सदाचार जीवन की सर्वोत्कृष्ट संपदा है: विमलसागरसूरी
सदाचार के बगैर धन-संपदा, बुद्धि, सत्ता, ज्ञान, वैभव, वाणी और परिवार अपूर्ण हैं

सदाचार को जिलाना सभी की प्राथमिकता में होना चाहिए
होसादुर्गा/दक्षिण भारत। आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने कहा है कि संपत्ति और बुद्धि जीवन की प्रमुख आवश्यकताएं हैं। हर कोई इनके लिए अथक प्रयास करता है, लेकिन इनसे जीवन में सुख-शांति आएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं होती। सदाचार जीवन की सर्वोत्कृष्ट संपदा है। सुख-शांति और उन्नति का यह राजमार्ग है। सदाचार की तुलना जीवन की किसी भी उपलब्धि से नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा कि सदाचार के बगैर मनुष्य की धन-संपदा, बुद्धि, सत्ता, ज्ञान, वैभव, वाणी और परिवार सभी अपूर्ण हैं। सदाचारी सर्वत्र पूजनीय होते हैं, इसलिए जीवन का आधार हमेशा सदाचार पर होना चाहिए।जैनाचार्य ने बताया कि आधुनिक युग में कदम-कदम पर सदाचार का अभाव प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि धीरे-धीरे यह महान् गुण दुर्लभ हो जाएगा। लोगों को दुर्विचार और दुराचार के प्रति गहरा लगाव होने लगा है। लोग निर्भय होकर दुराचार के मार्ग को अपनाते जा रहे हैं। नए जमाने के सारे रूप-रंग सदाचार को नहीं, दुर्विचार और दुराचार को ही पोषित कर रहे हैं। इन्हीं रास्तों से जीवन पतित और दुःखी होता है। फिर भी किसी को इसकी परवाह नहीं है। यह वीभत्स रस कलियुग के विकट काल का परिचायक है।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने सभी को सावधान किया कि अब सदाचारियों का लोग मज़ाक उड़ाएंगे। सद्विचारों की चर्चा करने वाले उपहास के पात्र बनेंगे। उन्हें पुरातन मानसिकता का माना जाएगा। उनके मित्र और समर्थक बहुत कम होंगे। दूसरी ओर रोग, शोक, दुःख, दरिद्रता होते हुए भी दुराचारियों के झुंड के झुंड होंगे। वे सदाचारियों पर हावी होंगे। इसीलिए अधिक से अधिक सदाचार को जिलाना सभी की प्राथमिकता में होना चाहिए।
बता दें कि सोमवार को पदयात्रा करते हुए श्रमणजन होसादुर्गा पहुंचे। श्रद्धालुओं ने उनकी अगवानी कर स्वागत किया। स्थानीय अजितनाथ जिनालय में सामूहिक चैत्यवंदना हुई्। गणि पद्मविमलसागर ने भी सभा को संबोधित किया। चित्रदुर्गा, चलकेरे, हिरियूर आदि क्षेत्रों के भक्तगण भी इस अवसर पर उपस्थित थे।