अर्थचक्र की गति बढ़ाए बजट

अर्थचक्र की गति बढ़ाए बजट

अर्थचक्र की गति बढ़ाए बजट

प्रतीकात्मक चित्र। स्रोत: PixaBay

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ कार्यक्रम में यह कहना कि ‘जैसे कोरोना के खिलाफ भारत की लड़ाई एक उदाहरण बनी है, वैसे ही अब हमारा टीकाकरण कार्यक्रम भी दुनिया में एक मिसाल बन रहा है’ – सर्वथा उचित है एवं प्रासंगिक है। कोरोना से उपजीं परिस्थितियों के बीच यह काम कर दिखाना निश्चित रूप से सरकार, वैज्ञानिकों और देशवासियों के लिए उपलब्धि है।

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दुनिया के विभिन्न देशों को कोरोना की वैक्सीन पहुंचाकर भारत ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ हमारे लिए मात्र कुछ अक्षरों का समूहभर नहीं, बल्कि चिंतन और दर्शन है जिसे भारत करके दिखाता है। हमारे दिव्य ऋषि संसार में सबके लिए सुख, स्वास्थ्य एवं कल्याण की कामना करते थे। भारत ने इस मंत्र को साकार करके दिखाया है।

कोरोना काल में जब अनिश्चितता का वातावरण बन रहा था, रोजगार ठप पड़े थे, श्रमिक शहरों से पलायन कर रहे थे, तब विशाल जनसंख्या तक विषम परिस्थितियों के बीच निशुल्क खाद्यान्न पहुंचाकर भारत ने दुनिया को दिखाया दिया था कि हमारे लिए ‘धन’ से पहले ‘जन’ का महत्व है।

उस समय पीपीई किट और मास्क का अभाव था। आज भारत इस सामग्री का निर्माण कर सहायता स्वरूप विदेशों को भी भेज रहा है। अस्पतालों में कोरोना वार्ड से लेकर कोरोना वैक्सीन निर्माण तक, सब जगह एक ही सवाल था कि यह सब कैसे होगा, पर भारत ने अपने सामर्थ्य को टटोला और कर दिखाया।

अब विश्व भारतीय वैक्सीन की ओर देखा रहा है, हमारे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों की मेधा की प्रशंसा कर रहा है। वास्तव में इसे नए भारत के निर्माण की एक शुरुआत भर मानना चाहिए। हमें इसकी रफ्तार बढ़ानी होगी, नए संकल्प करने होंगे, एकजुट होकर इस महायज्ञ में अपने हिस्से की आहुति देनी होगी।

केंद्र सरकार को इस बजट में उन बिंदुओं का पर्याप्त ध्यान रखना होगा जो न केवल कोरोना काल में मंद पड़े अर्थचक्र को गति दें, बल्कि भविष्य में उसे शक्ति भी दें। प्रधानमंत्री ने ‘वोकल फॉर लोकल’ का जो आह्वान किया था, उसे मजबूती देने का इससे अच्छा अवसर और क्या सकता है!

बजट में ऐसे प्रावधान हों जो भविष्य के लिए बेहतर मानव संसाधन का निर्माण कर सकें, विशेष रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करें, सस्ती और सुलभ चिकित्सा व्यवस्था हो, ऐसी शिक्षा व्यवस्था हो जो गुणवान, चरित्रवान नागरिक बनाए, बैंकों में आम जनता की कमाई सुरक्षित हो, सरकारी नौकरी हो पर वही एक विकल्प न हो; इसके लिए निजी क्षेत्रों में रोजगार को बढ़ावा मिले, सुविधाओं में सिर्फ महानगरों का वर्चस्व न हो, ये कस्बों, गांवों तक आसानी से मुहैया कराई जाएं। चिकित्सा में शोध को बढ़ावा मिले।

हमने कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम के अनूठे प्रयोग देखे। यह सभी क्षेत्रों में संभव नहीं हो सकता लेकिन जहां संभव हो, उनके लिए विशेष प्रावधान किए जाएं। यह कस्बों और ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान साबित हो सकता है। जब महानगरों से पैसा गांवों तक पहुंचेगा तो सही मायनों में स्वराज आएगा। गांव सुखी हों, आत्मनिर्भर हों; यही तो बापू चाहते थे।

प्रधानमंत्री मोदी ‘मन की बात’ में यह बता चुके हैं कि कि ‘मेड इन इंडिया वैक्सीन’ से देशवासियों के मन में एक नया आत्मविश्वास आ गया है। भारत सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम के साथ ही दुनिया में सबसे तेज गति से अपने नागरिकों का टीकाकरण भी कर रहा है। इसके तहत मात्र 15 दिनों में ही देश के 30 लाख से ज्यादा कोरोना योद्धाओं को टीके लगा दिए गए हैं। वहीं, अमेरिका जो संसाधनों के लिहाज से बहुत आगे है, उसे इस काम में 18 दिन लग गए। ब्रिटेन को एक महीने से ज्यादा (36 दिन) समय लगा।

एक चलन यह देखा जाता है कि जब किसी अच्छे कार्य या उपलब्धि का उदाहरण देना होता है तो दुनिया यूरोप या अमेरिका की ओर देखती है। भारत ने वैक्सीन निर्माण और जारी टीकाकरण से यह भलीभांति दिखा दिया है कि अगर दृढ़ संकल्प तो सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है। सरकार ऐसा बजट बनाए कि भारत अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे कीर्तिमान रच सके। उन अवरोधों को हटाया जाए जो हमारी रफ्तार को सुस्त करते हैं, जनता का मनोबल तोड़ते है।

कोरोना महामारी ने एक बार फिर यह बता दिया कि विश्व के कल्याण के लिए भारत का होना क्यों जरूरी है। बदली परिस्थितियों के बीच भारत का होना मात्र पर्याप्त नहीं है। उसका समृद्ध और ज्यादा शक्तिशाली होना जरूरी है। हमारे वैज्ञानिकों के गहन अध्ययन व शोध से बनी वैक्सीन विदेशों में पहुंच रही है तो वहां के राष्ट्राध्यक्ष आभार व्यक्त कर रहे हैं, जबकि चीनी वैक्सीन से लोग किनारा कर रहे हैं। जिसने इतना विनाशक वायरस दिया, उसकी वैक्सीन कितनी कल्याणकारी होगी?

अब इस मामले में भारत को कुछ आक्रामक होना पड़ेगा। उसे न केवल अपने मित्र राष्ट्रों को वैक्सीन पहुंचानी चाहिए, बल्कि उनकी कंपनियों को यहां आमंत्रित करना चाहिए जिनके लिए अभी तक चीन पसंदीदा गंतव्य था। रिपोर्टें बताती हैं कि दुनिया में चीन के खिलाफ माहौल है। लोग उसका माल लेने से दूर भाग रहे हैं।

यह चीन की करनी है जिसका उसे फल भोगना है। वहीं, भारत का रुख तो सदा ही मानवता हितैषी रहा है। इसलिए हमें नियमों का सरलीकरण करना होगा ताकि यहां व्यवसाय की प्रक्रिया आसान हो, व्यवसायियों को दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें और प्रक्रिया में समय व संसाधनों की बचत हो।

शक्तिशाली देश के लिए जवान और किसान के साथ व्यवसायी भी जरूरी है। वह अपने व्यवसाय कौशल से रोजगार का सृजन करता है, कर देता है और देश को समृद्ध बनाता है। भारतीय चिंतन धन के दान को उत्कृष्ट मानता है। कोरोना काल में जब सरकार ने दान का आह्वान किया तो देश के अनेक उद्योगपतियों, व्यवसायियों ने यथासामर्थ्य सहयोग दिया था। अब सरकार अपने बही-खाते से ऐसी योजनाएं लेकर आए जिनसे व्यवसाय को बढ़ावा मिले, अर्थव्यवस्था में ऊर्जा आए और आमजन अपनी कमाई से जरूरतें पूरी कर सके।

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