नई ऊर्जा देगी जीत
नई ऊर्जा देगी जीत
देश के तीन पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव परिणामों ने राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण मो़ड के संकेत दिए हैं। अब तक देश को कांग्रेस-मुक्त करने का अभियान चला रही भाजपा ने अब वामपंथी दलों का सफाया भी शुरू कर दिया है। त्रिपुरा में जिस रणनीति से उसने वाम मोर्चे के लाल-ग़ढ को ध्वस्त कर भगवा-ग़ढ स्थापित किया, वह अद्भुत घटना है। राजनीति में शून्य से शिखर तक पहुंचने की यह एक नायाब दास्तान है। त्रिपुरा में भाजपा ने दो-तिहाई से अधिक सीटें जीतीं जहां पांच वर्ष पूर्व उसके ५० में से ४९ उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। मात्र पांच वर्षों में उसने डे़ढ फीसदी मत हिस्सेदारी को ब़ढाकर ५० प्रतिशत कर लिया, जो एक रिकॉर्ड कामयाबी रही। कांग्रेस को वहां एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। नागालैंड में भी भाजपा गठबंधन ने सबसे अधिक सीटें जीतीं और वहां भी भाजपा का उभरना उल्लेखनीय रहा। कांग्रेस यहां भी अपना खाता नहीं खोल सकी। रहा सवाल मेघालय के परिणामों का तो वहां पूर्व में कांग्रेस सत्तारू़ढ थी। इस बार चुनावों में उसे २१ सीटें हासिल हुई जो पूर्ण बहुमत से दस कम है। वह राज्य की सबसे ब़डी राजनीतिक दल जरूर बन गई लेकिन उसे वहां भी सत्ता मिलती नजर नहीं आ रही क्योंकि वहां राज्यपाल पहले ही भाजपा समर्थित कॉनरैड संगमा को सरकार गठन का न्यौता दे चुके हैं। इसके साथ ही पार्टी अहमद पटेल और कमलनाथ को मेघालय भेजने का मकसद भी पूरा करने में असफल नजर आने लगी है। दोनों दिग्गज कांग्रेसी केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू और केजी अलफोंस के सामने बौने नजर आने लगे हैं। दो सदस्यों वाली भाजपा ने अन्य दलों के ३४ विधायकों के समर्थन के साथ सरकार में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर ली है। अब पूर्वोत्तर से भाजपा के ताज में मिजोरम का नगीना जो़डने के लिए पार्टी को अगले साल चुनाव का इंतजार है। वहां फिलहाल कांग्रेस की सरकार है। पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह परिणाम वर्ष २०१९ के लोकसभा चुनावों के परिणामों का ट्रेलर है, तो इस सोच के विरुद्ध मत रखने वालों का तर्क इन दावों को हवाई बता रहा है। जो भी हो, त्रिपुरा की जीत के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण भी रहे हैं। इनमें सबसे ब़डा कारक त्रिपुरा में सत्ता विरोधी लहर को माना जा रहा है। वहां भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी रणनीति कामयाब रही। कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का भाजपाई खेमे में आना भी एक ब़डा प्रमुख कारक रहा। वहीं आरएसएस के प्रचारक सुनील देवधर और हेमंत बिस्वा की क़डी मेहनत भी इस ऐतिहासिक जीत की नींव में निहित रही। त्रिपुरा की ऐतिहासिक जीत, नागालैंड में सबसे ब़डी पार्टी के रूप में उभरकर सरकार बनाने का प्रयास तथा मेघालय में गैर कांग्रेसी सरकार के गठन के प्रयासों से भाजपा में नई ऊर्जा का संचार हुआ है, जो कर्नाटक में जल्दी ही होने जा रहे चुनावों के पूर्व पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करेगा।