पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवा चुके एक व्यक्ति की पत्नी का एआई की मदद से आपत्तिजनक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की घटना अत्यंत निंदनीय है। इस मामले में पुलिस की भूमिका सराहनीय रही, जिसने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। यह घटना बताती है कि एआई का दुरुपयोग किस हद तक खतरनाक हो सकता है! ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किसी की मानहानि करने, अफवाहें फैलाने, आक्रोश भड़काने, ठगी करने आदि के लिए भी हो सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए जहां पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, वहीं लोगों को विवेक से काम लेना चाहिए। सोशल मीडिया पर आने वाली हर चीज सही नहीं होती। एआई की मदद से बनाई गई सामग्री इतनी असली लगती है कि उसे देखकर भ्रम होना स्वाभाविक है। जब 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान पर प्रहार किया जा रहा था और इस पड़ोसी देश की हालत खस्ता थी, तब भारतीय सेना की एक महिला अधिकारी का कथित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। उसमें अधिकारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार की कड़ी आलोचना करते दिखाया गया था। वीडियो पर बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक टिप्पणियां कर अधिकारी के रवैए पर सवाल उठा रहे थे। दरअसल वह वीडियो पूरी तरह फर्जी था। उसे एआई की मदद से तैयार किया गया था। वीडियो में अधिकारी के चेहरे का इस्तेमाल कर आपत्तिजनक शब्द जोड़े गए थे। बहुत ध्यान से देखने पर ही पता चलता था कि वीडियो फर्जी है। भारत के खिलाफ ऐसी सामग्री आईएसआई और आईएसपीआर तैयार करती हैं।
पूर्व में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जब साइबर अपराधियों ने किसी पुलिस अधिकारी की तस्वीर, जो इंटरनेट पर आसानी से मिल गई, को लेकर उससे धमकी भरा वीडियो बनाया और आम नागरिकों से ठगी की। अगर एआई की मदद से साइबर अपराधी ऐसा कर सकते हैं तो दुश्मन एजेंसियां, जिनके पास काफी संसाधन और प्रशिक्षित लोग हैं, भी भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए घातक हथकंडे आजमा सकती हैं। हाल में महाराष्ट्र के ठाणे में रक्षा प्रौद्योगिकी से जुड़ी एक कंपनी के इंजीनियर को पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उसे किसी पाकिस्तानी महिला एजेंट ने सोशल मीडिया पर 'हनीट्रैप' किया था। आरोप है कि इंजीनियर ने उसके प्रेमजाल में फंसकर भारतीय सेना के युद्धपोत और पनडुब्बियों से संबंधित गोपनीय जानकारी भेजी थी। आईएसआई हनीट्रैप के तहत निशाना बनाने के लिए अपनी महिला एजेंटों को विशेष प्रशिक्षण देती है। उन्हें हिंदू धर्म, परंपराओं, पहनावे और हिंदी भाषा के बारे में जरूरी जानकारी देकर 'मैदान' में उतारती है। एआई आने के बाद इन सबकी ज्यादा जरूरत ही नहीं रहेगी। इस तकनीक का जानकार शख्स किसी भी महिला की तस्वीर से ऐसे वीडियो बहुत आसानी से तैयार कर सकता है, जिनका इस्तेमाल हनीट्रैप संबंधी गतिविधियों में होता है। भविष्य में इस तरह दुश्मन एजेंसियां भारत के उन अधिकारियों और कर्मचारियों को निशाना बना सकती हैं, जो संवेदनशील स्थानों पर तैनात हैं। यही नहीं, आम नागरिक भी निशाना बन सकते हैं। जब तक उन्हें हकीकत मालूम होगी, वे बुरी तरह फंस चुके होंगे। इसके लिए सरकार को जागरूकता का प्रसार करना होगा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए यह अनिवार्य किया जाए कि एआई निर्मित सामग्री होने पर वे यूजर्स को बताएंगे। जिस अकाउंट से ऐसी सामग्री प्रकाशित की जाए, वह भी स्पष्ट करे कि इसमें एआई का इस्तेमाल हुआ है। उल्लंघन करने पर अकाउंट बंद होना चाहिए। सशस्त्र बलों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े संस्थानों में कार्यरत अधिकारी, कर्मचारी सोशल मीडिया से दूर ही रहें तो बेहतर है, क्योंकि अब ये प्लेटफॉर्म जासूसी के ठिकाने बनते जा रहे हैं।