कर्नाटक की जैन परंपरा का इतिहास गौरवशाली है: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उनके साथ पदयात्रा की

कर्नाटक की जैन परंपरा का इतिहास गौरवशाली है: आचार्यश्री विमलसागरसूरी

जो इतिहास को नहीं जानते, वे भविष्य को सुरक्षित नहीं रख पाते

लक्कुंडी(गदग)/दक्षिण भारत। गदग वर्षावास के लिए जाते समय बुधवार को एक दिन के प्रवास पर आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी अपने शिष्य गणि पद्मविमलसागरजी और मुनिजनों के साथ लक्कुंडी पहुंचे। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उनके साथ पदयात्रा की। 

Dakshin Bharat at Google News
इस मौके पर कोप्पल नगरपालिका के अध्यक्ष अमज़द पटेल ने भी लक्कुंडी पहुंचकर जैनाचार्य से आशीर्वाद ग्रहण किए। इस मौके पर आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने कहा कि अपनी सांस्कृतिक चेतना को जगाने और विरल परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए हमें अपने गौरवशाली इतिहास को जानना अत्यंत जरूरी है। जो अपने इतिहास को नहीं जानते, वे अपने भविष्य को सुरक्षित रखने में भी सफल नहीं होते।

सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि कर्नाटक में जैन परंपरा का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है। यहां के प्रारंभिक चार महाकवि पंपा, पोन्ना, रन्ना और जन्ना धर्म मान्यता से जैन थे। उनकी साहित्यिक रचनाएं कन्नड़ भाषा का गौरव है। 

पश्चिम भारत के चालुक्य वंश के अंतर्गत सामन्त राजा की रानी अतिमब्बे भी कर्नाटक के जैन इतिहास का एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व है, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता।

आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने विस्तार से बताया कि लक्कुंडी और उसके आसपास की भूमि अतिमब्बे के पवित्र कार्यों की याद दिलाती है। कार्य, समाज के हर वर्ग की सेवा, साहित्यिक अवदान, धर्मशास्त्रों का प्रसार-प्रचार, स्वाध्याय और जैन मंदिरों के निर्माण करवाकर अतिमब्बे ने अपने जन्म को सफल कर दिया था। 

उन्होंने पंचधातु की हजारों तीर्थंकर प्रतिमाएं बनाकर भक्तों के घर-घर तक पहुंचाई थी। कर्नाटक के अनेक साहित्यकारों ने रानी अतिमब्बे पर उपन्यास, काव्य और जीवन चरित्र लिखे हैं। गुरुवार को प्रातः आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी अपने मुनिमंडल के साथ गदग शहर की सीमा में पधारेंगे। जैन संघ के अध्यक्ष पंकज बाफना के निवास पर वर्षावास की निमंत्रण पत्रिका का आलेखन किया जाएगा।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download