क्यों बढ़ रही अभद्र सामग्री?

सोशल मीडिया पर माहौल बहुत ज्यादा खराब हो गया है

क्यों बढ़ रही अभद्र सामग्री?

क्या हर मामले की जिम्मेदारी सरकार पर डाल देना काफी है?

उच्चतम न्यायालय ने अशोभनीय टिप्पणी मामले में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर रणवीर इलाहाबादिया के खिलाफ दर्ज कई प्राथमिकियों के संबंध में जो टिप्पणियां कीं, उनसे अन्य लोगों को सबक लेना चाहिए। सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि पाने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि उस व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अभद्र और अश्लील टिप्पणियां करने का लाइसेंस मिल गया है। इलाहाबादिया की टिप्पणियों ने लोगों को खासा नाराज कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने भी यह कहकर अप्रसन्नता व्यक्त की है कि 'उनके दिमाग में कुछ गंदगी है, जो उन्होंने यूट्यूब के कार्यक्रम में उगली।' आज सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश में सोशल मीडिया पर माहौल बहुत ज्यादा खराब हो गया है। पांच साल पहले भी ऐसी सामग्री पोस्ट की जाती थी, लेकिन बहुत कम। अब तो अश्लीलता की बौछार-सी हो गई है। जिसे देखो, वही चर्चित होने के लिए इस नुस्खे को आजमा रहा है। स्कूल-कॉलेज के कई विद्यार्थी, जिन्हें अपना ध्यान अध्ययन एवं चरित्र निर्माण पर देना चाहिए, वे ऐसे वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं, जिनमें आपत्तिजनक शब्द होते हैं। उन्हें अपने माता-पिता और शिक्षकों का कोई डर नहीं होता। जिस बच्चे के वीडियो पर ठीक-ठाक व्यूज और लाइक आ जाते हैं, वह अपने दोस्तों के बीच 'सेलिब्रिटी' का दर्जा पा जाता है। जब ऐसी आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत की जाती है तो संबंधित प्लेटफॉर्म उसे 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर हटाने से इन्कार कर देता है। साथ ही दिशा-निर्देशों की ऐसी लंबी सूची पकड़ा देता है, जो ज्यादातर लोगों की समझ से परे होती है।

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सवाल है- जब लोग आपत्तिजनक और अभद्र सामग्री के इतने खिलाफ हैं तो इनकी तादाद क्यों बढ़ती जा रही है? जवाब है- लोगों द्वारा ही इन्हें पसंद किया जाना। आपने गौर किया होगा कि कॉमेडी शो के नाम पर होने वाले भद्दे प्रदर्शनों, जिनका बाद में विरोध हुआ, प्रस्तुति के दौरान उन पर लोगों ने खूब ठहाके लगाए थे। सोशल मीडिया पर बने ऐसे पेज, जो अश्लील चित्र या चुटकुले पोस्ट करते हैं, वे तेजी से आगे बढ़ते हैं। जब लोग ऐसी सामग्री पर ठहाके लगाते हैं, लाइक और शेयर करते हैं तो 'निर्माताओं' का हौसला बढ़ता है। वे विश्लेषण करते हैं कि ऐसी सामग्री पेश करेंगे तो वह लोगों के बीच ज्यादा मशहूर होगी। वे अगली बार अभद्रता का तड़का ज्यादा लगाते हैं। अगर लोग पहले ही यह ठान लें कि न तो खुद ऐसी सामग्री पोस्ट करेंगे और न किसी को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे तो यह सिलसिला आगे नहीं बढ़ेगा। नब्बे के दशक तक गांवों में रामलीला का आयोजन खूब होता था। उसमें एक हास्य कलाकार भी होता था। उसे लोगों के बीच बहुत पसंद किया जाता था। उसकी विचित्र वेशभूषा और रोचक संवादों पर खूब तालियां बजती थीं। लोगों को हंसाने के लिए अश्लील टिप्पणी करना जरूरी नहीं है। जिन्होंने जसपाल भट्टी का 'फ्लॉप शो' देखा है, वे समझ सकते हैं कि आज हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रमों का स्तर बहुत गिर गया है। एक कथित हास्य कलाकार ने अपने शो में रूसी महिलाओं के बारे में ऐसी भ्रामक व आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिस पर लोगों ने खूब तालियां बजाईं। उसका नतीजा यह निकला कि कई किशोर और युवा उनके कथन को सच मान बैठे हैं। पिछले दिनों एक लड़के का वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह किसी रूसी महिला के सामने घोर आपत्तिजनक टिप्पणी करता पाया गया। एक और यूट्यूबर, जो अभिनेता बनने मुंबई गए थे, लेकिन वहां कामयाबी नहीं मिली, इसलिए अपने गांव लौटकर वीडियो बनाने लगे। उन्हें हास्य के साथ अश्लीलता को जोड़ने में महारत हासिल है। उनके लाखों फॉलोअर्स हैं। हर वीडियो पर लाखों ही व्यूज और लाइक आते हैं। उनके कई प्रशंसक तो यह कहते हैं कि हमें अधिकार होता तो आपको 'ऑस्कर' दिलवा देते! जब दर्शक ही ऐसी सामग्री का समर्थन करेंगे तो सुधार की उम्मीद किससे रखें? क्या हर मामले की जिम्मेदारी सरकार पर डाल देना काफी है? अगर कॉमेडी के नाम पर हो रहे भौंडे प्रदर्शन को रोकना चाहते हैं तो इस पर ठहाके लगाना बंद करें, ऐसे लोगों को 'व्यूज, लाइक, शेयर' बिल्कुल न दें और 'उचित तरीके से' आपत्ति दर्ज कराएं।

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