीन ...
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं
पाकिस्तान में उच्च शिक्षित व साधन-संपन्न हिंदू परिवारों की बेटियों के साथ भी ऐसा हो चुका है
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। वहां सरकार, सेना, पुलिस, अदालतें ... खामोश हैं, बल्कि तमाशबीन हैं। ऐसे मामलों की देश-विदेश में निंदा होने के बावजूद पाकिस्तानी हुक्मरान चिकने घड़े बने हुए हैं। उन पर कोई असर ही नहीं हो रहा!
पाक के सिंध प्रांत में रहने वाले एक हिंदू उद्यमी लीलाराम की तीन बेटियों के अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन और 'निकाह' करवाने की घटना अत्यंत निंदनीय है। वहां ऐसे कुकृत्य धड़ल्ले से हो रहे हैं। पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों को उनके 'उच्चतम न्यायालय' से थोड़ी उम्मीद रहती है कि वह ऐसे मामलों पर संज्ञान लेकर कुछ सख्ती दिखाएगा, लेकिन अब तो वह भी 'धृतराष्ट्र' की भूमिका निभा रहा है।पाक में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करके कोई भी निर्भय घूम सकता है। उसे सरकार से लेकर सेना और न्यायालय तक की मौन स्वीकृति प्राप्त है। जो पाकिस्तानी मीडिया मानवाधिकार के नाम पर भारत में होने वाली हर घटना को तिल का ताड़ बनाकर पेश करता है, उसे लीलाराम की तीन मासूम बेटियों चांदनी, रोशनी और परमेश कुमारी की पीड़ा क्यों नज़र नहीं आ रही है? क्या उनके कैमरों के लेंस खराब हो गए हैं या 'ऊपर' से आदेश आया है कि हिंदुओं पर अत्याचार होते हैं तो होने दें, क्योंकि किसी भी सरकार को उनकी कोई परवाह नहीं है?
यूं तो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की यह पहली घटना नहीं है। वहां सोशल मीडिया के कारण कुछ मामले सामने आ जाते हैं। वहीं, ज़्यादातर दबा दिए जाते हैं। न मीडिया उन्हें प्रकाशित-प्रसारित करने का साहस दिखाता है, न पुलिस हस्तक्षेप करती है।
पाकिस्तान में सिक्ख और ईसाई समुदाय पर भी अत्याचार होता है, लेकिन भारत से दुश्मनी के कारण हिंदुओं को खासतौर से निशाना बनाया जाता है। उन्हें विभिन्न तरीकों से सताया जाता है। अगर किसी की जवान बेटियां हों तो साजिशन उनका अपहरण कर जबरन धर्मांतरण और निकाह करा दिया जाता है।
अब तक सिंध के कई गांवों में हजारों हिंदू लड़कियों के साथ ऐसा हो चुका है। अगर कोई परिवार इसके खिलाफ न्यायालय जाता है तो वहां खुद को बेबस और मजबूर ही पाता है, क्योंकि ऐसे मामलों में लड़की से जबरन हस्ताक्षर करवाकर बयान दिलवाया जाता है कि उसने यह कदम अपनी मर्जी से उठाया है। लड़की को धमकी दी जाती है कि अगर वह अपराधियों की मर्जी के मुताबिक बयान नहीं देगी तो उसके परिवार की हत्या कर दी जाएगी। लिहाजा वह अपने मां-बाप, भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए वही बयान देती है।
जज को असलियत मालूम होती है, लेकिन हिंदुओं को इंसाफ देने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। वह लड़की के बयान के आधार पर उन्हीं लोगों के पक्ष में फैसला सुना देता है, जिन्होंने उसके साथ ज्यादती की थी।
एक हिंदू लड़की, जिसके साथ इसी तरह की घटना हुई थी, का पिता एक साक्षात्कार में कहता है कि जब वह अपनी बेटी को वापस पाने के लिए अदालत गया तो उसे उम्मीद थी कि यहां जरूर इंसाफ मिलेगा। जब उसने अदालत के पहरेदार से लेकर कर्मचारियों और वकीलों तक को उस पर हंसते देखा तो कुछ शक हुआ। जब उसने जज को भी उस पर हंसते देखा तो पूरा विश्वास हो गया कि यहां इंसाफ नहीं मिलेगा और वह नहीं मिला।
जज ने लड़की के पिता की याचिका खारिज कर दी। अपराधियों की जीत हुई! पाकिस्तानी हिंदुओं के संबंध में एक ग़लतफ़हमी यह है कि प्राय: उन परिवारों की बेटियों का अपहरण होता है, जो अशिक्षित व ग़रीब होते हैं। हकीकत इससे अलग है।
पाकिस्तान में उच्च शिक्षित व साधन-संपन्न हिंदू परिवारों की बेटियों के साथ भी ऐसा हो चुका है। वहां हिंदू कितना ही अमीर हो, सरकारी तंत्र उसे सुरक्षा नहीं देता। इसलिए कई हिंदू परिवार, जिनके पास पाकिस्तान में काफी संपत्ति थी, छोड़कर भारत आने को मजबूर हो गए, ताकि उनकी बेटियां अपहरण व जबरन धर्मांतरण से सुरक्षित रहें।
पाकिस्तान के हुक्मरान याद रखें, कर्मफल अटल है। आप आज जिन बालिकाओं के आंसू देखकर चुप्पी साधे बैठे हैं, वे एक दिन ज्वाला बनकर बरसेंगे। कर्मफल से बड़े-बड़े आततायी धराशायी हो गए। रावलपिंडी और इस्लामाबाद में बैठे ये तमाशबीन भी उससे नहीं बचेंगे।