युवाओं को बनाएं हुनरमंद
गांवों को स्मार्ट बनाना है तो उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाना होगा

सुधार की गुंजाइश बाकी है
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने यह कहकर आज की अत्यंत महत्त्वपूर्ण आवश्यकता का उल्लेख किया है कि स्मार्ट शहरों की तर्ज पर स्मार्ट गांव बनाने चाहिएं। प्राय: जब गांवों के विकास की बात होती है तो 'शहरीकरण' को विकास समझ लिया जाता है। लोग यह कहते मिल जाते हैं कि 'अब तो हमारा गांव ही शहर हो गया, यहां बड़ी-बड़ी इमारतें और शॉपिंग मॉल बन गए, हर घर में गाड़ियां आ गईं!' भारत में आबादी के अनुपात में न तो शहरों में पर्याप्त सुविधाएं जुटाने पर ध्यान दिया गया और न ही गांवों को इस स्तर पर विकसित किया गया कि वे आत्मनिर्भर बन सकें। आज भी गांवों में कई कामों के लिए शहरों की ओर दौड़ लगानी पड़ती है। बड़ी इमारतों, सड़कों, वाहनों आदि का अपनी जगह महत्त्व है, लेकिन गांवों को स्मार्ट बनाना है तो उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाना होगा। हमारे गांव खानपान के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हैं। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इस्तेमाल होने वाला सामान भी दुकानों पर आसानी से मिल जाता है। असल मुद्दे हैं- शिक्षा, रोजगार और चिकित्सा। अगर गांवों में शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर दिया जाए, ग्रामोद्योगों को विकसित किया जाए और वहां अच्छी चिकित्सा सुविधाओं का इंतजाम कर दिया जाए तो शहरों पर दबाव काफी हद तक कम हो सकता है। एक दशक पहले, ग्रामीणों को सरकारी दफ्तरों से जुड़े छोटे-मोटे कामों के लिए भी शहर जाना पड़ता था। कोई दस्तावेज बनवाना होता तो दिनभर दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे। यही स्थिति बैंक से जुड़े कामों को लेकर थी। अब इंटरनेट के कारण हालात बहुत बेहतर हो गए हैं। हालांकि सुधार की गुंजाइश बाकी है।
सरकार को चाहिए कि वह हर गांव में ऐसे इंतजाम कर दे, जिससे ग्रामीणों को शहर जाकर दफ्तरों के चक्कर बिल्कुल न लगाने पड़ें। इसके साथ ही रोजगार के अवसरों का सृजन करे। 'रोजगार' सिर्फ सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि ऐसे विकल्प जिनसे हुनरमंद लोग बाजार मांग के अनुसार उत्पाद तैयार कर सकें। गांवों में इसके लिए बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन ज्यादातर युवाओं का हुनरमंद न होना एक समस्या है। आज का नौजवान पढ़-लिखकर खेती नहीं करना चाहता। उस पर अभिभावकों और रिश्तेदारों का काफी दबाव होता है कि वह जल्द से जल्द सरकारी नौकरी पाए। वहीं, गांवों में उच्च गुणवत्ता की ऐसी कितनी ही चीजें तैयार की जा सकती हैं, जिनकी शहरों में खूब मांग है, लेकिन ज्यादातर नौजवानों के पास न तो इसके लिए कोई प्रशिक्षण होता है और न वे ऐसा रोजगार करना चाहते हैं। अभी केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती और उसे खानपान में शामिल करने पर बहुत जोर दे रही है। यह काफी पौष्टिक होता है। पिछले कुछ दशकों में इसकी बहुत उपेक्षा की गई। अब ढाबों से लेकर होटलों तक इसे परोसा जा रहा है। मोटे अनाज से संबंधित पकवानों, उत्पादों का बहुत बड़ा बाजार है, लेकिन इसकी ओर कितने युवाओं का ध्यान है? अगर मोटे अनाजों से बिस्किट, केक, ब्रेड, नमकीन जैसी चीजें बनाकर बेची जाएं तो लोग उन्हें पसंद करेंगे। हर गांव में स्थानीय फसलों से ऐसे ढेरों उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जिनके बारे में अभी बहुत कम लोग जानते हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान की शुष्क जलवायु में ग्वार की फसल आसानी से हो सकती है। कितने युवा जानते हैं कि ग्वार की फलियों से बहुत स्वादिष्ट नमकीन बनाई जा सकती है? ऐसी चीज चाय की थड़ियों, रेस्टोरेंटों, बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, ढाबों और होटलों में बेची जा सकती हैं। ब्याह-शादियों, पार्टियों के खाने में कैर-सांगरी की खूब मांग रहती है। कितने युवाओं के पास इनकी खेती और मार्केटिंग का हुनर है? देश में मांग बहुत है, बस युवाओं को उसके अनुसार हुनरमंद होने की जरूरत है। सरकार को स्मार्ट गांव बनाने के साथ ही युवाओं को हुनरमंद भी बनाना चाहिए।About The Author
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