जीवन का आनंद कहीं बाहर नहीं, अपितु स्वयं के भीतर है: साध्वीश्री संयमलता
'मूर्च्छा काे ताेड़ कर आत्मसाधना के प्रति सजग बनें'

जुगराज श्रीश्रीमाल ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शहर के तेरापंथ भवन राजाजीनगर में विराजित साध्वीश्री संयमलताजी के सान्निध्य में 'जानाे, मानाे, पहचानाे’ कार्यशाला का आयाेजन किया गया। इस माैके पर साध्वीश्री संयमलताजी ने उपस्थित जनाें काे संबाेधित करते हुए कहा कि जीवन का आनंद कहीं बाहर नहीं बल्कि मनुष्य के अपने ही भीतर है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य निज की खाेज, पहचान, प्रकाश और ज्ञान के माध्यम से अपने जीवन काे सफल बनाएँ। हमें बाहरी स्वच्छता, पवित्रता का ध्यान प्रतिक्षण रहता है परंतु मनुष्य अपने मन के भीतर जन्माें से जमे हुए क्राेध, मान, लाेभ के कचरे काे साफ करने का प्रयास नहीं करता।उन्होंने कहा कि मूर्च्छा काे ताेड़ कर आत्मसाधना के प्रति सजग बनें। आत्मसाधना में अनुशासन व मर्यादा का महत्वपूर्ण याेगदान है। साध्वश्री ने हाजरी का वाचन करते हुए इतिहास के प्रेरक प्रसंग सुनाए।
साध्वी मार्दवश्रीजी ने कहा कि व्यक्ति काे मन में लगे कैमरे से अपनी फोटाे खींच कर उसी के अनुरूप एक्शन करने का प्रयास करते हुए आत्मा की उन्नति करनी चाहिए। चाराें साध्वियाें ने लेखपत्र का वाचन किया। जुगराज श्रीश्रीमाल ने श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया।
इस अवसर पर राजाजीनगर सभा के अध्यक्ष अशाेक चाैधरी, युवक परिषद के अध्यक्ष कमलेश चाैरड़िया, महिला मंडल की अध्यक्ष उषा चाैधरी आदि उपस्थित थे।