अत्याचारी का गुणगान क्यों?
अबू आज़मी ने औरंगज़ेब की तारीफ की है

कोई अत्याचारी बादशाह हमारा आदर्श नहीं हो सकता
इंटरनेट के ज़माने में लोग सुर्खियां बटोरने के लिए क्या-क्या नहीं करते! कुछ नेताओं ने तो इसके जरिए प्रसिद्धि पाने का बढ़िया फॉर्मूला ढूंढ़ लिया है ... 'कुछ भी उल्टा-सीधा बोलें, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करें, कुछ समय बाद यह दावा कर दें कि मेरे शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।' तब तक टीवी डिबेट में छाए रहें। महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक अबू आसिम आज़मी को और कुछ न सूझा तो मुगल बादशाह औरंगज़ेब का गुणगान कर बैठे। इनका 'तर्क' है कि तब ‘हमारा जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) (विश्व जीडीपी का) 24 प्रतिशत था और भारत को (औरंगज़ेब के शासन काल के दौरान) सोने की चिड़िया कहा जाता था।' क्या किसी शासक का मूल्यांकन करने का एकमात्र आधार 'धन-दौलत' है? क्या अबू आज़मी औरंगज़ेब की बड़ाई कर महाराष्ट्र में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने का दांव चल रहे हैं, जो काफी कोशिशों के बावजूद कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई है? महाराष्ट्र की जनता इतनी जागरूक है कि अब ये पैंतरे काम नहीं आने वाले। औरंगज़ेब ने कितनी क्रूरता, बर्बरता और निर्दयता से शासन किया था, अब यह किसी से छिपा नहीं है। वास्तव में औरंगज़ेब कई बुराइयों का प्रतीक है। उसने अनगिनत हिंदू मंदिर तोड़े थे, जजिया कर लगाया था, तीर्थस्थलों का अपमान किया था। उसकी क्रूरता के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। ऐसे शख्स के शासन काल की दो-चार बातों को आधार मानकर उसे इस तरह पेश करना कि गोया 'वह कोई महान हस्ती था', तो यह अस्वीकार्य है। अगर अर्थव्यवस्था की बेहतरी ही किसी शासक के श्रेष्ठ होने का प्रमाण है तो इस आधार पर हिटलर का भी गुणगान होने लगेगा, चूंकि जब उसने जर्मनी की बागडोर संभाली थी तो उद्योग-धंधों को काफी बढ़ावा मिला था। क्या इससे उसके गुनाहों को नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है?
अबू आज़मी यह भी कहते हैं कि औरंगज़ेब के शासन काल में भारत की सीमा अफगानिस्तान और म्यांमार तक पहुंच गई थी। वे यह क्यों भूल जाते हैं कि औरंगज़ेब ने सीमा विस्तार से पहले क्या-क्या कांड किए थे? उसने अपने पिता और भाइयों के साथ कैसा सलूक किया था? दारा शिकोह की जिस तरह हत्या करवाई गई, उसका विवरण पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस पर भी अबू आज़मी अपने फेसबुक पेज पर औरंगज़ेब का नाम बहुत ही आदर से लिखते हैं, जैसे उसने मानवता की बहुत बड़ी सेवा की थी! औरंगज़ेब के बारे में कुछ कथित इतिहासकारों ने बड़ी भ्रामक बातें फैला रखी हैं। ये विरोधाभासी भी हैं। एक तरफ कहा जाता है कि औरंगज़ेब टोपी सिलाई कर अपना खर्च चलाता था, दूसरी तरफ कहा जाता है कि वह राजकाज और सीमा विस्तार आदि में बहुत ज्यादा व्यस्त रहता था, उसकी ज़िंदगी का आखिरी हिस्सा सैन्य अभियानों में ही गुजर गया था! ये दोनों बातें एकसाथ कैसे संभव हैं? एक तरफ कहा जाता है कि औरंगज़ेब अपने लिए राजकोष से कुछ नहीं लेता था, दूसरी तरफ कहा जाता है कि उसका बहुत रौब था, पांच दशक तक मजबूती से राज किया! सवाल है- कौन अधिकारी या इतिहासकार ऐसे बादशाह से हिसाब मांग सकता था? क्या उसे अपनी गर्दन सलामत नहीं चाहिए थी? जब प्राकृतिक संपदा और कीमती धातुओं से संपन्न देश पर कब्जा था तो खर्चे की किसे फिक्र थी, रोकने वाला कौन था? औरंगज़ेब के समर्थन में कहा जाता है कि कई हिंदू राजा और उनके सैनिक भी उसके पक्ष में लड़े थे ... अगर वह इतना ही बुरा होता तो ये लोग उसके साथ क्यों थे? असल में यह बहुत बचकाना तर्क है। कई हिंदू राजा और उनके सैनिक तो (विभिन्न परिस्थितियों में) अंग्रेजों के साथ भी रहे थे। क्या इस आधार पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के गुनाह भुला दें? जो राजा अंग्रेजों के साथ थे, वे अपना राजपाट बचाने के लिए ऐसा कर रहे थे और जो सैनिक उनके झंडे तले खड़े थे, वे अपने सेनापति का आदेश मान रहे थे। यह न भूलें कि वर्ष 1857 में कई राज परिवार अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में कूदे थे, कई सैनिकों ने अंग्रेजों पर धावा बोल दिया था। उनका एक ही मकसद था- 'अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति'। इसी तरह औरंगज़ेब के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज, गुरु गोबिंद सिंहजी महाराज जैसे दिव्य पुरुष आए थे। हमारे आदर्श ये होने चाहिएं, न कि कोई अत्याचारी बादशाह।