शहीदों और शूरवीरों के इस गांव में 'अग्निपथ' योजना के पक्ष में उतरे पूर्व सैनिक
'अधिक संख्या में युवाओं को सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाएगा, जो बेरोजगारी के मुद्दे को हल करने में मददगार होगा'
पुणे/भाषा। देश के कई हिस्सों में केंद्र की 'अग्निपथ' योजना को लेकर हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहा है, वहीं महाराष्ट्र में सतारा जिले के एक गांव के कई पूर्व सैनिकों ने सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए इस योजना का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह न केवल युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेगा, बल्कि उनके लिए कई रास्ते भी खोलेगा।
सतारा शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अपशिंगे नाम के गांव को सशस्त्र बलों में योगदान के लिए 'अपशिंगे मिलिट्री' के नाम से भी जाना जाता है। पीढ़ियों से इस गांव के लगभग हर घर से कोई न कोई व्यक्ति सेना में सेवारत रहा है।गांव के बुजुर्गों का कहना है कि सशस्त्र बलों में भर्ती होने के आकांक्षी स्थानीय युवा अग्निपथ योजना के बारे में जानने के लिए उनसे संपर्क कर रहे हैं और उनका मार्गदर्शन किया जा रहा है।
सूबेदार सुधीर करांडे (सेवानिवृत्त) के परदादा और उनके भाइयों ने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया था। उन्होंने कहा, 'अग्निपथ योजना को लेकर देश के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। हमारे गांव के लोगों की सोच इसे लेकर सकारात्मक है। हमारा मानना है कि योजना अधिक अवसर मुहैया करेगी। अधिक संख्या में युवाओं को सशस्त्र बलों में भर्ती किया जाएगा, जो बेरोजगारी के मुद्दे को हल करने में मददगार होगा।'
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, गांव के लगभग 46 सदस्य प्रथम विश्व युद्ध में बतौर सैनिक शहीद हुए थे। देश की आजादी के बाद से इस गांव के कई सैनिकों ने विभिन्न युद्धों में भाग लिया, जिसमें 1962 का चीन-भारत युद्ध तथा 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध और करगिल युद्ध शामिल हैं।
उन्होंने कहा, 'हमारा गांव अपने सपूतों को राष्ट्र की सेवा में भेजने के लिए जाना जाता है और यह हमारे खून में है। गांव के युवा (अग्निपथ) योजना के बारे में सकारात्मक सोच रखते हैं। वे जानते हैं कि जिस तरह से उनकी परवरिश हुई है, मौका मिलने (अग्निवीर बन जाने पर) पर सशस्त्र बलों में स्थायी नौकरी के लिए 25 प्रतिशत में अपना स्थान बनाने में सक्षम होंगे।'
वर्ष 2020 में सेवानिवृत्त हुए सूबेदार संदीप निकम ने अग्निपथ योजना को "अच्छा" बताते हुए कहा कि जिनके पास क्षमता है वे सेना में आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि यहां तक कि जो लोग 25 प्रतिशत में अपना स्थान नहीं भी बना पाएंगे उन्हें चार साल बाद मुख्यधारा में आने पर रोजगार के कई अवसर मिलेंगे।
निकम के बेटे यश (19) भी सेना में शामिल होना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के कारण भर्ती प्रक्रिया प्रभावित हुई और कई युवाओं को अब ऊपरी आयु सीमा का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा, महामारी की स्थिति को देखते हुए, सरकार को इस योजना को लागू करने के लिए इंतजार करना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि सेना में चार साल की सेवा के बाद युवाओं का बड़ा हिस्सा हाथों में केवल प्रमाण पत्र लेकर आएगा और नौकरियों की मांग बढ़ेगी और हर साल इसकी संख्या बढ़ती रहेगी।
दस साल सेना में कार्यरत रहे कैप्टन (सेवानिवृत्त) उधाजी निकम ने कहा, 'मुझे यकीन है कि युवाओं को घर वापस नहीं लौटना पड़ेगा। उनके पास कई रास्ते उपलब्ध होंगे। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के साथ-साथ राज्य पुलिस बलों में भी भर्ती के अवसर होंगे।।'
हालांकि, उन्होंने कहा, मौजूदा स्थिति (योजना का विरोध) से बचने के लिए सरकार को पहले योजना के बारे में जागरूकता पैदा करके धीमी गति से आगे बढ़ना चाहिए था।
'अपशिंगे मिलिट्री' गांव में सेना में भर्ती के आकांक्षी युवाओं के लिए एक अकादमी चलाने वाले विक्रम घाडगे ने कहा कि उनके सभी छात्र इस योजना के बारे में सकारात्मक सोच रखते हैं।
उन्होंने कहा, हम अपनी अकादमी में युवाओं को इस उद्देश्य से तैयार कर रहे हैं कि वे 25 प्रतिशत में अपना स्थान बना पाएं।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने दशकों पुरानी रक्षा भर्ती प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुए तीनों सशस्त्र बलों में सैनिकों की भर्ती संबंधी ‘अग्निपथ’ योजना की मंगलवार को घोषणा की थी, जिसके तहत संविदा के आधार पर चार साल के लिए सैनिकों की भर्ती की जाएगी।
योजना के तहत साढ़े 17 वर्ष से 23 वर्ष उम्र के युवाओं की भर्ती की जाएगी और बाद में केवल 25 प्रतिशत को नियमित किया जाएगा, शेष 75 प्रतिशत को बगैर ग्रेच्युटी तथा पेंशन लाभ के सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा।
पिछले कुछ दिनों से बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना सहित कई राज्यों में इस योजना के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।