धार्मिक, आध्यात्मिक श्रद्धा और भक्ति के प्रमुख केंद्र होते हैं: आचार्यश्री विमलसागरसूरी
'हर धर्म परंपरा में तीर्थयात्रा का अत्यधिक महत्व है'

'तीर्थस्थलाें की माटी और वहां के परमाणु अत्यंत पवित्र हाेते हैं'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। बुधवार काे आचार्यश्री विमलसागरसूरीश्वरजी और गणि पद्मविमलसागरजी अपने शिष्याें के साथ नेलमंगला के पास स्थित आदि संस्कार धाम पहुंचे। यहां प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव का कलात्मक जिनालय है।
माैर्य सम्राट संप्रति द्वारा निर्मित की गई और राजस्थान के चामुंडेश्वरी से लाई गई करीब 23 साै वर्ष प्राचीन प्रतिमा यहां स्थापित की गई है। फाल्गुन त्रयाेदशी के उपलक्ष्य में यहां जैनाचार्य के सान्निध्य में दिनभर सैकड़ाें श्रद्धालुओं ने जिनालय में पूजा-अर्चना, चैत्यवंदन, मंत्रजाप आदि द्वारा आदिनाथ ऋषभदेव की भावयात्रा की।आचार्यश्री विमलसागर सूरीश्वरजी ने कहा कि गुजरात स्थित पालीताना-शत्रुंजय गिरी जैनधर्म का सर्वाधिक प्राचीन और सबसे बड़ा तीर्थस्थल है। इस तीर्थ की ऐतिहासिक परिक्रमा काे फागण की फेरी कहा जाता है। जैसे वैदिक परंपरा में महाकुंभ हाेता है, वैसे ही तीर्थंकर नेमिनाथ और वासुदेव श्रीकृष्ण के जमाने से जैन परंपरा में प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल त्रयाेदशी काे फागण की फेरी हाेती है।
करीब अठ्ठारह किलाेमीटर की इस परिक्रमा के लिए प्रतिवर्ष लाखाें जैन श्रद्धालु पालीताना पहुंचते हैं। बुधवार काे पालीताना में लाखाें भक्ताें ने फागण की फेरी (परिक्रमा) कर प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रार्थना, मंत्रजाप और ध्यान के द्वारा साधना की।
तीर्थ मनुष्य की धार्मिक आध्यत्मिक श्रद्धा और भक्ति के प्रमुख केंद्र हाेते हैं। हर धर्म परंपरा में तीर्थयात्रा का अत्यधिक महत्व है। जैसे बद्री-केदार, काशी, मथुरा आदि वैदिक परंपरा के, पालीताना, गिरनार, सम्मेतशिखर आदि जैनधर्म के, जेरुसलम ईसाई और यहूदी धर्म का, बाेधगया बाैद्ध धर्म का, स्वर्णमंदिर सिख धर्म का तीर्थस्थल है।
इन तीर्थस्थलाें की माटी और वहां के परमाणु अत्यंत पवित्र हाेते हैं। वे साधक काे साधना द्वारा साध्य की सिद्धि तक पहुंचाते हैं। तीर्थस्थानाें में मनुष्य की मनःस्थिति सरल, शांत, सही और निर्मल हाेती है। इससे उसकाे आशातीत शुभ परिणाम मिल सकते हैं।