कोरोना से बचेगा भारत, स्वावलंबन की ओर बढ़ेगा भारत
कोरोना से बचेगा भारत, स्वावलंबन की ओर बढ़ेगा भारत
श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत राष्ट्रमत
अब इनको कोई यह पूछे कि क्या प्रधानमंत्री को यह पैकेज कोरोना आने के पहले ही घोषित कर देना चाहिए था? बहुत आसानी से समझने वाली बात है कि ऐसी टिप्पणियां कुंठित मानसिकता की उपज हैं। एक के बाद एक देश पर आने वाली समस्याओं से जिस चतुराई से प्रधानमंत्री मोदी निजात दिला रहे हैं और लगातार देश की जनता के दिलों पर राज कर रहे हैं, इससे वे लोग घबराये हुए हैं जो या तो सत्ता खो चुके हैं या जिनकी सत्ता के नीचे से जमीन खिसकने का डर बना हुआ है।
आसान नहीं था कोरोना से निपटना
इसमें भला कौनसी दो राय हो सकती हैं कि देश के प्रधान सेवक के रूप में नरेन्द्र मोदी के होने से, कोरोना जैसी विश्वव्यापी भयानक बीमारी से भी भारत अपने आपको मौत की कगार से लौटा लाने में सफल हो गया। यह कोई आसान काम नहीं था। संकट विकराल रूप लेता उसके पहले ही लाकडाउन घोषित कर प्रधानमंत्री ने समझदारी का परिचय दिया और प्रारंभिक समय में ही सबको अपने अपने घरों में रहकर संकट को बढने से रोका, वहीं दूसरी ओर इसी पीरियड में संकट की संभावित विकरालता से निपटने की तैयारियां पूरी कर लीं। पूरा देश मानसिक रूप से और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के दृष्टिकोण से मजबूत होकर सामना करने के लिए खड़ा हो गया। जो विरोधी अब अपना ज्ञान बांट रहे हैं वे या तो स्वयं बेवकूफ हैं या सबकुछ जानते हुए कुंठा के चलते केवल मन की भड़ास निकाल रहे हैं।
नकारात्मक लोगों से बनाएं सोशल डिस्टेंसिंग
अब देश को नकारात्मक और कुंठित मानसिकता के लोगों से पर्याप्त सोशल डिस्टेंसिंग बना लेनी चाहिए और यह दूरी केवल कुछ समय के लिए नहीं, बल्कि अब ऐसी दूरी के साथ जीने की आदत बना लेनी चाहिए। इसी में देश की भलाई है क्योंकि मोदी विरोधियों की बातों में आने से पहले देश के सत्तासीनों के अतीत में झांक कर अवश्य देखना चाहिए कि किस प्रकार कई दशकों तक वर्तमान के विपक्षी दल सत्ता में रहते हुए देश पर आए संकटों के समय मझधार में आम आदमी को छोड़ देते थे और स्वयं देश की सम्पत्ति को डकारने में लगे रहते थे। अब कम से कम मोदी राज में हमें वैसे दिन तो नहीं देखने पड़ रहे हैं। यदि देश का नेतृत्व इस समय मोदी के हाथों में नहीं होता तो हम कोरोना संकट से कैसे जूझते और हमारा क्या हश्र होता, इसकी कल्पना करना भी कष्टदायी है।
सभी मोर्चों पर एक साथ हो रहा काम
कोरोना संकट से निपटने के लिए कई स्तर पर एक साथ काम हो रहा है। जब तक इसकी दवा, यानी वैक्सीन नहीं आ जाती है तब तक बचाव के उपाय करने के अलावा कोई चारा नहीं है। हमारे वैज्ञानिक दवा के शोध में लगे हैं तो प्रधानमंत्री मोदी बाकी मोर्चों पर अपनी समझदारी से जनता को समय समय पर समझाइश देते हुए संकट से उबरने का हर संभव उपाय कर रहे हैं।
पैकेज से हर वर्ग को मिलेगी राहत
प्रधानमंत्री का विशाल राहत पेकेज हर वर्ग को कुछ न कुछ राहत अवश्य देगा क्योंकि अब भारत स्वावलंबन की ओर बढने को उद्यत हुआ है। जितना मुझे समझ आ रहा है, अब नए कल कारखाने लगेंगे, जिन फैक्ट्रियों की मशीनों को जंग लग गया था, उन्हें फिर दुरुस्त किया जाएगा। जो उद्योग बैंकों से पर्याप्त तथा आसानी से ऋण न मिल पाने के कारण असहाय थे, आशा की जानी चाहिए कि उन्हें अब लोन मिलना आसान होगा और वे पुनर्जीवित हो सकेंगे। जो उद्योगधंधे लालफीताशाही के कारण, मजदूर कानून तथा उद्योग प्रारंभ करने में आने वाली अन्य बाधाओं के कारण या तो शुरू ही नहीं हो सके या फिर सिक इंडस्ट्री की श्रेणी में पहुंच गए, उन्हें इस पैकेज से आक्सीजन मिलेगी। मध्यमवर्ग को हमेशा शिकायत रहती है कि हर बार संकट के समय सबसे बड़ी मार उसी पर पड़ती है और उसे ही सर्वाधिक नजरंदाज किया जाता है।
ऐसा माना जाना चाहिए कि इस बार उसे पूरी तरह इग्नोर नहीं किया जाएगा। पैकेज में कुछ न कुछ उसकी राहत के लिए भी होगा। प्रधानमंत्री गत तीन चार वर्षों से किसानों पर मेहरबान हैं और यह सही भी है। वे समय समय पर किसानों की हालत सुधारने के लिए कुछ न कुछ कदम उठाते रहते हैं। प्रधानमंत्री को पता है कि अब हमारे देश को समृद्ध बनाना है तो विकास की कमान उसी (किसान) को सौंपनी होगी और अब गांव की ओर बढना होगा। इसलिए वे किसानों के हितों की थोड़ी सी भी अनदेखी नहीं करते हैं।
आने वाले समय में वे संभवतः इस बात पर और ज्यादा ध्यान देंगे कि किसानों के लिए घोषित की जाने वाली सभी सुविधाएं उन तक अवश्य पहुंचें। इसमें लीकेज पर पूरी तरह अंकुश लगे। मोदी को यह जानकारी है कि उनकी योजनाओं का शतप्रतिशत लाभ उन लोगों को अभी भी नहीं मिल पाता है जिनके लिए वे योजनाएं लाते हैं। परंतु 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में सभी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए अभी और समय की जरूरत है। दशकों से पंगु और लचर हुई व्यवस्था के कारण आम आदमी की राहत के लिए किए जाने वाले सरकारी प्रयासों का लाभ उन तक नहीं पहुंचता था, जिनको पहुंचना था। अब धीरे धीरे व्यवस्थाओं में सुधार हो रहे हैं और यह प्रयास दिखाई भी दे रहे हैं।
पैकेज ने जगाई आशा की किरण
कोरोना संकट के कारण व्यक्ति निराशा के काले बादलों से घिरता, उसके पहले ही प्रधानमंत्री ने बड़े राहत पैकेज के माध्यम से जो आशा की किरण जगाई है, उसका अपना एक महत्व है। मोदी के हर कदम का स्वागत करने वाली देश की जनता मोदी के इस प्रयास को भी मन से समर्थन देगी, ऐसी आशा की जानी चाहिए। अब सबसे ज्यादा जरूरत सकारात्मक विचारों को आत्मसात करने की है। जो लोग डराते हैं, भविष्य को लेकर पहले से चिंतित व्यक्ति के मन में घोर निराशा पैदा करते हैं, उन लोगों के वक्तव्यों की अनदेखी करनी होगी। मोदी की लगातार सफलताओं और लोकप्रियता से घबराये उन लोगों की बातों पर कान धरने की जरूरत नहीं जो मोदी के कदमों और फैसलों को पटरी से उतारने के लिए षड्यंत्र रचते रहते हैं और मुंह की खाते रहते हैं।