श्रीराम कथा राष्ट्र की कथा है: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

संस्कृत ग्रंथों में 'रामायण’ जनमानस में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है

श्रीराम कथा राष्ट्र की कथा है: जगद्गुरु रामभद्राचार्य

राम के बिना राष्ट्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। श्रीराम परिवार दुर्गा पूजा समिति द्वारा शहर के पैलेस ग्राउण्ड स्थित प्रिंसेस श्राइन सभागार में आयोजित जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य महाराज की श्रीराम कथा में रविवार को जगद्गुरु ने कहा कि श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण सृष्टि का प्रथम महाकाव्य है। 

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महर्षि वाल्मीकि ने इसकी रचना रामावतार से पहले ही कर दी थी। प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रंथों में 'रामायण’ जनमानस में सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। रामायण की राम कथा वास्तव में राष्ट्र की कथा है। राम के बिना राष्ट्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि जहाँ राम राजा न हों वहाँ राष्ट्र ही नहीं हो सकता। 

राजा के चरित्र का प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है। रामराज्य में न तो कोई अल्पायु था और न ही दरिद्र था। स्त्री-पुरुष अपने दाम्पत्य जीवन में अपने सामाजिक तथा व्यक्तिगत व्यवहार को मन-वचन से निभाते थे। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में प्रभु श्रीराम के आदर्शों पर चलना चाहिए। जब तक व्यक्ति में रामत्व नहीं आता, जीव में जड़ता बनी रहती है।

उन्होंने कथा को आगे बढ़ाते हुए सीताराम विवाह के कुछ समय पश्चात चारों भाइयों  के अपनी पत्नियों के साथ अयोध्या आगमन, महाराज दशरथ द्वारा राम को राजा बनाने की घोषणा, मंथरा के समझाने-बुझाने पर कैकेयी के रूठकर कोप भवन में जाने, महाराज दशरथ को अपने दो पुराने वरदान के वचन की याद दिलाकर पहले वरदान में अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या की राजगद्दी और दूसरे में राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगने, पिता के द्वारा दिए गए वचन की लाज रखने के लिए श्रीराम के सीता एवं लक्ष्मण के साथ वनगमन, अपने प्रिय पुत्र राम के विछोह में महाराज दशरथ के प्राण त्यागने, ननिहाल से भरत के अयोध्या आने और पिता का अंतिम संस्कार करने के बाद गुरु वशिष्ठ के साथ पुरजन एवं परिजनों को साथ लेकर श्रीराम को अयोध्या वापस लाने के लिए चित्रकूट जाने आदि प्रसंगों की कथा सुनाई।

संत रामभद्राचार्य ने कहा कि प्रभु श्री राम विवाह के पश्चात कुछ समय जनकपुर में बिताने के बाद जनकनंदिनी सीता और अपने तीनों भाइयों व उनकी पत्नियों के साथ अयोध्या वापस लौटते हैं। महाराज दशरथ और उनकी तीनों रानियाँ माता कौशल्या, कैकेयी एवं सुमित्रा अपनी बहुओं का भव्य स्वागत करती हैं। अयोध्या में चहुँओर खुशी छा जाती है। हंसी-खुशी के साथ समय बीतता है। 

एक दिन महाराज दशरथ ने गुरुजनों से परामर्श करने के बाद श्रीराम का राज्याभिषेक करने की घोषणा करते हैं। राजतिलक के ठीक पहले माता कैकेयी के हठ पर पिता दशरथ के वचन की लाज रखने के लिए श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। जनकनंदिनी सीता और अनुज लक्ष्मण भी उनके साथ वन जाने पर अड़ जाते हैं। 

जब श्रीराम को वनवास पर जाने की सूचना मिलती है तो वे विचलित नहीं होते। वन गमन के लिए निकलते समय श्रीराम अंधियारे में ही महल से निकलते हैं ताकि अयोध्यावासियों को उन्हें वनवास के लिए जाते देख विरह की वेदना न सहनी पड़े।

कथाव्यास जगद्गुरु रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचन्द्रदास ने मंगलाचरण किया और संस्कृति संस्कृतम गुरुकुलम् के निर्माण के बारे में जानकारी दी। मुख्य यजमान जसराज महेन्द्र कुमार वैष्णव के साथ मिथिलेश तिवारी, राजू सुथार, अजय पाण्डेय, शेषचन्द्र माहेश्वरी, जेके प्रसाद गुप्ता परिवार, सम्पतराज आदि ने कथा पूजन में भाग लिया। 

भंडारा सेवा के लाभार्थी गोपी संकीर्तन मंडल एवं कृष्ण कृपा परिवार के सदस्यों तथा जनार्दन पाण्डेय ने सपरिवार कथाव्यास श्री रामभद्राचार्य महाराज का स्वागत कर आशाीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर श्री राम परिवार के अध्यक्ष मिथिलेश तिवारी, उपाध्यक्ष सत्यदेव पाण्डेय, सचिव अजय प्रकाश पाण्डेय, कोषाध्यक्ष राजेश द्विवेदी, सहसचिव  राजू शुक्ला तथा एकल श्रीहरि वनवासी फाउंडेशन के अध्यक्ष सुरेश कुमार मोदी, सचिव संजय अग्रवाल सहित विभिन्न समाजों के अनेक अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे।

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