पढ़ाई पर भारी पुनर्वास: परिवारों को दूसरी जगह बसाने से बच्चों की शिक्षा पर मंडराया संकट
पढ़ाई पर भारी पुनर्वास: परिवारों को दूसरी जगह बसाने से बच्चों की शिक्षा पर मंडराया संकट
चेन्नई/दक्षिण भारत। शहर के चिंताद्रिपेट इलाके से करीब एक हजार परिवारों को अन्यत्र बसाया गया है। एक रिपोर्ट में इनकी तादाद 924 बताई गई है। इसके अनुसार, अब इन्हें पेरुम्बक्कम और चेमेनचेरी में बसाया जाएगा। हालांकि, पूरी प्रक्रिया में जिम्मेदारों का इस ओर ध्यान नहीं गया कि यहां के एक हजार से ज्यादा स्कूल जाने वाले बच्चों की शिक्षा पर इसका क्या असर होगा।
हालांकि पुनर्वास स्थलों में स्कूल हैं, लेकिन उनमें इन बच्चों को समायोजित करने के लिए आवश्यक क्षमता का अभाव है। संक्षेप में कहें तो पुनर्वास इन बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है।इस संबंध में निगम के अधिकारियों का कहना है कि वे उक्त परिवारों में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या से अवगत नहीं हैं। विभिन्न अनुमानों के अनुसार, यह संख्या कम से कम एक हजार है।
क्या हैं स्कूलों के हालात?
जिन कॉलोनियों में ये परिवार बसने जा रहे हैं, वहां स्कूल पहले से ही भरे हुए हैं और अधिक छात्रों को स्थान देने की स्थिति में नहीं हैं। इसका मतलब है कि इन बच्चों को या तो हर दिन अपने पुराने स्कूलों में पढ़ाई के लिए लंबा का सफर करना होगा अथवा अपने नए निवास स्थल के आसपास महंगे निजी स्कूलों में दाखिला लेना होगा।
बच्चों की पढ़ाई को लेकर आ रही इस समस्या के बारे में एक स्थानीय महिला ने कहा, हमें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि क्या करने की जरूरत है। इस बात की सबसे अधिक संभावना है कि अगर वहां सीटें उपलब्ध नहीं होंगी, तो बच्चों को स्कूल से बाहर ही रहना होगा।
चूंकि पहले टर्म की परीक्षाएं अभी संपन्न हुई हैं। ऐसे में अभिभावकों को आशंका है कि दाखिला कठिन होगा। पुनर्वास इलाकों में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल, एक मिडल स्कूल, एक हाई स्कूल और एक हायर सेकंडरी स्कूल है। वर्तमान में इन दो बस्तियों में 20,000 से अधिक परिवार रह रहे हैं।
पेरुम्बक्कम में सरकारी हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक सुंदर मूर्ति कहते हैं, वर्तमान में हमारे पास कुल 824 विद्यार्थी हैं। ज्यादा से ज्यादा, हम 40-50 और विद्यार्थियों को समायोजित कर सकते हैं।
क्या कहते हैं नियम?
आरटीई अधिनियम के अनुसार, विद्यार्थी और शिक्षक का अनुपात प्राइमरी स्कूलों के लिए 30: 1 और अपर प्राइमरी स्कूलों के लिए 35: 1 होना चाहिए। एक कार्यकर्ता दावा करते हैं, बुनियादी ढांचे का विस्तार किए बिना इन बच्चों को स्थानांतरित करना और अधिक शिक्षकों को पोस्ट करना आरटीई अधिनियम का उल्लंघन होगा।
वंचित शहरी समुदायों के लिए नीति शोध से जुड़े एक शख्स कहते हैं, पांच और स्कूल वहां बनाए जा रहे हैं, लेकिन कोई भी अभी तक संचालन में नहीं है। इसी प्रकार जिन विद्यार्थियों ने चिंताद्रिपेट में निजी स्कूलों में दाखिला लिया है, उन्हें या तो अपनी फीस छोड़नी होगी अथवा यहां कक्षाएं लेने के लिए करीब 60 किमी तक सफर करना होगा।