साइबर जोखिम में कुडनकुलम, उत्तर कोरिया के हैकर समूह का मैलवेयर हमला

साइबर जोखिम में कुडनकुलम, उत्तर कोरिया के हैकर समूह का मैलवेयर हमला

चेन्नई/दक्षिण भारत। कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (केकेएनपीपी) के कम्प्यूटर पर 28 अक्टूबर को साइबर हमला हुआ था। राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) के एक पूर्व अधिकारी, पुखराज सिंह ने ट्वीट किया कि तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में संयंत्र में एक सर्वर कम्प्यूटर (डोमेन नियंत्रक) को एक्सेस किया गया। उनका ट्वीट एक ऐसे अकाउंट के जवाब में था, जिसने ’डीट्रैक’ नामक एक ऑनलाइन वायरस द्वारा संयंत्र के सिस्टम पर संभावित हमले की ओर इशारा किया था। कथित तौर पर लाजरुस नामक उत्तर कोरियाई हैकर समूह द्वारा विकसित इस वायरस का इस्तेमाल किसी सिस्टम से डेटा को निकालने के लिए किया जाता है। स्पाइवेयर (वायरस) कम्प्यूटर पर कीलॉगिंग, ब्राउजर हिस्ट्री, आईपी होस्ट, रनिंग प्रोसेस और सभी फाइल्स जैसे डेटा को निकाल लेता है।
इसके अलावा, पुखराज सिंह, जो एक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ भी हैं, ने अपने ट्वीट में कहा कि मिशन-क्रिटिकल टारगेट हिट हुए हैं्। वहीं, केकेएनपीपी ने 29 अक्टूबर की घटना को आधारहीन करार देते हुए इससे इनकार किया है। उसने कहा कि देश के सभी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में स्वतंत्र सॉफ्टवेयर है और किसी भी बाहरी नेटवर्क से जुड़ा नहीं है। यह झूठा प्रचार है। दोनों पावर प्लांट चल रहे हैं और बिजली पैदा कर रहे हैं। एक दिन बाद, 30 अक्टूबर को, न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) – जो देश में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए शासी निकाय है – ने स्वीकार किया कि उनके सिस्टम में एक ’मैलवेयर’ की पहचान की गई थी।
एनपीसीआईएल ने कहा कि 4 सितंबर को भारतीय कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) द्वारा उन्हें अवगत कराए गए मामले की तुरंत जांच की गई्। हालांकि, बयान में स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा गया है कि कुडनकुलम संयंत्र में मैलवेयर की पहचान पिछले दिन सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा बताई गई थी या नहीं। इस प्रकार, पिछले सप्ताह दो सरकारी एजेंसियों को दो अलग-अलग बातें कहते हुए देखा गया और एनपीसीआईएल या परमाणु ऊर्जा विभाग के पास अभी भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि तमिलनाडु में परमाणु संयंत्र में एक प्रणाली साइबर हमले के दायरे में थी या नहीं।
परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा का मुद्दा भी काफी चर्चा में रहा है। इस संबंध में एक पर्यावरण समूह, पूवुलागिन नान्बरगल के जी. सुंदर राजन कहते हैं कि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में परमाणु संयंत्रों को जारी रखना जोखिम भरा है। उन्होंने कहा, सौभाग्य से, प्रशासनिक प्रणाली में मैलवेयर का पता लगाया गया और वह नियंत्रण प्रणाली को काबू में नहीं कर सका। लेकिन उस मामले में भी, सिस्टम रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहीं पर रखरखाव, रूटीन, परमाणु कचरा, भंडारण, संयंत्र की मरम्मत करने वाले कर्मियों आदि की जानकारी एकत्रित की जाती है। जिन लोगों ने सिस्टम को हैक किया है, उन तक यह डेटा पहुंचने की आशंका है। उन्होंने कहा, इसके बाद भी यदि हमारी साइबर सुरक्षा प्रणालियां फेल्योर-प्रूफ नहीं हैं, तो इस संयंत्र को घनी आबादी वाले क्षेत्र में चलाना बहुत जोखिम भरा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के लिए अप-टू-डेट सिस्टम की आवश्यकता पर जोर देते हुए रक्षा और विदेशी मामलों की विश्लेषक शिबानी मेहता कहती हैं, केकेएनपीपी में हुई घटना घबराने की कोई वजह नहीं है। हालांकि, यह परमाणु संयंत्रों के लिए खतरा है और इस तरह के खतरों को विफल करने के लिए तैयारियों पर सवाल उठता है। दूसरी ओर, सुंदर राजन का मानना है कि ताजा घटना हमारे लिए परमाणु नीति पर फिर से विचार करने के लिए एक और अवसर प्रस्तुत करती है। वे कहते हैं, 60 वर्षों में परमाणु ऊर्जा में हजारों करोड़ रुपए का निवेश करने के बाद भी हमें इन संयंत्रों से सालाना केवल 6,000 मेगावाट बिजली मिलती है। यह बहुत कम है। एक परमाणु आपदा कुडनकुलम या तिरुनेलवेली में ही नहीं रुकेगी, यह दक्षिण भारत में सभी को प्रभावित करेगी। उन्होंने कहा कि ताजा घटना हमारे इस विश्वास को मजबूत बनाती है कि परमाणु संयंत्र और मानव का सह-अस्तित्व नहीं हो सकता। केवल एक या दूसरे का ही अस्तित्व हो सकता है।

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