क्यों बनें 'अनचाहे' मेहमान?

जो आपबीती सुनाई, उससे रोंगटे खड़े हो जाते हैं

क्यों बनें 'अनचाहे' मेहमान?

अमेरिका से निकाले जा रहे अवैध प्रवासी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। इससे उन लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं, जो अवैध तरीके से अमेरिका में दाखिल हुए या वहां रह रहे हैं। ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के मुद्दे को खूब हवा दी थी। अमेरिका में यह बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है। ट्रंप तर्क देते रहे हैं कि उनके देश में अवैध प्रवासी नौकरियों पर कब्जा कर रहे हैं। अब उनकी पकड़-धकड़ और स्वदेश रवानगी से जहां ऐसे लोगों में डर का माहौल है, वहीं ट्रंप समर्थक खासे उत्साहित हैं। इसी सिलसिले में अमेरिका का एक सैन्य विमान 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को लेकर अमृतसर के हवाईअड्डे पर उतरा। इन लोगों ने जो आपबीती सुनाई, उससे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अमेरिका मानवाधिकारों समेत कई तरह के अधिकारों को लेकर दुनिया को उपदेश देता है। वहीं, उसका प्रशासन इन लोगों को लेकर जिस तरह अमृतसर पहुंचा, उससे कहीं भी उन उपदेशों पर अमल होता नहीं दिखा। इन्हें सैन्य विमान से क्यों भेजा गया? ये लोग रोजगार हासिल करने के लिए गए थे। ये कोई खतरनाक अपराधी तो नहीं थे! हां, इन्हें अमेरिका में प्रवेश एवं निवास संबंधी नियमों का पालन करना चाहिए था। किसी भी देश में गलत तरीके से दाखिल होने, वहां रहने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। इनके खिलाफ कार्रवाई को इस तरह दिखाना भी ठीक नहीं कि गोया इन्होंने अमेरिका में कोई जंग छेड़ दी थी और बाद में बंदी बना लिए गए! ये लोग अमेरिकी समाज का हिस्सा बनने गए थे, उसकी अर्थव्यवस्था में योगदान देना चाहते थे। इन्हें सैन्य विमान में बैठाकर स्वदेश भेजना ट्रंप प्रशासन के अहंकार को दर्शाता है। ट्रंप तो तीखे तेवर दिखाते ही थे, अब उनके अधिकारी भी दिखाने लगे हैं। यूएसबीपी के प्रमुख ने इन लोगों को 'एलियंस' बताते हुए कहा है कि अगर आप अवैध रूप से सीमा पार करते हैं तो आपको 'हटा' दिया जाएगा।

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ट्रंप के आदेश पर जो कार्रवाई हो रही है, उसके तौर-तरीकों पर सवाल उठाए जा सकते हैं, लेकिन इसके दूसरे पहलू को ध्यान में रखना चाहिए। वे अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। उन्हें अपने नागरिकों के लिए नीतियां बनाने का अधिकार है। अमेरिका में विदेश से आकर कौन रहेगा, कौन नहीं रहेगा, इसका फैसला करने के लिए उसकी सरकार स्वतंत्र है। जो लोग लाखों रुपए खर्च कर अवैध तरीके से अमेरिका गए थे, उन्हें ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था। ताज्जुब होता है कि किसी ने 40 लाख, किसी ने 60 लाख तो किसी ने इससे कहीं ज्यादा रकम खर्च कर दी, ताकि अमेरिका जा सकें, वहां रह सकें! इसके लिए उन्होंने रास्ते में भयंकर कठिनाइयां बर्दाश्त कीं, अमेरिकी अधिकारियों का अपमानजनक बर्ताव झेला। क्या अमेरिका कोई स्वर्ग है कि वहां जाते ही तमाम दु:ख-दर्द गायब हो जाएंगे और आसमान से फूल बरसने लगेंगे? अगर इतनी बड़ी रकम खर्च करनी ही थी तो कोई हुनर सीख लेते और भारत में ही स्वरोजगार कर लेते। अगर कोई हुनरमंद व्यक्ति ऊपर बताई गई रकम का दसवां हिस्सा लगाकर भी भारत में स्वरोजगार करे तो बहुत सम्मानजनक ढंग से जीवन जीते हुए अच्छी कमाई कर सकता है। हम क्यों अमेरिका के प्रति 'मान न मान, मैं तेरा मेहमान' का रवैया अपनाते हैं? यहां लोग चालीस लाख रुपए शादियों में लगा देंगे, लेकिन 50 हजार रुपए लगाकर कोई हुनर नहीं सीखेंगे। अमेरिका जाकर खेतों में मजदूरी कर लेंगे, उनकी डांट-डपट बर्दाश्त कर लेंगे, लेकिन भारत में रहकर अपने खेत में काम करना शान के खिलाफ समझेंगे। आज हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ रही है। लोगों की क्रय क्षमता में इजाफा हो रहा है। हमारा देश डिजिटल पेमेंट, ऑनलाइन शॉपिंग में नए-नए रिकॉर्ड बना रहा है। जब यहां इतना बड़ा बाजार है, इतनी मांग है तो इस तरह विदेश क्यों जाएं कि पूरी जमा-पूंजी खर्च हो जाए, खेत-मकान बेचने पड़ें, कर्ज लेना पड़ जाए और वहां अपमानित भी होना पड़े? यहीं कोई हुनर सीख लें और अपनी मेहनत से अपने देश को बेहतर बनाएं। तुलसी बाबा तो बहुत पहले कह चुके हैं- 'आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइए, कंचन बरसे मेह।।'

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