अयोध्या मामले पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा जमीयत उलेमा-ए-हिंद

अयोध्या मामले पर पुनर्विचार याचिका दायर करेगा जमीयत उलेमा-ए-हिंद

अदालत.. प्रतीकात्मक चित्र

नई दिल्ली/भाषा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ रविवार को पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया। जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा, जमीयत उलमा-ए-हिंद अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर करेगा।

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इस विषय पर संगठन की ओर से गठित पांच सदस्यीय पैनल ने कानून विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने के बाद यह निर्णय लिया। पुनर्विचार याचिका को लेकर संगठन में सहमति नहीं बन पा रही थी जिस वजह से पांच सदस्यीय पैनल बनाया गया था।

अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम पक्ष की पैरवी कर चुकी जमीयत की कार्य समिति की बृहस्पतिवार को हुई मैराथन बैठक में पुनर्विचार याचिका को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई थी। सूत्रों के मुताबिक, संगठन के कई शीर्ष पदाधिकारियों की राय थी कि अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, लेकिन कई पदाधिकारी पुनर्विचार याचिका दायर करने की दिशा में कदम बढ़ाने पर जोर दे रहे थे।

सहमति नहीं बन पाने के कारण जमीयत की ओर से पांच सदस्यीय पैनल बनाया गया। इसमें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी, मौलाना असजद मदनी, मौलाना हबीबुर रहमान कासमी, मौलाना फजलुर रहमान कासमी और वकील एजाज मकबूल शामिल थे।

मौलाना अरशद मदनी ने बृहस्पतिवार को कहा था कि अयोध्या मामले पर शीर्ष अदालत का फैसला कानून के कई जानकारों की समझ से बाहर है। उन्होंने यह भी कहा था कि अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने जो पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए दी है, उसे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नहीं लेना चाहिए।

मदनी ने कहा, जमीयत उलमा-ए-हिंद अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर करेगा।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत शनिवार को सर्वसम्मत फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का निपटारा कर दिया।

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