भारतीय भाषाओं में कभी कोई वैर नहीं रहा है: मोदी

प्रधानमंत्री ने अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया

भारतीय भाषाओं में कभी कोई वैर नहीं रहा है: मोदी

Photo: @bjp YouTube Channel

नई दिल्ली/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को यहां अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज दिल्ली की धरती पर मराठी भाषा के इस गौरवशाली कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन एक भाषा या राज्य तक सीमित आयोजन नहीं है। मराठी साहित्य के इस सम्मेलन में आजादी की लड़ाई की महक है। इसमें महाराष्ट्र और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत है।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 1878 में अपनी स्थापना के बाद से, अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन ने देश में 147 वर्षों की उल्लेखनीय यात्रा तय की है। इन वर्षों में, कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने इस आयोजन की अध्यक्षता की है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मराठी भाषा अमृत से भी ज्यादा मीठी है, इसलिए मराठी भाषा और मराठी संस्कृति के प्रति मेरा जो प्रेम है, उससे आप भलीभांति परिचित हैं। आज हम इस बात पर भी गर्व करेंगे कि महाराष्ट्र की धरती पर मराठी भाषी एक महापुरुष ने 100 वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बीज बोया था। आज यह एक वट वृक्ष के रूप में अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से भारत की महान परंपरा और संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक संस्कार यज्ञ चला रहा है। मेरे जैसे लाखों लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने देश के लिए जीने की प्रेरणा दी है और संघ के ही कारण मुझे मराठी भाषा और मराठी परंपरा से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसी कालखंड में मराठी भाषा को अभिजात भाषा का दर्जा दिया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मराठी एक संपूर्ण भाषा है, इसलिए मराठी में शूरता भी है, वीरता भी है, सौंदर्य है, संवेदना भी है, समानता भी है, समरसता भी है। इसमें अध्यात्म के स्वर भी हैं और आधुनिकता की लहर भी है। मराठी में भक्ति भी है, शक्ति भी है और युक्ति भी है। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र के कितने ही संतों ने भक्ति आंदोलन के जरिए मराठी भाषा में समाज को नई दिशा दिखाई। गुलामी के सैकड़ों वर्षों के लंबे कालखंड में मराठी भाषा आक्रांताओं से मुक्ति का भी जयघोष बनी। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत, दुनिया की सबसे प्राचीन जीवंत सभ्यताओं में से एक है, क्योंकि हम लगातार इवॉल्व हुए हैं, हमने लगातार नए विचारों को जोड़ा है, नए बदलावों का स्वागत किया है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी भाषायी विविधता इसका प्रमाण है। हमारी यह भाषायी विविधता ही हमारी एकता का सबसे बुनियादी आधार भी है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय भाषाओं में कभी कोई आपसी वैर नहीं रहा है। भाषाओं ने हमेशा एक-दूसरे को अपनाया है, एक-दूसरे को समृद्ध किया है। कई बार जब भाषा के नाम पर भेद डालने की कोशिश की जाती है तो हमारी भाषाओं की साझाी विरासत ही उसका सही जवाब देती है। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि इन भ्रमों से दूर रहकर भाषाओं को समृद्ध करना, उन्हें अपनाना हमारा सामाजिक दायित्व है। इसलिए आज हम देश की सभी भाषाओं को मुख्य धारा की भाषा की तरह देख रहे हैं। हम मराठी समेत सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा दे रहे हैं।

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