धर्मांतरण की साजिशों पर लगाम जरूरी
खासकर हिंदू बच्चियां निशाने पर होती हैं

सरकार कोई कठोर कानून लेकर आती है तो उसका स्वागत होना चाहिए
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा की गई यह घोषणा कि उनकी सरकार नाबालिगों से दुष्कर्म की सजा की तरह लड़कियों का धर्म परिवर्तन कराने वालों के लिए भी मृत्युदंड का प्रावधान करेगी, ऐसे लोगों को कड़ी चेतावनी है, जो इस किस्म के कृत्यों में लिप्त हैं। देश में बहला-फुसलाकर, शादी का वादा कर, बेहतर जीवन स्तर के झूठे सपने दिखाकर धर्मांतरण कराने संबंधी गतिविधियां चल रही हैं। खासकर हिंदू बच्चियां इनके निशाने पर होती हैं। उनके दिलो-दिमाग में पूर्वजों के धर्म और मान्यताओं के संबंध में इतनी भ्रांतियां पैदा कर दी जाती हैं कि वे धर्मांतरण के लिए तैयार हो जाती हैं। ऐसे कई मामले देखे गए, जब कोई मासूम बच्ची किसी शातिर मानसिकता वाले शख्स के जाल में फंसी और उसने अपने परिवार से बगावत कर दी। साजिश के तहत उसका धर्मांतरण कराया गया और उसके बाद जो कुछ हुआ, उससे सुनहरे भविष्य के सपने मिट्टी में मिल गए। इसलिए अगर कोई राज्य सरकार बेटियों की सुरक्षा के लिए कोई कठोर कानून लेकर आती है तो उसका स्वागत होना चाहिए। हालांकि ऐसे कानून को लागू करवा पाना आसान नहीं होगा। कुछ लोग इसे न्यायालय में चुनौती दे सकते हैं। वे इसे निजी आस्था का मामला बताकर अदालती हस्तक्षेप की मांग कर सकते हैं। कुछ एनजीओ और कथित थिंक टैंक यह दुष्प्रचार कर सकते हैं कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को दबाया जा रहा है। इसलिए मप्र सरकार को इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे शब्दों का चयन करते हुए कानूनी प्रावधान करने होंगे, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता भी रहे और बेटियों के प्रति कुत्सित मानसिकता रखने वालों के लिए सजा के रास्ते भी खुलें।
बेटियों के धर्मांतरण का समाज पर क्या असर हो सकता है, यह जानना हो तो पाकिस्तान के सिंध में रहने वाले हिंदुओं की आपबीती सुनें। वहां अब तक हजारों मासूम हिंदू बालिकाओं का धर्मांतरण करवा दिया गया है। आज वहां हिंदू लड़कों के विवाह के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं। उधर कई गिरोह काम कर रहे हैं, जो डरा-धमकाकर, लालच देकर, झूठी दोस्ती कर, हमदर्दी जताकर और किसी न किसी तरीके से हिंदू बच्चियों को अपनी आस्था से दूर करते हुए उनका धर्मांतरण करवा रहे हैं। अब सोशल मीडिया पर ऐसे कई चैनल बन गए हैं, जो उन बेटियों की आवाज उठा रहे हैं। उन्हें कैसे बहला-फुसलाकर जाल में फंसाया गया, कैसे उनकी आस्था को बदला गया, कैसे माता-पिता के खिलाफ बगावत करने को उकसाया गया ... जैसे बिंदुओं पर खुलकर बात की जा रही है। कई लड़कियां, जिनका पहले धर्मांतरण कराया गया था, बाद में सच्चाई उनके सामने आ गई, वे इन चैनलों पर चर्चा में शामिल होकर लोगों को सावधान कर रही हैं। एक मामला (भारत के किसी शहर का) कुछ इस तरह था- सामान्य हिंदू परिवार की एक लड़की पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। माता-पिता ने अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार उसे अच्छे स्कूल-कॉलेज तो भेजा, लेकिन अपने धर्म व संस्कारों की कोई खास शिक्षा नहीं दी। पढ़ाई के बाद वह लड़की एक दफ्तर में काम करने लगी, जहां एक सहकर्मी से उसकी घनिष्ठता हो गई। बहुत सीधा और सरल नजर आने वाला वह शख्स अपने 'उदार' विचारों के कारण उस लड़की को बहुत अच्छा लगने लगा। एक दिन वह उसे अपने घर ले गया, अपने परिवार से मिलाया। उन लोगों का व्यवहार भी बहुत 'उदार' था। कुछ महीने बाद लड़की ने माता-पिता को अपने फैसले से अवगत कराया। घर में बहुत झगड़ा हुआ। माता-पिता ने कहा कि 'कम से कम इस बात की तो छानबीन कर लें कि लड़का कैसा है, परिवार कैसा है, उसकी सामाजिक छवि कैसी है', लेकिन उनकी एक न चली। लड़की ने धर्मांतरण कर लिया। उसके बाद शादी हो गई। सालभर में उसे पता लग गया कि दूर के ढोल सुहावने थे। पति ने उसकी सारी जमा-पूंजी ले ली। ससुराल वाले उस पर नई-नई शर्तें थोपने लगे। जब पति से शिकायत की तो उसने कहा कि मैं अपने माता-पिता से ऊपर नहीं हूं, ये जैसा कहेंगे, वैसा करना होगा, अन्यथा ये दूसरी बहू ले आएंगे। उस लड़की को एक संतान हुई, लेकिन उसके बाद ससुराल में रहना दूभर हो गया। उसे लौटकर मायके आना पड़ा। कुछ ऐसी ही कहानी राजस्थान की एक बेटी की है, जिसने धर्मांतरण के बाद एक युवक को अपना हमसफर बनाया। उसे दो लड़के हुए। इस दौरान उसे कुछ स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं। उसके ससुराल वाले दोनों लड़कों को रखने के पक्ष में हैं, लेकिन महिला को हमेशा के लिए मायके भेजना चाहते हैं, ताकि उसके शौहर की दूसरी शादी करवा सकें। अगर इन बेटियों को समय रहते अपने धर्म, अपने संस्कारों का ज्ञान दिया होता और सरकार ने अपने स्तर पर कानूनी सुरक्षा उपलब्ध कराई होती तो इनका जीवन ऐसा नहीं होता।