सरकारी सेवाएं और गुणवत्ता

अब तक जो सुधार नजर आना चाहिए था, वह नहीं आया

सरकारी सेवाएं और गुणवत्ता

सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी एक बड़ी समस्या है

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के संबंध में जो टिप्पणी की है, वह आम जनता की आवाज है। केंद्र और राज्यों की सत्ता में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन सरकारी सेवाओं की गुणवत्ता में अब तक जो सुधार नजर आना चाहिए था, वह नहीं आया। हाल के कुछ वर्षों में हालात थोड़े बेहतर जरूर हुए हैं। फिर भी सुधार की बड़ी गुंजाइश है। सरकारी सेवाओं की उपलब्धता को लेकर सीधा-सा नियम यह होना चाहिए कि जब कोई सामान्य व्यक्ति किसी दफ्तर में जाए तो उसे जरूर महसूस हो कि मेरी सरकार मेरा ख़याल रखती है। आज कई सरकारी दफ्तरों की हालत यह है कि वहां कर्मचारी और जनता के बीच टकराव देखने को मिलता है। जनता का आरोप रहता है कि जब किसी कर्मचारी से सरकारी सेवाओं के बारे में पूछा जाता है तो संतोषजनक जवाब नहीं मिलता, कहीं-कहीं काम को अटका दिया जाता है, वहीं कर्मचारी का जवाब होता है कि स्टाफ की संख्या कम है, काम का बोझ ज्यादा है। सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी एक बड़ी समस्या है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो अपने स्तर पर कार्रवाई जरूर कर रहा है, लेकिन रिश्वतखोरी अपनी जगह बरकरार है। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले एक जानेमाने शिक्षक ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया था कि उनकी कक्षा में एक नौजवान पढ़ाई करने आता था, जिसका पहले ही किसी सरकारी सेवा में चयन हो चुका था। उसका 'दु:ख' यह था कि वहां बहुत भ्रष्टाचार था, मेहनती लोगों की कद्र नहीं थी, इसलिए वह आईएएस या आईपीएस अधिकारी बनकर भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहता था। उस नौजवान का चयन आईपीएस के लिए हो गया। कुछ साल बाद उन शिक्षक ने उस नौजवान की तस्वीर अखबार में देखी। पता चला कि वह खुद रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार हो गया!

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सरकारी कामकाज में ढिलाई, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं के बारे में मीडिया ने खूब लिखा है। इन समस्याओं से जनता और सरकार, दोनों भलीभांति अवगत हैं। दुर्भाग्य से कुछ दफ्तरों की छवि तो ऐसी बन गई है कि ज्यादातर लोग मानते हैं कि वहां बगैर रिश्वत दिए कोई काम नहीं हो सकता। अगर कोई व्यक्ति रिश्वत नहीं देगा तो उसके दस्तावेजों में तरह-तरह की कमियां निकाली जाएंगी, काम में बाधा पैदा की जाएगी। इन दोनों समस्याओं का पुख्ता समाधान करने की जरूरत है। इसका एक तरीका यह है कि वे सरकारी सेवाएं, जिनका संबंध आम जनता से है, उन सबको डिजिटल कर दिया जाए। एक बार जब आवेदन हो जाए तो निश्चित समय सीमा में वह सेवा उपलब्ध करा दी जाए। इसके लिए संबंधित कर्मचारी की जवाबदेही तय की जाए। अगर आवेदन में कहीं कमी रह जाए तो उसका जवाब डिजिटल तरीके से ही दिया जाए। अगर कहीं कोई कमी नहीं है, फिर भी काम नहीं हो रहा है तो उच्चाधिकारियों को हस्तक्षेप कर कर्मचारी से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए। एक और तरीका यह है कि जनता से रेटिंग मांगी जाए। जैसे- भारत के एक मशहूर बैंक ने अपनी सेवाओं को लगातार बेहतर बनाने के लिए खास व्यवस्था कर रखी है कि जब किसी खाता धारक के पास रिलेशनशिप मैनेजर का फोन आता है और बैंकिंग संबंधी विषय पर बात हो जाती है तो बैंक की ओर से एक ईमेल भेजा जाता है। उसमें पूछा जाता है- आप हमारे कर्मचारी के कामकाज और व्यवहार को कितनी रेटिंग देना चाहेंगे? वहां रेटिंग देने के बाद अपनी ओर से भी टिप्पणी कर सकते हैं, जो सीधे एचआर विभाग के पास जाती है। अगर सरकारी सेवाओं के साथ कोई ऐसी व्यवस्था जोड़ दी जाए तो बहुत सुधार देखने को मिल सकता है। जिस कर्मचारी का व्यवहार बहुत अच्छा हो, जो समय पर काम पूरा कर दे, जो जनता का सहयोग करे, उसकी रेटिंग निश्चित रूप से ऊपर जाएगी। इसका उसे पदोन्नति, वेतन वृद्धि और स्थानांतरण आदि में लाभ दिया जाना चाहिए। जिसका प्रदर्शन इसके बिल्कुल विपरीत हो, उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों के खिलाफ बहुत सख्त कानूनी प्रावधान होने चाहिएं, ताकि जनता में विश्वास पैदा हो। सरकारी सेवा जनसेवा का माध्यम है। जो कर्मचारी ईमानदारी, शालीनता और सत्यनिष्ठा से अपना कर्तव्य निभाएं, उन्हें सम्मानित करना चाहिए।

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