जम्मू-कश्मीर और पूर्ण राज्य का दर्जा
जम्मू-कश्मीर और पूर्ण राज्य का दर्जा
जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली और भविष्य में उसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान स्वागत योग्य है। देश में कुछ राजनीतिक दलों, उनके नेतृत्व का काम समाधान सुझाने के बजाय आग लगाकर भाग जाने का रहा है, उन्होंने जम्मू-कश्मीर को लेकर ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश की थी कि अगर अनुच्छेद 370 नहीं रहेगा तो प्रलय आ जाएगी।
अब जम्मू-कश्मीर इस अनुच्छेद के बिना प्रगति की राह पर आगे बढ़ता जा रहा है। संवैधानिक सुधार की इस प्रक्रिया ने केंद्र शासित प्रदेश को मुख्य धारा में लाने का काम किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में शांति कायम होगी, युवाशक्ति को रोजगार के अवसर मिलेंगे, आतंकवाद का समूल नाश होगा, पाक परस्त तत्व हतोत्साहित होकर सही रास्ते पर आ जाएंगे और इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा। अब तक कुछ ‘खानदानी’ राजनेता जम्मू-कश्मीर को अपनी जागीर समझ बैठे थे। उन्होंने घाटी में बड़ा भ्रम फैलाया है। उन्होंने जनता को यह कहकर आग में घी डालने का काम किया कि अनुच्छेद 370 आपके अस्तित्व की गारंटी है, अगर यह हटा तो अन्य राज्यों के लोग यहां आकर कब्जा कर लेंगे!ये ‘खानदानी’ राजनेता वहां बारी-बारी से राज करते रहे। इधर, केंद्र से जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा और विकास के लिए खूब बजट भेजा गया, लेकिन उसका फायदा उन लोगों को मिला ही नहीं जो उसके असल हकदार थे। अनुच्छेद 370 ऐसा अवरोधक बना रहा जो न तो जम्मू-कश्मीर के निवासियों का वर्तमान सुधार सका और न ही भविष्य सुरक्षित बना सका। और बदले में आम जनता को मिला क्या? गरीबी, बदहाली, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद। अनुच्छेद 370 का दंश किसी न किसी रूप में हर आम कश्मीरी ने भोगा है। इसके प्रावधानों को निष्प्रभावी बनाए जाने से पहले तक देशभर में यह चर्चा अक्सर होती थी कि अनुच्छेद 370 अटल है, यह कभी हटाया नहीं जा सकता।
मोदी-शाह की जोड़ी ने इस भ्रम को उखाड़ फेंका और उन लोगों की सियासी दुकानदारी को उलट दिया जो बात-बार पर देश को आंखें दिखाया करते थे। एक संप्रभु राष्ट्र ऐसी धमकियां बर्दाश्त करता रहा, यह घोर आश्चर्य है। अनुच्छेद 370 से जम्मू-कश्मीर के निवासियों को क्या मिला, इसकी हकीकत सामने आने चाहिए। जहां तक जम्मू-कश्मीर को दोबारा पूर्ण राज्य का दर्जा देने का सवाल है तो इसमें दो बातें उभर कर सामने आती हैं।
पहली, यहां शांति की पूर्ण स्थापना हो, लोकतंत्र की जड़ें गहरी हों, ग्राम पंचायतों को मजबूत किया जाए, लोग निर्भय होकर अपने प्रतिनिधि चुनें। इसके साथ सैन्य एवं खुफिया तंत्र द्वारा पाक परस्त आतंकी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहे। आतंकियों व पत्थरबाजों को हथियार, धन मुहैया कराने वालों पर कड़ी नजर रखी जाए, उन्हें कठोर सजा मिले। दूसरी, लद्दाख के विकास के लिए भी भरपूर कोशिशें हों। यह शांतिप्रिय एवं आध्यात्मिकता से परिपूर्ण क्षेत्र देशप्रेम की मिसाल है। भारत सहित दुनिया में चीन के खिलाफ आवाज उठाने वालों में लद्दाख के लोग सबसे आगे हैं। अब तक इस क्षेत्र को विकास के मामले में वह सब नहीं मिला जो वर्षों पहले मिल जाना चाहिए था।
जब लद्दाख विकसित और खुशहाल होगा, यहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो उसका संदेश जम्मू-कश्मीर तक जरूर जाएगा। लद्दाख के लोगों की दशकों पुरानी मांग रही है कि उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिले। यह अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पूरी हो चुकी है। लद्दाख पर्यटन के मामले में कमाल कर सकता है। इसकी आध्यात्मिक विरासत देश-विदेश में किसे आकर्षित नहीं करती! यहां का परंपरागत खानपान, पहनावा सबकुछ अद्भुत है। सरकार और स्थानीय प्रशासन इन क्षमताओं को विश्व पटल के सामने रखें, रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दें, तो कोई आश्चर्य नहीं कि यह क्षेत्र भविष्य में सबके लिए अनुकरणीय उदाहरण बन जाए।
जम्मू-कश्मीर में भी बहुत सामर्थ्य है। यह फल, मेवे, परिधान, पर्यटन – इन सबसे समृद्ध है। कुछ दशक पहले यहां फिल्मों की शूटिंग हुआ करती थीं, लेकिन पाकिस्तान ने दहशत का ऐसा बीज बोया कि घाटी की फिजा में अमन का दम घुटने लगा। अब जरूरत है कि कश्मीरी इस हकीकत को पहचानें, उस पीढ़ी के भविष्य की फिक्र करें जिसे शिक्षा, रोजगार और सुरक्षित जीवन चाहिए, यह उसका अधिकार है। पाकिस्तान खुद बर्बाद और तबाह है, वह किसी का भला नहीं कर सकता। कश्मीर के युवा कलम एवं लोकतंत्र में अपना भविष्य तलाशें, यह पूरा हिंदुस्तान उनका है। कश्मीर हमारा है, तो कश्मीरी भी हमारे हैं, यकीनन।