... कुर्सी मिलने के बाद सोचा था कि वैसा ही रहूंगा, जैसा लोगों ने मुझे बनाया है: मोदी

प्रधानमंत्री ने गुजरात में 'स्वागत' पहल के 20 साल पूरे पर कार्यक्रम को संबोधित किया

... कुर्सी मिलने के बाद सोचा था कि वैसा ही रहूंगा, जैसा लोगों ने मुझे बनाया है: मोदी

'मैं कुर्सी का गुलाम नहीं बनूंगा, जनता-जनार्दन के बीच रहूंगा'

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को गुजरात में 'स्वागत' पहल के 20 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर खुशी हुई कि 'स्वागत' उन उद्देश्यों को पूरा कर रहा है, जिनके लिए इसे शुरू किया गया था। इसके माध्यम से लोग समाधान ढूंढ़ रहे हैं और अपनी समस्याओं और चिंताओं के लिए आवाज उठा रहे हैं। सरकार का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि आम लोग उससे आराम से अपनी चिंताएं साझा कर सकें।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि गुजरात के करोड़ों नागरिकों की सेवा में समर्पित 'स्वागत' 20 वर्ष पूरे कर रहा है और मुझे अभी-अभी पुराने अनुभवों को सुनने का, पुरानी यादें ताजा करने का मौका मिला। 'स्वागत' की सफलता में कितने ही लोगों का अनवरत श्रम लगा है, कितने ही लोगों की निष्ठा लगी है। मैं उन सभी लोगों का धन्यवाद करता हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 2003 में जब मैंने 'स्वागत' की शुरुआत की थी, तब मुझे गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में ज्यादा समय नहीं हुआ था। उससे पहले मेरा ज्यादातर जीवन कार्यकर्ता के रूप में बीता था। कुर्सी मिलने के बाद मैंने मन में ही सोचा था कि मैं वैसा ही रहूंगा, जैसा लोगों ने मुझे बनाया है। मैं कुर्सी का गुलाम नहीं बनूंगा। मैं जनता-जनार्दन के बीच रहूंगा, जनता-जनार्दन के लिए रहूंगा। इसी उद्देश्य से स्वागत का जन्म हुआ।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 'स्वागत' का अर्थ लोकतांत्रिक संस्थाओं में आम लोगों का स्वागत रहा है। इसका सार आम लोगों के लिए समाधान का स्वागत करना रहा है और आज स्वागत का अर्थ है ईज ऑफ लिविंग एंड रीच ऑफ गवर्नेंस। मेरे लिए 'स्वागत' की सफलता का सबसे बड़ा अवॉर्ड यह है कि इसके जरिए हम गुजरात के लोगों की सेवा कर पाए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे देश में दशकों से यह मान्यता चली आ रही थी कि कोई भी सरकार आए, उसे बनी-बनाई लकीरों पर ही चलते रहना होता है। लेकिन 'स्वागत' के माध्यम से गुजरात ने इस सोच को भी बदलने का काम किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने बताया कि गवर्नेंस सिर्फ नियम, कानून और लकीरों तक सीमित नहीं होती है। गवर्नेंस होती है- इनोवेशन्स से, गवर्नेंस होती है- नए आइडियाज से। गवर्नेंस प्राणहीन व्यवस्था नहीं है। यह जीवंत व्यवस्था होती है, संवेदनशील व्यवस्था होती है। गवर्नेंस लोगों की जिंदगियों से, सपनों से और संकल्पों से जुड़ी हुई एक प्रगतिशील व्यवस्था होती है।

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