जनादेश पर सवाल क्यों?

जनादेश पर सवाल क्यों?

जनादेश पर सवाल क्यों?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी। फोटो स्रोत: ट्विटर अकाउंट।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को यह पूरा अधिकार है कि वे केंद्र सरकार की रीति-नीति पर सवाल उठाएं, आलोचना करें, विरोध करें और कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए हर वह प्रयास करें जिसकी इजाजत संविधान देता है। अक्सर राहुल कुछ कहते-कहते और कुछ कह जाते हैं। इस पर उनके प्रशंसक तालियां बजा दें तो वे इसे सच्चाई की मुहर मान लेते हैं। विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए तमिलनाडु पहुंचे राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना उस ब्रिटिश हुकूमत से कर दी जिसने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए बेहिसाब फांसियां दी थीं।

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राहुल का यह कहना कि — ‘हम एक ऐसे दुर्जेय शत्रु (मोदी) से लड़ रहे हैं जो इस देश में धन को हावी कर रहा है। हम एक ऐसे शत्रु से लड़ रहे हैं, जो अपने विरोधियों को कुचल रहा है। हालांकि हमने पहले ऐसा किया है, हमने इस नए दुश्मन की तुलना में बहुत बड़े दुश्मन (अंग्रेजों) को हराया है’ — समझ से परे है। क्या राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने उसी तर्ज पर केंद्र की सत्ता हासिल की, जिस तरह अंग्रेज हिंदुस्तान के तख्त पर काबिज हुए थे? मोदी से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता समझ में आती है, लेकिन प्रधानमंत्री की तुलना देश के दुश्मन से करना राहुल की राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है।

यह सच है कि कांग्रेस देश की आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुई, पर यह भी सच है कि आज़ादी सिर्फ कांग्रेस के प्रयासों की देन नहीं है। इसमें असंख्य देशवासियों का खून-पसीना बहा, तब जाकर आज़ादी का सवेरा देखने को मिला था। अगर राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी उसी श्रेणी में आते हैं, जिसमें ब्रिटिश हुक्मरान आते थे तो ऐसा कहकर वे कांग्रेस के योगदान पर ही सवाल उठा रहे हैं। आपसे पूछा जा सकता है कि देश में साल 1947 से लेकर 2014 तक ज्यादातर समय कांग्रेस का ही शासन रहा।

मोदी ने भी सत्ता कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग-2 से हासिल की थी। अगर मोदी ब्रिटिश हुक्मरान की तरह हैं तो आपने उन्हें सत्ता क्यों दी? मोदी ने सत्ता विरासत में नहीं, जनता के वोट से पाई है। क्या राहुल गांधी के कहने का यह तात्पर्य है कि देश की जनता में राजनीतिक समझ नहीं, उन्होंने खेल-खेल में मोदी को दिल्ली ​बुला लिया और प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दी? यह तो जनादेश पर सवाल है।

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी साल 2019 के लोकसभा चुनावों की पराजय को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। यह जनता ही थी जिसने आपको और आपके पुरखों को इतने वर्षों तक आदर दिया, सिर-आंखों पर बैठाया, झंडे लहराए, जय-जयकार की, सत्ता सौंपी। आज अगर वही जनता नरेंद्र मोदी को दूसरी बार सत्ता में ले आती है तो वे ब्रिटिश हुक्मरान की तरह जालिम हो गए! यह कैसी दलील है? अब समय आ गया है कि राहुल गांधी खुद में राजनीतिक परिपक्वता का समावेश करें। प्रधानमंत्री के फैसलों पर सवाल उठाना स्वागतयोग्य है। जनता आपकी बात सुनेगी।

अगर उसमें दम नजर आया तो समर्थन देगी, पर यह कह देना कि ‘जिस तरह अंग्रेजों को उनके देश वापस भेज दिया, नरेंद्र मोदी को नागपुर भेज देंगे’ अपरिपक्वता की पराकाष्ठा है। राहुल गांधी को ज्ञान होना चाहिए कि यह देश दिल्ली से चलता है, उसी दिल्ली से जिसे हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है। यहां तक अपने बूते पहुंचने और टिके रहने के लिए संघर्ष की आग में वर्षों तपना होता है। यह चांदी का चम्मच लेकर जन्मे, एसी में पले-बढ़े, विदेश में सैर-सपाटे पर निकले लोगों के बस की बात नहीं है।

संसद भवन पहुंचने के लिए जनता मुहर लगाती है। यह ऐसा पार्ट टाइम जॉब नहीं है कि जब मन किया, आ गए और जब मन किया, नहीं आए। प्रधानमंत्री की तुलना दुश्मन से करना भी अनुचित है। चाहे वे जवाहरलाल नेहरू हों या डॉ. मनमोहन सिंह अथवा नरेंद्र मोदी, इनमें से किसी की तुलना दुश्मनों से नहीं की जा सकती। राहुल गांधी तो उस पीढ़ी से हैं जिन्होंने आज़ादी के वर्षों बाद जन्म लिया यानी जिन्होंने जन्म के साथ ही आज़ादी की खुली हवाओं में सांस ली।

ब्रिटिश हुकूमत ​का दौर कैसा था, इसके लिए ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं, संसद भवन के पुस्तकालय या गूगल पर ही दस्तावेज देख लें। अंग्रेज जबरन सत्ता पर काबिज थे। वे विदेशी थे। अंग्रेज हुक्मरान हिंदुस्तान पर राज करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे। उन्हें यहां के लोगों से कोई हमदर्दी नहीं थी। जबकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए जनता से प्रमाणपत्र लेकर आए हैं। उनके माता-पिता भारतीय हैं।

मोदी को हिंदुस्तान का राज किसी विरासत में नहीं मिला। क्रूर अंग्रेजों से तुलना करना इस लिहाज से भी गलत है क्योंकि जनता उस व्यक्ति को दूसरी बार प्रधानमंत्री हर्गिज नहीं बनाएगी जो उन पर जुल्म ढाएगा। राहुल गांधी कोई और दलील लेकर आएं, अपने शब्दों में तेज पैदा करें, अपनी वाणी में विश्वास जगाएं, व्यावहारिक मुद्दे उठाएं। अब कोरी बयानबाजी का जमाना नहीं रहा। यह पब्लिक है, सब जानती है!

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