आचार्यश्री विमलसागरसूरी का आगामी वर्षावास गदग में घाेषित
इससे पूरे उत्तर कर्नाटक क्षेत्र में हर्ष की लहर छा गई

साधु-संताें के वर्षावास गृहस्थ वर्ग के लिए साक्षात वरदान हैं
भद्रावती/दक्षिण भारत। आचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी, गणि पद्मविमलसागरजी आदि सात श्रमणजनाें का वर्ष 2025 का आगामी वर्षावास गदग में हाेना घाेषित हुआ है। जैनाचार्य विमलसागरसूरीश्वरजी ने गदग के पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ के पदाधिकारियाें के आग्रह पर साेमवार काे उन्हें अनुमति प्रदान करते हुए अपने आगामी वर्षावास की घाेषणा की। इससे पूरे उत्तर कर्नाटक क्षेत्र में हर्ष की लहर छा गई।
इस अवसर पर जैनाचार्य ने कहा कि साधु-संताें के वर्षावास गृहस्थ वर्ग के लिए साक्षात वरदान हैं। साैभाग्य से साधकाें और संताें की सन्निधि मिलती है। साधु-संताें के आगमन और उपदेशाें से धर्म, समाज, राष्ट्र और मानवता की सेवा के अनेक प्रकल्प सिद्ध हाेते हैं, इसलिए जहां संत आते हैं, वहां बिना माैसम के बसंत की बहार आ जाती हैं।जहां साधु-संताें के विहरण नहीं हाेते, वहां भावनाएं मंद पड़ जाती हैं और वे क्षेत्र शुष्क बन जाते हैं। हम कितने भी आधुनिक बन जाएं, साधु-संताें के सान्निध्य से कभी वंचित नहीं रहना चाहिए। साधु-संताें के सत्संग से अपने पाप कट सकते हैं, सत्कार्याें की प्रेरणा मिलती है, जीवन की बुराइयाें और कमजाेरियाें का परिष्कार हाे सकता है।
मनुष्य का मन ही कुछ ऐसा है, जिसकी सात्विक भावनाओं काे जीवंत रखने के लिये समय-समय पर उसमें श्रद्धा-भक्ति का घृत उंडेलना पड़ता है और ज्ञान की बाती प्रज्ज्वलित करनी पड़ती है।
आचार्य विमलसागरसूरीश्वर ने कहा कि ऐसे हजाराें उदाहरण हैं, जब साधु-संताें के परिचय में आकर पतित भी पावन बन गए। महात्मा गांधी ने अपनी जीवनी में लिखा है कि यदि मुझे संताें की प्रेरणाएं न मिली हाेती ताे मैं मांसाहारी और शराबी बन गया हाेता।