संयुक्त चुनाव का प्रश्न

संयुक्त चुनाव का प्रश्न

राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। यदि ऐसा हकीकत में होता है तो निस्संदेह यह मोदी सरकार की एक ब़डी उपलब्धि मानी जाएगी। यदि समस्त विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हों तो देश को कई फायदे होंगे। पहला ब़डा लाभ तो यही होगा कि मंत्री और नेतागण सरकारी कामकाज पर अधिक ध्यान दे पाएंगे। अभी तो बार-बार चुनाव होते हैं तो प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री और अन्य नेतागण चुनावी मैदानों में ही १५-२० तक ताल ठोकते रहते हैं। पिछले चुनावों में ऐसा हम बार-बार अनुभव करते रहे हैं। इस साल आठ राज्यों में फिर चुनाव हैं तो नेता लोग प्रशासनिक कामकाज बंद कर चुनाव प्रचार को निकल जाएंगे। दूसरा ब़डा लाभ यह होगा कि जगह-जगह चुनाव होने के झंझट से ही मुक्ति नहीं मिलेगी, बल्कि सरकारी धन की भारी बचत होगी। अभी बार-बार चुनावों के कारण सरकार को बेहद फिजूलखर्ची करनी प़डती है। बार-बार राजनीतिक कटुता भी ब़ढती है। चुनावी खर्च का अंदाज इस बात से लग सकता है कि वर्ष १९५२ के पहले चुनाव में सिर्फ दस करो़ड रुपए खर्च हुए थे जबकि अब प्रत्येक चुनाव में हजारों करो़ड रुपए खर्च हो जाते हैं। यदि सारे चुनाव एक साथ होंगे तो यह खर्च निश्चित ही घटेगा। फिर बार-बार चुनाव होने से विकास संबंधी कार्यों व नीतियों की घोषणाओं पर आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने से विपरीत प्रभाव प़डता है। देश में एक साथ चुनाव कराने का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं है। सरकार अकेली ऐसा कर भी नहीं सकती। इसके लिए तो देश के तमाम राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों को एक राय बनानी होगी। यह बात सही है कि इससे चुनाव खर्च आधा रह जाएगा, मगर सवाल है कि इसके लिए संसाधन कहां से आएंगे? फिर विपक्ष एक साथ चुनाव प्रणाली से सहमत नहीं है। विपक्ष का मानना है कि यह व्यावहारिक नहीं होगा। इससे संवैधानिक दिक्कतें भी सामने आएंगी। संविधान में ही ब़डे बदलाव की जरूरत प़डेगी। उत्तराखंड, अरुणाचल जैसे हालात होंगे तो क्या करेंगे? ये ऐसे राज्य हैं, जहां राजनीतिक संतुलन बनता-बिग़डता रहता है। क्या भारत जैसे ब़डी आबादी वाले देश में एक साथ इतने ब़डे पैमाने पर इन चुनावों को करवाया जा सकता है? वर्तमान में विभिन्न विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग है। क्या सारी राज्य सरकारों को समय से पहले चुनाव कराने के लिए राजी किया जा सकेगा? अगर ऐसा संभव हो भी जाए तो भविष्य में किसी सरकार के अल्पमत में आने पर क्या वहां चुनाव नहीं होगा या वहां चुनाव रोका जा सकेगा? कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि निश्चित कार्यकाल तक बने रहने की अनिवार्यता एक अलोकप्रिय सरकार को भुगतने के रूप में सामने आएगी?

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