अनोखी पहल: ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए धार्मिक कार्यक्रम में हो रहा हेडफोन का इस्तेमाल
अनोखी पहल: ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए धार्मिक कार्यक्रम में हो रहा हेडफोन का इस्तेमाल
मुंबई। धार्मिक कार्यक्रमों में माइक के इस्तेमाल पर सवाल उठते रहे हैं। इसके समर्थन और विरोध में दलीलों की भी कमी नहीं है। अक्सर कहा जाता है कि देश में हर किसी को धार्मिक स्वतंत्रता है तो धार्मिक स्थानों और वहां होने वाले कार्यक्रमों में माइक का इस्तेमाल होना चाहिए। वहीं कई जगह पर लोग माइक का विरोध भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि माइक पर बहुत तेज आवाज से आम लोगों को तकलीफ होती है। बेहतर होगा कि इसकी आवाज कम रखी जाए या खास समय पर इसका उपयोग न किया जाए।
ऐसे में मुंबई में चल रहा एक कार्यक्रम अनोखी पहल कहा जा सकता है। इसके आयोजकों ने माइक के इस्तेमाल से दूसरों को होने वाली तकलीफ का खास ध्यान रखा है। जानकारी के अनुसार, पिछले 40 दिनों से चल रहे अमृतबेला चलिया कार्यक्रम में सत्संग हो रहा है और इसमें शामिल सभी लोग हेडफोन से ही सत्संग सुन रहे हैं।इससे आसपास रहने वाले लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती। सत्संग का यह नया तरीका काफी सराहा जा रहा है और लोगों का कहना है कि दूसरों को भी इस पर गौर करना चाहिए। यह कार्यक्रम यहां के गोल मैदान में हो रहा है। हर रोज उल्हासनगर स्थित कार्यक्रम स्थल पर हजारों लोग प्रवचन सुनने आ रहे हैं। पहले माइक का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब दूसरों की सुविधा का ध्यान रखते हुए इसे बंद कर दिया गया है।
इसके लिए आधुनिक तकनीक से दूसरी राह अपनाई गई। आयोजकों ने तय किया कि ये प्रवचन ब्लूटूथ हेडफोन के जरिए सुनाए जाएंगे। इसके बाद यह पहल शुरू कर दी गई। लोग भी हेडफोन से प्रवचन सुनकर खुश हैं। साथ ही आयोजकों द्वारा स्थानीय लोगों की सुविधा का ध्यान रखे जाने पर आभार जताया है।
बता दें कि धार्मिक स्थलों और खास कार्यक्रमों के मौकों पर माइक की तेज आवाज से कई बार लोगों को बहुत दिक्कत होती है। इससे विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होती है। इसके अलावा वृद्धों और बीमार लोगों को तकलीफ होती है। कई बार इस वजह से टकराव तक की नौबत आ जाती है और मामला बड़े विवाद में तब्दील हो जाता है। अमेरिका और यूरोप में कई स्थानों पर सामाजिक कार्यक्रमों के दौरान हेडफोन के ऐसे प्रयोग किए गए हैं, जिन्हें लोगों ने काफी पसंद किया है।
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