हमारी सरकार बसव तत्त्व, वचन संस्कृति के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध: सिद्दरामय्या
'जब मैं पहली बार मुख्यमंत्री बना तो बसव जयंती के दिन शपथ ली थी'

'धर्मनिरपेक्ष, समानता आधारित समाज के निर्माण के लिए बसवन्ना का संघर्ष आवश्यक है'
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। मुख्यमंत्री सिद्दरामय्या ने आश्वासन दिया कि उनकी सरकार बसव तत्त्व, वचन संस्कृति के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है औरमांगों को चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा। उन्होंने कावेरी स्थित अपने आवास पर लिंगायत स्वामीजी, मंत्रियों, विधायकों और समुदाय के नेताओं की एक बैठक को संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि जब मैं पहली बार मुख्यमंत्री बना तो बसव जयंती के दिन शपथ ली थी। यह हमारी ही कांग्रेस सरकार थी, जिसने सरकारी कार्यालयों में बसवन्ना का चित्र अनिवार्य कर दिया था। बसवन्ना के विचार और संघर्ष एक धर्मनिरपेक्ष समाज के निर्माण के लिए अनुकूल हैं। बसवन्ना के विचार जातिवादी ताकतवर लोगों को पसंद नहीं हैं।सिद्दरामय्या ने कहा कि जाति व्यवस्था बहुत गहरी जड़ें जमा चुकी है। धर्मनिरपेक्ष, समानता आधारित समाज के निर्माण के लिए बसवन्ना का संघर्ष आवश्यक है। जिस समाज में जातिगत जड़ता और आर्थिक जड़ता हो, वहां आंदोलन संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि बसवन्ना के विचार अंबेडकर के विचार हैं और वे सभी संविधान में निहित हैं।
उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस सरकार ही थी, जिसने बसवन्ना को सांस्कृतिक नेता घोषित किया था। देश के सांस्कृतिक नेता घोषित किए गए विश्वगुरु बसवेश्वर की विचारधारा को प्रभावी ढंग से जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस वर्ष के बजट में 100 करोड़ रुपए देने के अलावा अगले चार बजटों में से प्रत्येक में 100 करोड़ की दर से कुल 500 करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाना चाहिए्।
मुख्यमंत्री के दौरे से पहले, उद्योग मंत्री एमबी पाटिल के रेसकोर्स रोड स्थित सरकारी आवास पर मठ प्रमुख, समुदाय के मंत्रियों और विधायकों के साथ इस संबंध में बैठक हुई। बैठक में राज्यभर से आए समुदाय के स्वामीजी, विधायक, पूर्व विधायक और संगठनों के नेताओं ने भाग लिया और इस मुद्दे पर चर्चा की। बाद में मुख्यमंत्री के सरकारी आवास कावेरी गए और एक याचिका प्रस्तुत की।
हाल में चित्रदुर्ग में आयोजित 13वें अखिल भारतीय शरण साहित्य सम्मेलन में विचारकों ने राय व्यक्त की कि राज्य सरकार को युवा पीढ़ी को बसवन्ना से परिचित कराने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए्ं। बाद में, इस मुद्दे पर कई बैठकें आयोजित की गईं। मांग की गई कि बेंगलूरु अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा रोड पर बसवन्ना की विशाल प्रतिमा स्थापित की जानी चाहिए।
बाल्की मठ के बसवलिंग पट्टादेवरु स्वामीजी ने कहा कि अक्षरधाम की तर्ज पर एक विशाल 'शरण दर्शन’ केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए, जहां उद्यान, पुस्तकालय, गेस्ट हाउस, दशहरा भवन और हॉल बनाया जाना चाहिए और इसे पर्यटन स्थल में बदल दिया जाना चाहिए। सभी शरणों के जन्मस्थानों, स्मारकों एवं अन्य स्मारकों की सुरक्षा के लिए स्मारक संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए। राज्य के सभी जिला केंद्रों में बसव भवन का निर्माण किया जाना चाहिए और कन्नड़ एवं संस्कृति विभाग द्वारा वहां लगातार सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिएं।
उन्होंने कहा कि वचन साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्थाओं को संग्रह, प्रकाशन, पुनर्प्रकाशन, पांडुलिपियों का दस्तावेजीकरण, वचन स्थलों का अध्ययन और दस्तावेजीकरण, सेमिनार, सम्मेलन, वचन आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि गतिविधियां संचालित करने के लिए धनराशि उपलब्ध कराई जानी चाहिए।